Monday, October 27, 2008

नन्हें पंखों को शुभकामनाएं

नन्हें पंखों को दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं।
चांद गगन से उतरेगा, तारे भी संग आएंगे
नन्हें पंखों के दामन में खुशियां भर कर जाएंगे।

Friday, October 24, 2008

खेद

साथियों कीबोड की गड़बड़ी से आप सबों को पढ़ने में दिक्कत पेश आई इसके लिए मुझे खेद है।

Monday, October 13, 2008

नन्हें पंखों को आमत्रण

इन बच्चों के साथ मैं उन बच्चों को भी आमंित्रत करता हूं जो गरीब तंगहाल हैं और आिर्थक मजबूरी में अपना बचपन दांव पर लगाए बैठे हैं। गली कूंचों में अपने नन्हें पंखों को नीलाम कर रहे हैं। कचरे के डब्बों में चाय की दूकानों, होटलों और ढाबों में रेलवे स्टेशनों पर ट्रेन के कंपार्टमेंट में अपने नन्हें पंखों को सूली पर लटकाए हैं। दो महीने पहले मैं पीजीआई गया था, हेमेटोलोिज िडपार्टमेंट, वहां डॉक्टर िवश्वनाथ मेरी िसस्टर इन लॉ का इलाज कर रहे थे और डॉक्टर सुिमत िफरोजपुर से आई एक १५ वर्षीय बच्ची का िजसके पूरे शरीर में काले-काले दाग उभर आए थे। डॉक्टर ने उस लड़की के िपता से जब पूछा आपके िकतने बच्चे हैं? उसने जवाब िदया पांच, तीन लड़की, दो लड़के। आप क्या करते हैं डॉक्टर ने पूछा, प िरवार कैसे चलता है उस व्यक्ित ने जवाब िदया बच्चे ईंटा -ऊटा ढो लेते हैं। उनके मेहनत मजूरी से ही प िरवार चलता है। जब डॉक्टर उस बच्ची से सवाल करते तो वह मुस्कुराकर जवाब देती। ऐसे में ही पढ़ाई और शादी के सवाल पर वह शर्माई और मुस्कुराकर रह गई। दो घंटे के बाद हमे बुलाया गया और उस बच्ची को भी। िदन के तीन बजे थे बच्ची के खून की िरपोर्ट आनी बाकी थी। िरपोर्ट आई तो उसका जीने का सपना पानी हो चुका था। डॉक्टर सुिमत ने उस बच्ची के बाप को बुलाकर कहा इसे खून का कैंसर है बस छह महीने और बचेगी। इलाज काफी महंगा है। जब लगे खून बदलवा लेना दो-तीन साल जी जाएगी। हम सन्न थे।ऐसे तमाम और बच्चे हैं जो ितल-िल कर अपना सब कुछ खो रहे हैं ऐसे बच्चों को समाज के मुख्य धारा से जोड़ने का अश्वमेध यग्य करना होगा। यह ब्लाग भी उस यग्य में आहूित देगा। इन बच्चों के साथ मैं उन तमाम बच्चों को भी आमंित्रत करता हूं िजन्हें नया सृजन करना है, नया समाज, नए राष्टर् का िनर्माण करना है जो खाते-पीते संपन्न घर के हैं, मध्य और उच्च मध्यम वर्ग के हैं। ये आमंत्रण इस िलए है तािक खाई पाट सकूं। पूरा नहीं तो कुछ हद तक ही। आओ बच्चों ये ब्लाग तुम्हारा आंगन है यहां खेलो, कूदो, िखलो मुझसे अपने अमल अंकल से अपने मन की बात कहो मैं चांद और तारों को आमंत्रण भेज चुका हूं वे तुम्हारे साथ खेलेंगे। आओ इस आंगन में िखल िखलाओ, खुद भी रौशन हो और इस नन्हें आंगन को भी रौशन कर दो।इस ब्लाग में अमल अंकल के साथ हैं अम्बरीश कुमार गुप्ता और अमृता िप्रय दर्शनी।इन बच्चों के साथ मैं उन बच्चों को भी आमंित्रत करता हूं जो गरीब तंगहाल हैं और आिर्थक मजबूरी में अपना बचपन दांव पर लगाए बैठे हैं। गली कूंचों में अपने नन्हें पंखों को नीलाम कर रहे हैं। कचरे के डब्बों में चाय की दूकानों, होटलों और ढाबों में रेलवे स्टेशनों पर ट्रेन के कंपार्टमेंट में अपने नन्हें पंखों को सूली पर लटकाए हैं।दो महीने पहले मैं पीजीआई गया था, हेमेटोलोिज िडपार्टमेंट में वहां डॉक्टर िवश्वनाथ मेरी िसस्टर इन लॉ का इलाज कर रहे थे और डॉक्टर सुिमत िफरोजपुर से आई एक १५ वर्षीय बच्ची का िजसके पूरे शरीर में काले-काले दाग उभर आए थे। डॉक्टर ने उस लड़की के िपता से जब पूछा आपके िकतने बच्चे हैं? उसने जवाब िदया पांच, तीन लड़की, दो लड़के। आप क्या करते हैं डॉक्टर ने पूछा, प िरवार कैसे चलता है उस व्यक्ित ने जवाब िदया बच्चे ईंटा -ऊटा डो लेते हैं। उनके मेहनत मजूरी से ही प िरवार चलता है।जब डॉक्टर उस बच्ची से सवाल करते तो वह मुस्कुराकर जवाब देती। ऐसे में ही पढ़ाई और शादी के सवाल पर वह शर्माई और मुस्कुराकर रह गई। दो घंटे के बाद हमे बुलाया गया और उस बच्ची को भी। िदन के तीन बजे थे बच्ची के खून की िरपोर्ट आनी बाकी थी। िरपोर्ट आई तो उसका जीने का सपना पानी हो चुका था। डॉक्टर सुिमत ने उस बच्ची के बाप को बुलाकर कहा इसे खून का कैंसर है बस छह महीने और बचेगी। इलाज काफी महंगा है। जब लगे खून बदलवा लेना दो-तीन साल जी जाएगी। हम सन्न थे।ऐसे तमाम और बच्चे हैं जो ितल-िल कर अपना सब कुछ खो रहे हैं ऐसे बच्चों को समाज के मुख्य धारा से जोड़ने का अश्वमेध यग्य करना होगा। यह ब्लाग भी उस यग्य में आहूित देगा। इन बच्चों के साथ मैं उन तमाम बच्चों को भी आमंित्रत करता हूं िजन्हें नया सृजन करना है, नया समाज, नए राष्टर् का िनर्माण करना है जो खाते-पीते संपन्न घर के हैं, मध्य और उच्च मध्यम वर्ग के हैं। ये आमंत्रण इस िलए है तािक खाई पाट सकूं। पूरा नहीं तो कुछ हद तक ही। आओ बच्चों ये ब्लाग तुम्हारा आंगन है यहां खेलो, कूदो, िखलो मुझसे अपने अमल अंकल से अपने मन की बात कहो मैं चांद और तारों को आमंत्रण भेज चुका हूं वे तुम्हारे साथ खेलेंगे। आओ इस आंगन में िखल िखलाओ, खुद भी रौशन हो और इस नन्हें आंगन को भी रौशन कर दो।इस ब्लाग में अमल अंकल के साथ हैं अम्बरीश कुमार गुप्ता और अमृता िप्रय दर्शनी।इन बच्चों के साथ मैं उन बच्चों को भी आमंित्रत करता हूं जो गरीब तंगहाल हैं और आिर्थक मजबूरी में अपना बचपन दांव पर लगाए बैठे हैं। गली कूंचों में अपने नन्हें पंखों को नीलाम कर रहे हैं। कचरे के डब्बों में चाय की दूकानों, होटलों और ढाबों में रेलवे स्टेशनों पर ट्रेन के कंपार्टमेंट में अपने नन्हें पंखों को सूली पर लटकाए हैं।दो महीने पहले मैं पीजीआई गया था, हेमेटोलोिज िडपार्टमेंट में वहां डॉक्टर िवश्वनाथ मेरी िसस्टर इन लॉ का इलाज कर रहे थे और डॉक्टर सुिमत िफरोजपुर से आई एक १५ वर्षीय बच्ची का िजसके पूरे शरीर में काले-काले दाग उभर आए थे। डॉक्टर ने उस लड़की के िपता से जब पूछा आपके िकतने बच्चे हैं? उसने जवाब िदया पांच, तीन लड़की, दो लड़के। आप क्या करते हैं डॉक्टर ने पूछा, प िरवार कैसे चलता है उस व्यक्ित ने जवाब िदया बच्चे ईंटा -ऊटा डो लेते हैं। उनके मेहनत मजूरी से ही प िरवार चलता है।जब डॉक्टर उस बच्ची से सवाल करते तो वह मुस्कुराकर जवाब देती। ऐसे में ही पढ़ाई और शादी के सवाल पर वह शर्माई और मुस्कुराकर रह गई। दो घंटे के बाद हमे बुलाया गया और उस बच्ची को भी। िदन के तीन बजे थे बच्ची के खून की िरपोर्ट आनी बाकी थी। िरपोर्ट आई तो उसका जीने का सपना पानी हो चुका था। डॉक्टर सुिमत ने उस बच्ची के बाप को बुलाकर कहा इसे खून का कैंसर है बस छह महीने और बचेगी। इलाज काफी महंगा है। जब लगे खून बदलवा लेना दो-तीन साल जी जाएगी। हम सन्न थे।ऐसे तमाम और बच्चे हैं जो ितल-िल कर अपना सब कुछ खो रहे हैं ऐसे बच्चों को समाज के मुख्य धारा से जोड़ने का अश्वमेध यग्य करना होगा। यह ब्लाग भी उस यग्य में आहूित देगा। इन बच्चों के साथ मैं उन तमाम बच्चों को भी आमंित्रत करता हूं िजन्हें नया सृजन करना है, नया समाज, नए राष्टर् का िनर्माण करना है जो खाते-पीते संपन्न घर के हैं, मध्य और उच्च मध्यम वर्ग के हैं। ये आमंत्रण इस िलए है तािक खाई पाट सकूं। पूरा नहीं तो कुछ हद तक ही। आओ बच्चों ये ब्लाग तुम्हारा आंगन है यहां खेलो, कूदो, िखलो मुझसे अपने अमल अंकल से अपने मन की बात कहो मैं चांद और तारों को आमंत्रण भेज चुका हूं वे तुम्हारे साथ खेलेंगे। आओ इस आंगन में िखल िखलाओ, खुद भी रौशन हो और इस नन्हें आंगन को भी रौशन कर दो।इस ब्लाग में अमल अंकल के साथ हैं अम्बरीश कुमार गुप्ता और अमृता िप्रय दर्शनी।इन बच्चों के साथ मैं उन बच्चों को भी आमंित्रत करता हूं जो गरीब तंगहाल हैं और आिर्थक मजबूरी में अपना बचपन दांव पर लगाए बैठे हैं। गली कूंचों में अपने नन्हें पंखों को नीलाम कर रहे हैं। कचरे के डब्बों में चाय की दूकानों, होटलों और ढाबों में रेलवे स्टेशनों पर ट्रेन के कंपार्टमेंट में अपने नन्हें पंखों को सूली पर लटकाए हैं।दो महीने पहले मैं पीजीआई गया था, हेमेटोलोिज िडपार्टमेंट में वहां डॉक्टर िवश्वनाथ मेरी िसस्टर इन लॉ का इलाज कर रहे थे और डॉक्टर सुिमत िफरोजपुर से आई एक १५ वर्षीय बच्ची का िजसके पूरे शरीर में काले-काले दाग उभर आए थे। डॉक्टर ने उस लड़की के िपता से जब पूछा आपके िकतने बच्चे हैं? उसने जवाब िदया पांच, तीन लड़की, दो लड़के। आप क्या करते हैं डॉक्टर ने पूछा, प िरवार कैसे चलता है उस व्यक्ित ने जवाब िदया बच्चे ईंटा -ऊटा डो लेते हैं। उनके मेहनत मजूरी से ही प िरवार चलता है।जब डॉक्टर उस बच्ची से सवाल करते तो वह मुस्कुराकर जवाब देती। ऐसे में ही पढ़ाई और शादी के सवाल पर वह शर्माई और मुस्कुराकर रह गई। दो घंटे के बाद हमे बुलाया गया और उस बच्ची को भी। िदन के तीन बजे थे बच्ची के खून की िरपोर्ट आनी बाकी थी। िरपोर्ट आई तो उसका जीने का सपना पानी हो चुका था। डॉक्टर सुिमत ने उस बच्ची के बाप को बुलाकर कहा इसे खून का कैंसर है बस छह महीने और बचेगी। इलाज काफी महंगा है। जब लगे खून बदलवा लेना दो-तीन साल जी जाएगी। हम सन्न थे।ऐसे तमाम और बच्चे हैं जो ितल-िल कर अपना सब कुछ खो रहे हैं ऐसे बच्चों को समाज के मुख्य धारा से जोड़ने का अश्वमेध यग्य करना होगा। यह ब्लाग भी उस यग्य में आहूित देगा। इन बच्चों के साथ मैं उन तमाम बच्चों को भी आमंित्रत करता हूं िजन्हें नया सृजन करना है, नया समाज, नए राष्टर् का िनर्माण करना है जो खाते-पीते संपन्न घर के हैं, मध्य और उच्च मध्यम वर्ग के हैं। ये आमंत्रण इस िलए है तािक खाई पाट सकूं। पूरा नहीं तो कुछ हद तक ही। आओ बच्चों ये ब्लाग तुम्हारा आंगन है यहां खेलो, कूदो, िखलो मुझसे अपने अमल अंकल से अपने मन की बात कहो मैं चांद और तारों को आमंत्रण भेज चुका हूं वे तुम्हारे साथ खेलेंगे। आओ इस आंगन में िखल िखलाओ, खुद भी रौशन हो और इस नन्हें आंगन को भी रौशन कर दो।इस ब्लाग में अमल अंकल के साथ हैं अम्बरीश कुमार गुप्ता और अमृता िप्रय दर्शनी।

Sunday, October 5, 2008

तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हूँ मै

तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हूँ मैं, तेरे मासूम सवालों से परेशान हूँ मैं। तुम चुपचाप मुस्कुराकर जो सवाल कर देते हो मुझसे, अपनी माँ से तो हमें खामोश केर देते हो और दुनिया के तमाम ज्ञानिओं को निरुत्तर। तुम्हरी आखों से जो प्यार छलकता है उसके आगे रोमीयो जूलियट लैला मजनू और सोनी महिवाल का प्यार फीका है । मै तुम्हरे मासूम निश्चछल प्यार पर नतमस्तक हूँ। तुम्हारे और तुम जैसे नन्हें पंखों के अंदर कल्पना का जो सैलाब है, मुझे उससे रूबरू होने दो। तुम्हारी भावनाओं को बाँटने का हक़ तुम मुझे दो। मै उन लोगों को प्रणाम करता हूँ जो लहरों के बीच फँसी तुम्हरी कश्ती को पर लगाने में तुम्हेरे संघर्षों में साझेदार हैं, और समाज के उस तपके से सवाल करता हूँ जो तुम्हारे हिस्से का कोना दबाये बैठे हैं। ये कोना नजरिया मात्र है जिसे बदलने की अपील मै करता हूँ । ये मासूम नन्हें पंखों मै तुम्हारे जज्बे को सलाम करता हूँ। तुम्हारे अंदर के आकाश में जो सूरज छिपा है उसे उगना ही होगा
तुम्हारा संघर्ष रंग लायेगा, तुम रौशन होगे तुम चमकोगे तुम खिलोगे , तुम्हारे हौसलो की उडान जरूर होगी मेरा विश्वास है ।

ये ब्लॉग अक्षम बच्चों के संघर्ष को समर्पित है

ये ब्लॉग अक्षम बच्चों के संघर्ष को समर्पित है जो सक्षम बच्चों सा होना चाहते हैं। उनके कदम से कदम मिलाकर चलना चाहते हैं। ये ब्लॉग उन बच्चों का है जो मानसिक और शारीरिक रूप से चुनौतिओं का सामना करते हैं। ये चुनौतियाँ प्रकृति की हैं और समाज की। मैं एसे नन्हे बच्चों के जज्बे को सलाम करता हूँ और कहता हूँ .....
एक दिन अपना आकाश दूँढ लेंगें ये नन्हें पंख , सूरज की रौशनी को ओढ़ चाँद की सफर पर निकलें हैं ये नन्हें पंख, प्रकृति ने जो इनके हिस्से की चौथाई चुराई है, उसे दूँढ निकालेंगे, एक दिन पूर्ण हो जायेंगें ये नन्हें पंख।
एक दिन अपना आकाश........