Friday, January 1, 2010

'पल दो पलÓ

नये साल के शुभ अवसर पर आप तमाम ब्लॉगर भाइयों को शुभकामना। नन्हे पंखों की ओर से आप सबको ढेर सारा प्यार। नए साल के इस पल को जिस तरह मैंने महसूस किया और इसें जिन शब्दों में पिरोया, आपके सामने रख रहा हूं। इसे लिखते हुए मैं अपने वास्तविक मुहिम से हर पल के अहसास को जोडऩा चाहता हूं। नन्हे पंखों के पलपल का जो अहसास है उसकी कुछ छवि शायद आपको इन पंक्तियों में मिले।

पेड़ों के नीचे बैठे पल ,
कुछ सोए से, कुछ संभल-संभल।
कुछ हाथों से यूं फिसल-फिसल,
वो दूर खड़े मुस्काते पल।
कुछ सपनों में, कुछ अपनों में,
कुछ घायल से कतराते पल।
कुछ बिखरे-बिखरे पत्ते से,
कुछ खिलते से, अंकुराते पल।
कुछ पल दो पल में हवा हुए,
बीते जीवन, मुरझाते पल।
कुछ याद रहे, कुछ भूल गए,
कुछ साथ चले हमसाए पल।
ये पल जो पल पल खोते हैं,
हम याद जिन्हें कर रोते हैं,
यूं रात-रात क्यूं जागे पल,
आंखों से कच्चे धागे से,
यूं छलक-छलक छलकाते पल।
लहरों सी ऊबडूब सांस हुूई,
जब जीवन घिरकर फांस हुई,
वो मुश्किल से समझाते पल।
अपनों का कंधा कंधा है,
बाकी तो झूठा फंदा है,
क्यूं झूठे वादे कर-कर के,
यूं लूट गए बलखाते पल।
जो वक्त के तिनके चुन चुनकर,
यंू रखा इक चेहरा बुनकर,
वो कल का चेहरा आज नहीं,
उन्हें ढूंढ़ रहे घबराते पल।
जो कल बीता वो आज नहीं,
जो आज, यूंही ढल जाएगा,
तुम रचते रहना पल-पल कुछ,
तो वक्त संभलता जाएगा,
जीवन एक बहता दरिया है,
बहते रहना सिखलाते पल।
पेड़ों के नीचे बैठे पल ,
कुछ सोए से, कुछ संभल-संभल।