Sunday, August 30, 2009

और ऑपरेशन के बाद राहुल हो गया मंदबुद्धि

ग्लैमर से लबरेज इस दुनिया में जहां वैसे सपने बोए जा रहे हैं जिनपर हकीकत के फल कम ही लगते हैं वैसे में यर्थाथ की घरातल पर सोचने वाले लोग कम ही हैं। ऐसे में मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग लोगों के लिए अगर कोई सोचता है तो यह हैरत की भी बात है और खुशी की भी। पवन ऐसा ही एक युवा है जो अक्षम बच्चों के प्रति संजीदगी से सोचता है। हाल ही में उसने अपने पड़ोस में रहने वाले एक मेंटली रिर्टाडेड बच्चे राहुल के जीवन की तस्वीर खींची। उसने जो हमसे साझा किया वह आपलोगों के सामने परोस रहा हूं। राहुल 14 साल का है। अपने 14 साल की इस जिन्दगी को उसने बनवास की तरह काटा है। आगे हम सभी संवेदित लोगों और नन्हें पंख की ओर से दुआ करते हैं कि उसे इस बनवास से मुक्ति मिले और वह जीवन की मुख्य धारा से जुड़ पाए।
पवन ने जो महसूस किया-------
राहुल यानि जीवन को देखने का एक अलग ही नजरिया। ऐसा क्या है जिसने मुझे राहुल की जिन्दगी में झांकने को मजबूर किया। ऐसा क्या हुआ जो राहुल की जिन्दगी को ग्रहण लग गया। आइए उसकी जिन्दगी के कुछ पन्नों को पढ़कर आपको सुनाता हूं। बचपन में उसके सिर के पिछले हिस्से में एक उभरा हुआ मांस का गुच्छा था। उसके पिताजी ने बताया कि जब वह सात-आठ दिन का था तो डसॅक्टरों ने उसका ऑपरेशन किया और उसके बाद से ही राहुल बीमार रहने लगा। ऑपरेशन के बाद डॉक्टरों ने कहा कि अब आपका बच्चा ठीक हो जाएगा लेकिन हुआ इसके बिल्कुल उलट। अब उसे बीच-बीच में झटके भी आते हैं जब उसे उल्टियां होने लगती हैं और जोर की ठंड लगने लगती है। उसकी मां ने बताया कि ऐसे झटके आने पर उसे दवा देती हूं और फिर वो सो जाता है और तब जाकर उसका झटका नियंत्रित होता है। अभी उसे दौरा को रोकने के लिए हर रोज एक दवा चल रही है जिससे काफी हद तक आराम है और उसे लगभग एक साल से दौरा नहीं पड़ा। राहुल का एक-एक दिन अंधेरे में रोशनी की तलाश है और उसके परिवार को किसी करिश्मे का इंतजार है। राहुल को आते-जाते देखता हूं तो लगता है जिन्दगी के मायने और और कई मायनों के बीच फंसा है वह नन्ही सी जान। उसके और उसके माता-पिता के यंत्रणा भरे 365 दिनों में से एक दिन निकाल पाना मुश्किल है लेकिन मैंने एक दिन की तस्वीर खींचने की कोशिश की है। रोज हर परिवार की तरह राहुल का परिवार भी उठता है। आज सुबह भी राहुल के घर रोज की तरह हलचल है। राहुल के मां को एक साथ कई कामों को निपटाना है। सबसे पहले राहुल के छोटे भाई निख्लि और बहन शिवानी के लिए नाश्ता तैयार करना है, उनके वाटर बोटल रेडी करने हैं और उन्हें स्कूल भेजना है। इन सब के बीच राहुल कहां है, जी हां वह अभी बिस्तर पर ही पड़ा है। राहुल की मां जब इन सब कामों में व्यस्त होती है, उनका आधा मन राहुल के पास होता है। कई बार वह जब ज्यादा व्यस्त हो जाती हैं, राहुल का ध्यान उनके जेहन से निकल जाता है। उस समय राहुल ने पेशाब कर कपड़ा गीला कर रखा है या पोटी कर रखी है या फिर उसे प्यास लगी है इसे वह कैसे व्यक्त करेगा। राहुल बोल नहीं पाता, वह केवल पापा बोलता है। हां यदि उसे कोई चीज चाहिए होती है या वह किसी परेशानी में होता है तो वह जोर से चिल्लाता है। रात में तो वह इतनी जोर से चिल्लाता है कि कोई अजनबी हो तो उसे लगेगा कोई अनहोनी हो गई है पर हमे और उसके परिवार को इसकी आदत हो गई है। राहुल की मां के लिए यह चीख एक पुकार है उसके बेटे की मानो वह कह रहा हो 'मां मै परेशान हूं मेरी मदद करो, मुझे इस जिन्दगी से निकालो।Ó जब सब बच्चे तैयार होकर स्कूल चले जाते हैं तो राहुल की मां उसे दूध-रोटी देती है। सुबह नौ बजे से दोपहर चार बजे तक वह कुर्सी पर बैठकर, बिस्तर पर लेटकर या टीवी के किरदारों को देख बिताता है। इस बीच उसकी मां उसके गीले कपड़ों को साफ करती है और साथ में उससे बोलती-बतियाती भी रहती है ताकि उसे अकेलापन न लगे। राहुल के भाई-बहन के आने के बाद शुरू होता है उनके खेलने का दौर पर राहुल चाहकर भी उनके साथ खेल नहीं पाता। वह कुर्सी पर बैठ उन्हें निहारता रहता है। बीच-बीच में ताली बजाकर वह अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त करता रहता है। कभी-कभी वह अपनी कुर्सी जोर-जोर से हिलाने लगता है मानो कह रहा हो मुझें भी अपने साथ खेलने दो। मैं भी तुम सब के पीछे भागना चाहता हूं, छुपम-छुपाई खेलना चाहता हूं। बच्चों की इन्हीं किलकारियों और राहुल की बेबसी के बीच शाम ढलने लगती है। रात घने अंधेरे में डूबने लगती है। ठीक वैसा ही अंधेरा चारों ओर पसर जाता है जो 14 सालों से इस घर को अपनी आगोश में ले रखा है। इस अंधेरे से निकलने की जद्दोजहद जारी है।


Monday, August 24, 2009

मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग छात्रों के लिए छात्रवृत्ति


क्या है योजना :
प्राप्त संस्थानों से तकनीकी या प्रोफेशनल कोर्स करने वाले चुनिंदा विकलांग छात्रों को 2009-10 के लिए राष्ट्रीय छात्रवृत्ति प्रदान की जाएगी।
केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला नेशनल हैंडीकैप्ड फाइनेंस एंड डेवलपमेंट कारपोरेशन तकनीकी व प्रोफेशनल शिक्षा हासिल कर रहे विकलांग छात्रों के लिए राष्ट्रीय छात्रवृति योजना के तहत आवेदन आमंत्रित करता है। आवेदन पत्र का निर्धारित प्रारूप निगम की वेबसाइट पर उपलब्ध है।
छात्रवृत्ति योजना के कुछ मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं-< इसके तहत वर्ष 2009-10 के लिए तकनीकी व प्रोफेशनल शिक्षा हासिल करने वाले 5००योग्य विकलांग छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान की जाएगी।< स्नातक या स्नातकोत्तर स्तर पर अध्ययनरत नेत्रहीन/बधिर या सेरेब्रल पाल्सी से ग्रसित छात्रों को ऐसे कंप्यूटर खरीदने के लिए वित्तीय मदद देना, जिसमें उनके काम करने के लिहाज से समुचित सॉफ्टवेयर हों और उन्हें अपने काम करने में आसानी हो।< स्नातक या स्नातकोत्तर तकनीकी अथवा प्रोफेशनल कोर्स में अध्ययनरत छात्रावास में रहने वाले छात्रों के लिए प्रतिमाह 1000 रुपए और आवासीय छात्रों के लिए 700 रुपए प्रतिमाह और डिप्लोमा/सर्टिफिकेट स्तर के कोर्स करने वाले छात्रावासीय छात्रों को 700 रुपए प्रतिमाह छात्रवत्ति। इसके अलावा प्रतिवर्ष 10,000 रुपए तक कोर्स फीस की प्रतिपूर्ति।पता -पात्रता रखने वाले छात्र छात्रवृत्ति के लिए निर्धारित प्रारूप में आवेदन भरकर निम्नलिखित पते पर आवेदन कर सकते हैं।नेशनल हैंडीकैप्ड फाइनेंस एंड डवलपमेंट कारपोरेशन (एनएचएफडीसी), रेड क्रॉस भवन, सेक्टर-12, फरीदाबाद-121007 आवेदन की अंतिम तिथि - 31 अगस्त 2009- इसे हमने दैनिक भासकर से साभार लिया है

Tuesday, August 18, 2009

15 वर्ष का बच्चा और बुत बनी मां

यह ब्लॉग अक्षम बच्चों के संघर्ष को समर्पित है।

इन्हें हमारे हौसलों और नर्म सहारों की जरूरत है।

कभी-कभी लगता है कोई साथ है, फिर लगता है कहीं भ्रम तो नहीं। इस भ्रम के अंधेरे में जो आपका हाथ थाम ले वही आपका सच्चा साथी है। साथियों मैंने जब भी हाथ बढ़ाया आपने बढ़कर थाम लिया। आपका आभार। पर जरा सोचिये उन नन्हे पंखों को जो खुद से आपकी ओर अपना हाथ नहीं बढ़ा सकते। ऐसे किसी नुक्कड़ पर, मुहल्ले में, गली-चौबारे पर आपको कोई लडख़ड़ाता हुआ सा बच्चा मिल जाए तो उसका हाथ जरूर थाम लीजिएगा। ये अपील उन नन्हें पंखों की जरफ से मैं कर रहा हूं। अभी कुछ दिन पहले मैं कुशाग्र को लेकर चंडीगढ़ के सेक्टर 32 स्थित मानसिक रूप से अक्षम बच्चों के स्कूल गया था। वहां फिजियो, स्पीच और आइक्यू टेस्ट के लिए तीन घंटे तक रहा। इस दौरान वहां पढ़ रहे मंदबुद्धि बच्चों को देखकर लगा कि वो भी उडऩा चाहते हैं, आकाश छूना चाहते हैं। इन्हें हमारे हौसलों और नर्म सहारों की जरूरत है। अभी मैं निकलने ही वाला था कि एक महिला काफी बड़े से बच्चे को गोद में लिए रजिस्ट्रेशन कक्ष में दाखिल हुई। वह बच्चा उसकी गोद में पूरी तरह आ भी नहीं सहा था। मैंने कहा मैम आप कबतक इसे लिए खड़ी रहेंगी बैठ जाइए। स्कूल के कर्मचारियों ने कहा आप तो आज देर हो गईं अब कल नौ बजे आना होगा। इस वक्त दिन के दो बज रहे हैं और टेस्ट में कम से कम तीन से चार घंटे लगते हैं। यह सुनने के बाद उसके चेहरे पर हताशा के बादल स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। कुछ देर तक वह बुत बनी खड़ी रही फिर बाहर लगी कुर्सी पर बैठ गई। मैंने पूछा, बाबू कितने साल का है, उत्तर था 15 का। अभी चल भी नहीं पाता और ना ही बैठ पाता है। कहीं दिखया नहीं? बहुत जगह भटकी हूं, उस महिला ने कहा। कुश की मां ने कहा मैं समझ सकती हूं, मेरा बेटा भी 6 साल से ऊपर का हो गया और वह भी चलने, बैठने और बोलने में असमर्थ है। यह सब सूनने के बाद मैने कहा मैम मैं भी काफी भटका हूं और अब समझ गया हूं कि इसमें लम्बे समय तक फिजियो थेरेपी देने और धीरे-धीरे बच्चों को आसपास की चीजों से परिचय कराने से ही कुछ हासिल हो सकता है और इसके लिए बड़े धैर्य की आवश्यकता है।इस विषय में चंडीगढ़ स्थित प्रयास संस्था के डॉ. वालिया और पटना के डॉ. जयन्त प्रकाश की बात तर्कसंगत लगती है कि बच्चे को फिजियो थेरेपी और आक्युपेशनल थेरेपी से ही बहुत हद तक ठीक किया जा सकता है। डॉ. वालिया भी ऐसे बच्चों की मोबिलिटी पर जोर देते हैं और अपने तमाम भटकाव के बाद मुझे यह बात तर्कसंगत लगती है। अपील : हर गर्भवती का प्रीनेटल टेस्ट जरूर कराना चाहिए।

मानसिक विकलांग बच्चों ने मनाया स्वतंत्रता दिवस


मानसिक तौर पर विकलांग बच्चों ने रविवार को एक विशेष कार्यक्रम में स्वतंत्रता दिवस और जन्माष्टमी उत्सव मनाया। इन बच्चों की देखरेख करने वाली संस्था समर्थ ने चंडीगढ़ के सेक्टर-15 स्थित इंटरनेशनल बॉयज हॉस्टल में इस कार्यक्रम का आयोजन किया। मानसिक विकलांग बच्चों ने बाल कृष्ण, मीरा और सुदामा की भूमिकाएं निभाईं और रासलीला प्रस्तुत की। कृष्ण की भूमिका प्रथम और मीरा की भूमिका सोनिया ने अदा की। इस मौके पर बच्चों के अभिभावक भी मौजूद थे। समर्थ की प्रवक्ता सोनिया दत्ता ने बताया कि यूटी प्रशासन और नेशनल ट्रस्ट, नई दिल्ली के सहयोग से संचालित समर्थ में इस समय 27 बच्चे रह रहे हैं, जिन्हें स्पेशल एजुकेशन दी जा रही है। इसके साथ ही सेंटर में बच्चों को सभी प्रकार की सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं।

Friday, August 14, 2009

तुझसे नाराज नहीं जिन्दगी हैरान हूं मै

यह ब्लॉग अक्षम बच्चों के संघर्ष को समर्पित है।
तुझसे नाराज नहीं जिन्दगी हैरान हूं मै/तेरे मासूम सवालों से परेशान हूं मै। तुम चुपचाप मुस्कुराकर जो सवाल कर देते हो मुझसे, अपनी मां से तो हमें खामोश कर देते हो और दुनिया के तमाम ज्ञानियों को निरुत्तर। तुम्हारी आंखों से जो प्यार छलकता है उसके आगे रोमियो-जूलियट, लैला-मजनू और सोनी-महिवाल का प्यार फीका है। मैं तुम्हारे मासूम निच्छल प्यार पर नतमस्तक हूं। तुम्हारे और तुम जैसे नन्हे पंखों के अंदर कल्पना का जो सैलाब है, मुझे उससे रू-ब-रू होने दो। तुम्हारी भावनाओं को बांटने का हक तुम मुझे दो। मैं उन लोगों को सलाम करता हूं जो लहरों के बीच फंसी तुम्हारी कश्ती को पार लगाने में तुम्हारे संघर्षों में साझीदार हैं और समाज के उस तपके से सवाल करता हूं जो तुम्हारे हिस्से का कोना दबाए बैठे हैं। ये कोना नजरिया मात्र है जिसे बदलने की अपील मैं करता हूं। मासूम नन्हे पंखों मैं तुम्हारे जज्बे को सलाम करता हूं। तुम्हारे अंदर के आकाश में जो सूरज छिपा है, उसे उगना ही होगा। तुम्हारा संघर्ष रंग लाएगा, तुम रोशन होगे, तुम चमकोगे, तुम खिलोगे, तुम्हारे हौसलों की उड़ान जरूर होगी मेरा विश्वास है।
अपील- हर गर्भवती प्रीनेटल टेस्ट जरूर कराएं।

Wednesday, August 12, 2009

मुझे वो दिन याद है

यह ब्लॉग अक्षम बच्चों के संघर्ष को समर्पित है।मानसिक रूप से अक्षम बच्चों के प्रति समाज का नजरिया क्या है इसको 'प्रयासÓसंस्था के एडीओ सह को-ऑडिनेटर एस. सी. शर्मा ने बड़ी संजीदगी से महसूस किया और उसे नन्हे पंख के साथ साझा किया। जनवरी 2006 का वो दिन मुझे आज भी याद है जब पहली बार 'प्रयासÓसंस्था में विशेष बच्चों से मुलाकात की। वो विशेष बच्चे तो दुनिया की छल-कपट से अंजान थे। मैंने समाज में विशेष बच्चों के प्रति बेरुखी देखी है। इन विशेष बच्चों को इनका अधिकार दिलाने व इनको समाज का एक बेहतर हिस्सा बनाने की प्रबल इच्छा थी। मेरा यह सपना प्रयास में आकर पूरा हुआ। उस वक्त प्रयास में केवल आठ बच्चे थे जो ऑटिस्टिक(आत्मविभोरी ) थे। उन बच्चों की अपनी ही दुनिया थी और वो दिन-रात उसी दुनिया में खोए रहते। ये बच्चे खुद पर आत्मनिर्भर नहीं थे। इन्हें अपनी भी पहचान नहीं थी। हमने सबसे पहले इन बच्चों का खुद से परिचय करवाया और फिर इन्हें दैनिक दिनचर्या में लाने की कोशिश शुरू की। इन बच्चों को जहां हमारे फिजिकल सपोर्ट की जरूरत होती वहां हम इन्हें फिजिकल सपोर्ट देते जहां मौखिक तौर पर समझाने की जरूरत होती वहां हम उन्हें मौखिक तौर पर समझाते। सिखाने का सबसे अच्छा तरीका है रोल मॉडलिंग।बच्चों को समाज की मुख्यधारा से जोडऩे के लिए जरूरी है कि जब बच्चे दैनिक कार्यों में सक्षम हो उन्हें धीरे-धीरे शिक्षण गतिविधियों में निपुण किया जाए। हमने ऐसा ही किया। प्रयास प्रीपरेटरी स्कूल में श्रद्धा, निकिता, अंकित, मन्नत जैसे कई बच्चे आत्मनिर्भर हुए। वो अपने दैनिक कार्यों में तो सक्षम हैं हीं पढ़ाई में भी आगे हैं। शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम बच्चों के प्रति समाज का नजरिया सकारात्म होना चाहिए। ऐसे बच्चों को फिजियो और ऑक्युपेशनल थेरेपी से ही ठीक किया जा सकता है। समाज से मेरा अनुरोध है कि इन बच्चों को सजा, संवारकर आत्मनिर्भर बनाने के लिए आगे आएं। संस्था और समाज का योगदान मिल जाए तो इन बच्चों की जिन्दगी में भी उजाला आ सकता है। इन्हें आपका स्नेह चाहिए। साथ में नन्हे पंख की ओर से विनती, अनेरोध आग्रह जा कह लें, पढ़ें, जानें और लोगों को भी बताएं कि प्रीनेटल टेस्ट हर गर्भवती को कराना चाहिए।
For Moms
Have you under taken the prenatal screening.
5 ml of blood is taken from pregnant woman for screening between 9th to 12th week or 15th to 18th week of pregnancy. This test can ensure that your child if free from chromosomal Genetic disorder and Neural tube defects.
Every pregnant woman should go through this test.

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Sunday, August 9, 2009

हर गर्भवती को करना चाहिए प्री नेटल स्क्रीनिंग

यह ब्लॉग अक्षम बच्चों के संघर्ष को समर्पित है।
हमें इस बात को लेकर अचरज है कि भारत में काफी लोगों को अभी इस टेस्ट के बारे में जानकारी नहीं है। सन 2002 में जब कुशाग्र का जन्म हुआ तब भी हमें इस टेस्ट के बारे में पता नहीं था और ना ही लेडी डॉक्टर जगदीश्वरी मिश्रा ने हमें इस टेस्ट के बारे में बताया। फिलहाल चंडीगढ़ में मेरे साथ काम करने वाले गुलशन कुमार का बच्चा भी ऑटिस्टिक है और उनसे बात करने पर उन्होंने भी बताया कि उन्हें भी गायनोक्लोजिस्ट ने इस टेस्ट के बारे में नहीं बताया। आज अगर मैं और गुलशन जैसे लाखों मां-बाप ने यह टेस्ट कराया होता तो हम सब के बच्चे भी सामान्य बच्चों की तरह कदम से कदम मिलाकर चलते। खैर अब हम यही चाहते हैं कि कोई भी बच्चा इस बीमारी की चपेट में ना आए।
क्या है टेस्ट :
यह टेस्ट काफी सिम्पल है और इस आसान से टेस्ट के बाद आगे का जीवन कितना सुखमय और आसान हो सकता है। यह टेस्ट गर्भ के 9 वें से 12 वें और 15 से 18वें सप्ताह में किया जाता है। इस दौरान गर्भवती के शरीर से 5 एमएल ब्लड लिया जाता है और प्री नेटल टेस्ट किया जाता है जो यह बताता है कि आने वाला बच्चा क्रोमाजोनल जेनेटिक डिसऑडर से ग्रस्त होगा या नहीं या फिर उसके अंदर न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट ता नहीं। इसे टेस्ट से पता चलता है कि आने वाला बच्चा मंदबुद्धि तो नहीं। गड़बड़ी का पता चलने पर डॉक्टर उसे ठीक करने की कोशिश करते हैं और नहीं तो फिर गर्भपात का विकल्प बचता है।

Thursday, August 6, 2009

बच्चे क्यों हो जाते हैं मंदबुद्धि

जन्म से पहले- क्रोमोसोम में या गुणसुत्र में दोष उत्पन्न होने से। गुणसूत्रों की संख्या कम या ज्यादा होने से या उनमें कोई रचनात्मक दोष आ जाने से बच्चा मानसिक रूप से विकलांग या मंदबुद्धि हो सकता है। गर्भवती महिला की आयु अधिक हो जाने से भी बच्चों के अक्षम पैदा होने की आशंका यहती है। जीन में विकार आ जाने से इससे भी गर्भ में बच्चे का विकास पिछड़ जाता है। यह आणुवंशिक रोग के रूप में भी अपनी जड़ें जमा लेता है और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में आ सकता है। जीन संबंधी दोष से शारीरिक विकृतियां भी उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए गर्भवती महिलाओं को प्रसव के दौरान अपनी जांच करवा लेनी चाहिए। और हां अब गर्भ रहते यह भी जांच संभव है कि कहीं आने वाला बच्चा मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग तो नहीं होगा।
थायरॉइड की कमी:
आयोडीन की कमी के कारण थायरॉइड ग्रंथि कम काम करती है लिहाजा भ्रूण में थायरॉइड की कमी से बच्चे का मानसिक विकास रुक जाता है और बच्चा मंदबुद्धि पैदा हो सकता है। ऐसे में गर्भवती महिला को आयोडीन देकर या जन्म के बाद बच्चे को आयोडीन देकर बचाया जा सकता है। जन्म के वक्त:
समय से पहले जन्म लिए बच्चों या दो किलोग्राम से कम वजन के बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास रुक सकता है। जन्म के बाद बच्चे को यदि सांस संबंधी कोई दिक्कत पेश आए तो सामान्य रूप से जन्मा बच्चा भी मानसिक रोग का शिकार हो सकता है।
जन्म के बाद :
जन्म के कुछ दिन बाद बच्चे को सीजर का अटैक यानि ऐपिलेप्सी (मिर्गी का दौरा) आए तो भी बच्चे का मानसिक विकास रुक जाता है और बच्चा मंद बुद्धि का हो जाता है। ऐसी स्थिति को मां-बाप से बेहतर डाक्टर समझ सकते हैं। इस स्थिति में गर्भवती का इलाज कर रही लेडी डाक्टर जिसे सारी हिस्ट्री मालूम है और जन्म के समय उपस्थित चाइल्ड स्पेशलिस्ट को आपसी सलाह से बच्चे को तुरंत इंक्यूवेटर में डालना चाहिए और साथ ही अन्य एहतियाती कदम उठाने चाहिएं।
तेज बुखार :
मस्तिष्क ज्वर यानि मेनिनजाइटिस या दौरा जैसा मैंने ऊपर जिक्र किया है पडऩे से भी बच्चे के आगे चलकर मंदबुद्धि हो सकता है।
सिर में चोट :
18 वर्ष तक यदि सिर में चोट आती है तो भी मानसिक विकास रुक सकता है। नवजात बच्चों पर खास ध्यान देना चाहिए ताकि उनके सिर में चोट न लगे।