Wednesday, November 18, 2009

नन्हे पंखों संग मुस्कुराया चांद


शब्द बहुत कुछ नहीं करते पर इनका स्पंदन अंतरिक्ष में होता है और उसकी सार्थक प्रतिक्रिया धरती पर भी होती है। सेरिब्रल पाल्सी, प्रिजोरिया, मस्कुलर डिस्ट्रोफी, थेलेसिमिया और ऑटिस्टिक से प्रभावित बच्चों के हक में सार्थक और सकारात्मक शब्दों को अबतक जोड़ता रहा हूं, कॉस्मिक एनर्जी से प्रार्थना करता रहा हूं कि इनके अंदर के पॉजिटिव वाइब्रेशन को अपनी ऊर्जा से सींचो और इन्हें भी फलने फूलने दो। इन में से हरएक बीमारी पर शोध हो रहे हैं। दुआ करता हूं शोध में लगे शोधकर्ताओं को जल्दी सफलता मिले। आज नन्हे पंखों के लिए कुछ गुनगुनाने का मन कर रहा है। मेरा छह वर्षीय बेटा कुशाग्र जो सीपी का मरीज है, गाना सुनने का शौकीन है। उसे थपकी देकर सुलाते, कभी टहलाते कभी बिस्तर पर यूहीं उसके साथ खेलते मैंने गुनबुन कर जो उसे सुनाया आज उनमें से एक-दो नन्हे पंखों के लिए भी परोस रहा हूं। 15 अगस्त को बाबू के साथ टहलते हुए ये अहसास शब्दों में ढल गए ।
चल री खुशी.......
चल री खुशी चल।
नदिया संग कलकल छलछल ।।
चल री खुशी चल।
मेरे मन के सूने आंगन में
कोई फूल खिला चल,
चल री खुशी चल।
बलखाती, लहराती चल
नदिया संग कलकल छलछल ।।
चल री खुशी चल।
तू भूल गई तो रुठे सब,
अपने जितने थे, झूठे सब,
रिश्ते-नाते भूल
चल री खुशी चल।
नदिया संग कलकल छलछल ।।
होठों पर मुस्कान लिए चल,
पल पल मीठी तान लिए चल,
आज नया ये ज्ञान लिए चल,
चल री खुशी चल।
नदिया संग कलकल छलछल ।।

Friday, November 13, 2009

नन्हे पंखों को बाल दिवस की शुभकामना

नन्हे पंखों को बाल दिवस की ढेर सारी शुभकामना और आशीर्वाद। आपके संघर्ष से ऊपर वाला भी पिघले और आपको सामान्य बच्चों सी जिन्दगी दे। मेरी प्रार्थना है, हर बच्चा खुशहाल हो, हंसे, खिलखिलाए और वो सब पा ले जो चाहता है।

Monday, November 2, 2009

गुरु पर्व की शुभकामना

नन्हे पंखों और सभी ब्लॉगर भाइयों को गुरु पर्व की शुभकामना। गुरु पर्व पर परमपिता परमेश्वर से नन्हे पंखों के कष्टों को हरने की प्रार्थना करता हूं।

Wednesday, October 14, 2009

मेरे चारों बेटों को मौत दे दो

लाइलाज बीमारी से पीडि़त बच्चों को इच्छा मृत्यु देने के लिए लगाई राष्ट्रपति से गुहार
वक्त आता है जब आदमी परिस्थितियों से लड़ता हुआ हारने लगता है, हम कहने को कह सकते हैं, चिंता न करें सब ठीक हो जाएगा पर जीत नारायण और उन्की पत्नी के हालात से रू-ब-बरू हाने के बाद ऐसा लिखने या कहने की हिम्मत मै नहीं जुटा पा रहा हूं। फिर भी ईश्वर से प्रार्थना है कि कोई रास्ता निकाले। प्रस्तुत है दैनिक भास्कर के 12 अगस्त अंक में छपा वो अंश।
अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए मां—बाप जिंदगी भर दुआएं करते हैं परंतु उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में ऐसे मां—बाप भी हैं जो लाइलाज बीमारी मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (हड्डियों के भुरभुराकर टूटने)से पीडि़त 10—16 साल उम्र तक के अपने चार बेटों के लिए मौत की दुआएं कर रहे हैं। कहीं से भी कोई मदद न मिलती देख इन्होंने अब राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील को पत्र लिखकर इन बच्चों के लिए इच्छा मृत्यु देने की मांग की है।
लाखों का कर्ज
मिर्जापुर के बाशी गांव के किसान जीत नारायण और उनकी पत्नी प्रभावती चार बेटों दुर्गेश (16) सर्वेश (14)ब्रिर्जेश (11)और सर्वेश(10) के इलाज के लिए पैतृक संपत्ति भी बेच चुके हैं। अब उनके सिर पर लाखों रुपए का कर्जहै। कमाई का भी कोई जरिया नहीं बचा है। प्रभावती का कहना है कि उनके बेटे पांच—पांच साल तक आम बच्चों जैसे थे उसके बाद इस बीमारी ने उन्हें शारीरिक रूप से अक्षम कर दिया। पैरों पर खड़ा होना तो दूर अब तो इनका चलना—फिरना यहां तक कि हिलना—डुलना भी मुश्किल है। डॉक्टरों ने भी इनके ठीक होने की उम्मीद छोड़ दी है। मुझसे अब यह देखा नहीं जाता। इन्हें मौत देने से इनकी सारी तकलीफ खत्म हो जाएगी। जीत नारायण और प्रभावती को अब यह डर सता रहा है कि कहीं यह बीमारी उनकीबेटी को न लग जाए। बेटी की उम्र अभी चार साल है।
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी: पीजीआई में हर साल आते हैं बीस मरह्वीज
चंडीगढ़. पीजीआई के न्यूरोलॉजी विभाग में पड़ोसी राज्यों से सालभर में पंद्रह से बीस मरीज मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के आते हैं। मसल्स को कमजोर करने वाली इस बीमारी का इलाज फिलहाल नहीं है। मसल्स में पहुुंचने वाले प्रोटीन के डिफेक्टिव होने से यह बीमारी होती है। पीजीआई के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर विवेक लाल ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पैरों की मसल्स कमजोर होना शुरू होती हैं फिर हाथों से लेकर अन्य अंगों की मसल्स कमजोर होती हैं। जीन के माध्यम से मसल्स में पहुुंचने वाले प्रोटीन डिफेक्टिव होने से मसल्स कमजोर होने लगते हैं। बीमारी ज्यादा बढऩे पर मरीज का गर्दन से नीचे हिलना डुलना खम्त्म हो जाता है।

Thursday, October 8, 2009

53 साल के जगतीत और 7 साल का दिमाग

बचपन में मेधावी थे जगजीत और अव्वल आते थे
वक्त ने कुछ अजीब सा खेल खेला है----
ब्लॉग के प्रिय साथियों मैं आप सब के सामने एक ऐसे मां की आपबीती सुनाने जा रहा हूं जो चाहती हैं कि उनकी मौत से ठीक पहले उनके बेटे की मौत हो जाए। मैं उदयपुर के जगजीत की केस हिस्ट्री हू-ब-हू वैसे ही परोस रहा हूं जैसा उनकी मां ने मुझे लिख कर दिया। जगजीत 53 साल के हैं लेकिन उनका दिमाग सात साल के बच्चे का है।
जन्म- 23 नवम्बर 1956 दिन शुक्रवार। जन्म के समय वजन साढ़े 9 पाउंड। जगजीत एक हंसते खेलते सामान्य बच्चे की तरह दुनिया में कदम रखा। एक साल में ही चलना और दो साल में स्पष्ट बोलना शुरू कर दिया था जगजीत ने।
बीमारी : पहली बार ढाई साल की उम्र में लीवर की शिकायत हुई जो धीरे-धीरे काफी गंभीर हो गई। कई तरह के उपचार के बाद करीब एक साल में उसकी बीमारी ठीक हुई। उसके बाद वह चार साल तक बिल्कुल स्वस्थ रहा।
स्कूल में प्रवेश : लगभग छह साल की उम्र में पहली कक्षा में भर्ती किया। करीब आठ माह तक पढ़ाई में अव्वल रहा।
टायफाइड : दूसरी बार सात साल की आयु में बीमार हुआ। आयुर्वेद से एक महीने तक इलाज करवाया। उसके बाद अचानक काफी तेज बुखार आया जिसमें जगजीत ने कुछ से कुछ बोलना शुरू किया। उसके बाद हमने उसे इंदौर के एक हास्पीटल में भर्ती करवाया। यहां पर चेकअप के बाद वह कौमा में चला गया। डॉक्टर चेकअप करते और हर बार उसकी रिपोर्ट में कोई न कोई नई बीमारी बतला देते। जांच के बाद उन्होंने उसकी रिपोर्ट में आंखों की रोशनी खत्म होना बताया क्योंकि काली वाली पुतली तो ऊपर चढ़ चुकी थी और आंखें सिर्फ सफेद दिखाई देती थीं। उसे कानों से सुनाई भी नहीं देता था। वह एक लाश की तरह पूरे छह महीने भर्ती रहा। यहां डॉक्टर नाक से नली के सहारे दूध और दवाइयां आदि देते रहे और साथ ही हर दिन रीढ़ की हड्डी से एलपी करके एक से दो सीरिंज सफेद पानी निकालते रहे। पूरे छह माह के बाद उसे धीरे-धीरे होश आना शुरू हुआ। इसी बीच लेफ्ट साइड में पैरालिसिस भी हो गया। यह बड़ी ही भयावह स्थिति थी। न बैठना, न बोलना और चलने का तो सवाल ही नहीं। पूरे एक साल में बैठकर चलना सिखाया गया। डाक्टरों का कहना था कि इसे ब्रेन टीबी हो गया है। दिमाग की नसें तेज बुखार के कारण अब ऐसी स्थिति में पहुंच गईं थीं कि वह पागलों जैसा व्यवहार करने लगा। जैसा हम कहते, वह वैसा ही चिल्ला कर बोलता रहता। गुस्से में उसके हाथ में जो भी आता फेंक देता अपने आप को मारता रहता। इस कारण से उसके दोनो हाथों को पलंग से बांधकर रखना पड़ता। जब कुछ माह बाद चलना सीखा तो घर से भागना शुरू कर दिया। पागलों जैसी स्थिति में कहीं भी भाग जाता उसके बाद मेरा, मेरे बड़े बेटे का और आसपास के लोगों का काम सिर्फ ढूंढना रहता। कभी-कभी सारा-सारा दिन नहीं मिलता। इसके बाद हमने हार कर उसे एक लम्बे चेन से बांध कर रखना शुरू किया। चेन इतनी लम्बी थी कि वह घर के हर हिस्से में जा सके। टायलेट, बाथरूम जा सके। इसके बावजूद वह चकमा देकर भाग जाता, कभी किसी बस में चढ़कर कहीं चला जाता। कभी-कभी ट्रेन में चढ़कर भाग जाता। इतना ही नहीं दो-दो,चार-चार यहां तक की आठ-आठ दिन भटकता रहता। लोग उसे बड़ी बुरी हालत में पकड़कर घर लाते। भूखा-प्यासा भटकता रहता। इसके अलावा तीन बार तो ऐसा भागा कि 12 दिनों बाद मिला और एक बार 25 दिनों के बाद। जिस हाल में उसे लाया गया उसे लिखना या बताना असंभव है। घर आने पर उसकी बातों से जानकारी मिलती कि यह उन दिनों मुंबई, पूणा, मद्रास और न जाने कहां-कहां भटकता रहा। जगजीत का छोटा भाई उन दिनों ढाई साल का था जिसे लेकर हम भोपाल में अखबारों में रिपोर्ट छपवाते, हर स्टेशन पर पंपलेट बंटवाते, उसे दीवारों पर खुद और लोगों की मदद से चिपकाते। आज भी गुस्सा आने पर अपने आप को मारपीट कर घर से निकल जाता है और रात के 12 बजे, 2 बजे तक लौटता है।
हमारी परेशानियां : उपरोक्त समस्याओं को देखते हुए सहज अंदाज लगाया जा सकता है कि हमें किन-किन मुसीबतों का सामना करना पड़ा होगा। कितने तरह के इलाज करवाए, उनमें अनाप-सनाप पैसा खर्च हुआ जिसका अंदाजा लगाना संभव नहीं है। इसकी पूरी सेवा करना, नहलाना, खिलाना, कपड़े बदलना आदि काम मुझे आज भी करने पड़ते हैं और मुझे अंतिम सांस तक इसे करना है। प्रार्थना (जो जगजीत की मां ईश्वर से कर रहीं हैं।) : मेरे मरने से पहले इसे ऊपर बुला लो भगवान नहीं तो मैं चैन से मर भी नहीं सकूंगी।
श्रीमती निर्मला कपूर,6, गणेश मार्ग, निर्मल कुंज, उदयपुरराजस्थान। फोन : 2490767
साथियों ये जगजीत और उनके मां की दास्तां है। और न जाने कितने ज़ख्म ऐसे हैं जिसे टटोलने से मन पर दर्द के फफोले अनायास उभर आते हैं। चकाचौंध के बीच एक दुनिया यह भी है, जिन्दगी की सिलवटें हैं और नितांत अंधेरा है, तनहाई है। हो सके तो इस नंबर पर फोन कर निर्मलाजी को हौसला दीजिएगा कि लोग हैं जो उनके साथ हैं, आपके बाद भी जगजीत जगमगाता रहेगा। वैसे आप खुद दो सौ साल जिएं, कामना है और आप जैसी मां को जीना भी चाहिए क्योंकि आप मां की एक मिसाल हैं। दीपावली के इस शुभ अवसर पर मैं इन्हें शुभकामना देता हूं, ईश्वर इनकी सुने और इनका जीवन रोशनी से भर दे।

Sunday, September 27, 2009

विशेष बच्चें ने मनाया दशहरा


यह ब्लॉग अक्षम बच्चों के संघर्ष को समर्पित है
विभिन्न प्रकार की मानसिक समस्याओं से जूझ रहे बच्चों को भी त्योहार का आनंद प्रदान करने के लिए शुक्रवार को सेक्टर—36 स्थित सोरेम इंस्टीट्यूट में दशहरा मनाया गया। कार्यक्रम में शामिल विशेष बच्चों और उनके अभिभावकों ने आपस में बातचीत कर विभिन्न समस्याओं का समाधान ढूंढऩे का भी प्रयास किया। इस मौके पर मोहाली दशहरा कमेटी के सहयोग से रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले जलाए गए। सोरेम की सचिव प्रोमिला चंद्रमोहन ने बताया कि दशहरा के उपलक्ष्य पर बच्चों को त्योहार की खुशियां प्रदान करने का यह हमारा छोटा सा प्रयास है। आतिशबाजी की बच्चों ने भी इस आयोजन का भरपूर आनंद लिया। इस मौके पर शानदार आतिशबाजी भी की गई।

Monday, September 21, 2009

नवरात्र की शुभकामना

नन्हे पंखों को नवरात्र की ढेर सारी शुभकामना। ईश्वर करे उनकी हर मनोकामना पूरी हो। माता रानी की चौखट तक अगर मेरी आवाज पहुंचे तो मैं उनसे विनती करता हूं कि सभी अक्षम बच्चों को स्वस्थ कर दें। सभी ब्लॉगर भाइयों को भी नवरात्र की ढेर सारी शुभकामना। कामना है, उनकी हर मनोकामना पूरी हो।

Friday, September 4, 2009

दूर तक छलेगा यह उजाला, अंधेरे साजिश करेंगे

आधुनिकता के इस षडयंत्र के साथ नीचे पढ़ें नन्हे पंखों का दर्द।

थर्मल पॉवर के रैडिएशन से बच्चे हो रहे विकलांग


यह उजाला एक भ्रम है, एक छलावा है। इस उजाले के पीछे एक विशाल अंधेरी खाई है। 2010 तक पंजाब को रोशनी से नहला देने की जुगत में लगी पंजाब सरकार इस सत्य को स्वीकार करना नहीं चाहती की थर्मल प्लांट से निकलने वाले रैडिएशन से बच्चों का मानसिक विकास बाधित हो रहा है। फरीदकोट में सेरिब्रल पाल्सी के बच्चों के बाल में पाया जाने वाला यूरेनियम का भटिंडा के थर्मल पॉवर प्लांट से निकलने वाले धुएं और रैडिएशन से गहरा नाता है। मालवा में बच्चों की स्थिति और भी दयनीय है। यहां लगातार लोगों में कैंसर की शिकायतें आ रही हैं, बर्थ डिफेक्ट्स और साथ ही शारीरिक व मानसिक विकलांगता सामने आ रही है। मास्को की न्यूक्लीयर रिसर्च करने वाला अग्रणी संस्था आरआरसी कुर्चाटोव इंस्टीट्यूट ने पिछले महीने प्रकाशित अपने एक लेख में कहा था कि कोल बेस्ड पॉवर स्टेशन के आसपास के इलाके में रहने वाले रैडिएशन के कुप्रभाव से बच नहीं सकते और इस कारण उन्हें गंभीर स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें पेश आती हैं। इससे नवजात बच्चों के मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग होने का खतरा रहता है। भटिंडा, फरीदकोट और मालवा सहित आसपास के इलाकों में लगातार मंदबुद्धि (मेंटली चायलेंज्ड) बच्चे पैदा हो रहे हैं। इन सबको नजरंदाज करते हुए गिद्दरबाहा, राजपुरा और तलवंडी साबो में नये थर्मल पावर प्लांट लगाने की तैयारी हो रही है। यह गंभीर चिंता का विषय है। ऐसे उजाले का कोई मतलब नहीं है जिसके पीछे अंधेरे का विशाल साम्राज्य हो। अंधेरे की इस साजिश में कई नन्हे पंखों की उड़ान को ग्रहण लग जाएगा। पंजाब सरकार को इसपर संजीदगी से विचार करना चाहिए। जब आने वाली पीढ़ी ही अपंग पैदा होगी तो रोशनी से नहाए शहर और गांवों का होना बेमानी हैं।

Sunday, August 30, 2009

और ऑपरेशन के बाद राहुल हो गया मंदबुद्धि

ग्लैमर से लबरेज इस दुनिया में जहां वैसे सपने बोए जा रहे हैं जिनपर हकीकत के फल कम ही लगते हैं वैसे में यर्थाथ की घरातल पर सोचने वाले लोग कम ही हैं। ऐसे में मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग लोगों के लिए अगर कोई सोचता है तो यह हैरत की भी बात है और खुशी की भी। पवन ऐसा ही एक युवा है जो अक्षम बच्चों के प्रति संजीदगी से सोचता है। हाल ही में उसने अपने पड़ोस में रहने वाले एक मेंटली रिर्टाडेड बच्चे राहुल के जीवन की तस्वीर खींची। उसने जो हमसे साझा किया वह आपलोगों के सामने परोस रहा हूं। राहुल 14 साल का है। अपने 14 साल की इस जिन्दगी को उसने बनवास की तरह काटा है। आगे हम सभी संवेदित लोगों और नन्हें पंख की ओर से दुआ करते हैं कि उसे इस बनवास से मुक्ति मिले और वह जीवन की मुख्य धारा से जुड़ पाए।
पवन ने जो महसूस किया-------
राहुल यानि जीवन को देखने का एक अलग ही नजरिया। ऐसा क्या है जिसने मुझे राहुल की जिन्दगी में झांकने को मजबूर किया। ऐसा क्या हुआ जो राहुल की जिन्दगी को ग्रहण लग गया। आइए उसकी जिन्दगी के कुछ पन्नों को पढ़कर आपको सुनाता हूं। बचपन में उसके सिर के पिछले हिस्से में एक उभरा हुआ मांस का गुच्छा था। उसके पिताजी ने बताया कि जब वह सात-आठ दिन का था तो डसॅक्टरों ने उसका ऑपरेशन किया और उसके बाद से ही राहुल बीमार रहने लगा। ऑपरेशन के बाद डॉक्टरों ने कहा कि अब आपका बच्चा ठीक हो जाएगा लेकिन हुआ इसके बिल्कुल उलट। अब उसे बीच-बीच में झटके भी आते हैं जब उसे उल्टियां होने लगती हैं और जोर की ठंड लगने लगती है। उसकी मां ने बताया कि ऐसे झटके आने पर उसे दवा देती हूं और फिर वो सो जाता है और तब जाकर उसका झटका नियंत्रित होता है। अभी उसे दौरा को रोकने के लिए हर रोज एक दवा चल रही है जिससे काफी हद तक आराम है और उसे लगभग एक साल से दौरा नहीं पड़ा। राहुल का एक-एक दिन अंधेरे में रोशनी की तलाश है और उसके परिवार को किसी करिश्मे का इंतजार है। राहुल को आते-जाते देखता हूं तो लगता है जिन्दगी के मायने और और कई मायनों के बीच फंसा है वह नन्ही सी जान। उसके और उसके माता-पिता के यंत्रणा भरे 365 दिनों में से एक दिन निकाल पाना मुश्किल है लेकिन मैंने एक दिन की तस्वीर खींचने की कोशिश की है। रोज हर परिवार की तरह राहुल का परिवार भी उठता है। आज सुबह भी राहुल के घर रोज की तरह हलचल है। राहुल के मां को एक साथ कई कामों को निपटाना है। सबसे पहले राहुल के छोटे भाई निख्लि और बहन शिवानी के लिए नाश्ता तैयार करना है, उनके वाटर बोटल रेडी करने हैं और उन्हें स्कूल भेजना है। इन सब के बीच राहुल कहां है, जी हां वह अभी बिस्तर पर ही पड़ा है। राहुल की मां जब इन सब कामों में व्यस्त होती है, उनका आधा मन राहुल के पास होता है। कई बार वह जब ज्यादा व्यस्त हो जाती हैं, राहुल का ध्यान उनके जेहन से निकल जाता है। उस समय राहुल ने पेशाब कर कपड़ा गीला कर रखा है या पोटी कर रखी है या फिर उसे प्यास लगी है इसे वह कैसे व्यक्त करेगा। राहुल बोल नहीं पाता, वह केवल पापा बोलता है। हां यदि उसे कोई चीज चाहिए होती है या वह किसी परेशानी में होता है तो वह जोर से चिल्लाता है। रात में तो वह इतनी जोर से चिल्लाता है कि कोई अजनबी हो तो उसे लगेगा कोई अनहोनी हो गई है पर हमे और उसके परिवार को इसकी आदत हो गई है। राहुल की मां के लिए यह चीख एक पुकार है उसके बेटे की मानो वह कह रहा हो 'मां मै परेशान हूं मेरी मदद करो, मुझे इस जिन्दगी से निकालो।Ó जब सब बच्चे तैयार होकर स्कूल चले जाते हैं तो राहुल की मां उसे दूध-रोटी देती है। सुबह नौ बजे से दोपहर चार बजे तक वह कुर्सी पर बैठकर, बिस्तर पर लेटकर या टीवी के किरदारों को देख बिताता है। इस बीच उसकी मां उसके गीले कपड़ों को साफ करती है और साथ में उससे बोलती-बतियाती भी रहती है ताकि उसे अकेलापन न लगे। राहुल के भाई-बहन के आने के बाद शुरू होता है उनके खेलने का दौर पर राहुल चाहकर भी उनके साथ खेल नहीं पाता। वह कुर्सी पर बैठ उन्हें निहारता रहता है। बीच-बीच में ताली बजाकर वह अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त करता रहता है। कभी-कभी वह अपनी कुर्सी जोर-जोर से हिलाने लगता है मानो कह रहा हो मुझें भी अपने साथ खेलने दो। मैं भी तुम सब के पीछे भागना चाहता हूं, छुपम-छुपाई खेलना चाहता हूं। बच्चों की इन्हीं किलकारियों और राहुल की बेबसी के बीच शाम ढलने लगती है। रात घने अंधेरे में डूबने लगती है। ठीक वैसा ही अंधेरा चारों ओर पसर जाता है जो 14 सालों से इस घर को अपनी आगोश में ले रखा है। इस अंधेरे से निकलने की जद्दोजहद जारी है।


Monday, August 24, 2009

मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग छात्रों के लिए छात्रवृत्ति


क्या है योजना :
प्राप्त संस्थानों से तकनीकी या प्रोफेशनल कोर्स करने वाले चुनिंदा विकलांग छात्रों को 2009-10 के लिए राष्ट्रीय छात्रवृत्ति प्रदान की जाएगी।
केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला नेशनल हैंडीकैप्ड फाइनेंस एंड डेवलपमेंट कारपोरेशन तकनीकी व प्रोफेशनल शिक्षा हासिल कर रहे विकलांग छात्रों के लिए राष्ट्रीय छात्रवृति योजना के तहत आवेदन आमंत्रित करता है। आवेदन पत्र का निर्धारित प्रारूप निगम की वेबसाइट पर उपलब्ध है।
छात्रवृत्ति योजना के कुछ मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं-< इसके तहत वर्ष 2009-10 के लिए तकनीकी व प्रोफेशनल शिक्षा हासिल करने वाले 5००योग्य विकलांग छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान की जाएगी।< स्नातक या स्नातकोत्तर स्तर पर अध्ययनरत नेत्रहीन/बधिर या सेरेब्रल पाल्सी से ग्रसित छात्रों को ऐसे कंप्यूटर खरीदने के लिए वित्तीय मदद देना, जिसमें उनके काम करने के लिहाज से समुचित सॉफ्टवेयर हों और उन्हें अपने काम करने में आसानी हो।< स्नातक या स्नातकोत्तर तकनीकी अथवा प्रोफेशनल कोर्स में अध्ययनरत छात्रावास में रहने वाले छात्रों के लिए प्रतिमाह 1000 रुपए और आवासीय छात्रों के लिए 700 रुपए प्रतिमाह और डिप्लोमा/सर्टिफिकेट स्तर के कोर्स करने वाले छात्रावासीय छात्रों को 700 रुपए प्रतिमाह छात्रवत्ति। इसके अलावा प्रतिवर्ष 10,000 रुपए तक कोर्स फीस की प्रतिपूर्ति।पता -पात्रता रखने वाले छात्र छात्रवृत्ति के लिए निर्धारित प्रारूप में आवेदन भरकर निम्नलिखित पते पर आवेदन कर सकते हैं।नेशनल हैंडीकैप्ड फाइनेंस एंड डवलपमेंट कारपोरेशन (एनएचएफडीसी), रेड क्रॉस भवन, सेक्टर-12, फरीदाबाद-121007 आवेदन की अंतिम तिथि - 31 अगस्त 2009- इसे हमने दैनिक भासकर से साभार लिया है

Tuesday, August 18, 2009

15 वर्ष का बच्चा और बुत बनी मां

यह ब्लॉग अक्षम बच्चों के संघर्ष को समर्पित है।

इन्हें हमारे हौसलों और नर्म सहारों की जरूरत है।

कभी-कभी लगता है कोई साथ है, फिर लगता है कहीं भ्रम तो नहीं। इस भ्रम के अंधेरे में जो आपका हाथ थाम ले वही आपका सच्चा साथी है। साथियों मैंने जब भी हाथ बढ़ाया आपने बढ़कर थाम लिया। आपका आभार। पर जरा सोचिये उन नन्हे पंखों को जो खुद से आपकी ओर अपना हाथ नहीं बढ़ा सकते। ऐसे किसी नुक्कड़ पर, मुहल्ले में, गली-चौबारे पर आपको कोई लडख़ड़ाता हुआ सा बच्चा मिल जाए तो उसका हाथ जरूर थाम लीजिएगा। ये अपील उन नन्हें पंखों की जरफ से मैं कर रहा हूं। अभी कुछ दिन पहले मैं कुशाग्र को लेकर चंडीगढ़ के सेक्टर 32 स्थित मानसिक रूप से अक्षम बच्चों के स्कूल गया था। वहां फिजियो, स्पीच और आइक्यू टेस्ट के लिए तीन घंटे तक रहा। इस दौरान वहां पढ़ रहे मंदबुद्धि बच्चों को देखकर लगा कि वो भी उडऩा चाहते हैं, आकाश छूना चाहते हैं। इन्हें हमारे हौसलों और नर्म सहारों की जरूरत है। अभी मैं निकलने ही वाला था कि एक महिला काफी बड़े से बच्चे को गोद में लिए रजिस्ट्रेशन कक्ष में दाखिल हुई। वह बच्चा उसकी गोद में पूरी तरह आ भी नहीं सहा था। मैंने कहा मैम आप कबतक इसे लिए खड़ी रहेंगी बैठ जाइए। स्कूल के कर्मचारियों ने कहा आप तो आज देर हो गईं अब कल नौ बजे आना होगा। इस वक्त दिन के दो बज रहे हैं और टेस्ट में कम से कम तीन से चार घंटे लगते हैं। यह सुनने के बाद उसके चेहरे पर हताशा के बादल स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। कुछ देर तक वह बुत बनी खड़ी रही फिर बाहर लगी कुर्सी पर बैठ गई। मैंने पूछा, बाबू कितने साल का है, उत्तर था 15 का। अभी चल भी नहीं पाता और ना ही बैठ पाता है। कहीं दिखया नहीं? बहुत जगह भटकी हूं, उस महिला ने कहा। कुश की मां ने कहा मैं समझ सकती हूं, मेरा बेटा भी 6 साल से ऊपर का हो गया और वह भी चलने, बैठने और बोलने में असमर्थ है। यह सब सूनने के बाद मैने कहा मैम मैं भी काफी भटका हूं और अब समझ गया हूं कि इसमें लम्बे समय तक फिजियो थेरेपी देने और धीरे-धीरे बच्चों को आसपास की चीजों से परिचय कराने से ही कुछ हासिल हो सकता है और इसके लिए बड़े धैर्य की आवश्यकता है।इस विषय में चंडीगढ़ स्थित प्रयास संस्था के डॉ. वालिया और पटना के डॉ. जयन्त प्रकाश की बात तर्कसंगत लगती है कि बच्चे को फिजियो थेरेपी और आक्युपेशनल थेरेपी से ही बहुत हद तक ठीक किया जा सकता है। डॉ. वालिया भी ऐसे बच्चों की मोबिलिटी पर जोर देते हैं और अपने तमाम भटकाव के बाद मुझे यह बात तर्कसंगत लगती है। अपील : हर गर्भवती का प्रीनेटल टेस्ट जरूर कराना चाहिए।

मानसिक विकलांग बच्चों ने मनाया स्वतंत्रता दिवस


मानसिक तौर पर विकलांग बच्चों ने रविवार को एक विशेष कार्यक्रम में स्वतंत्रता दिवस और जन्माष्टमी उत्सव मनाया। इन बच्चों की देखरेख करने वाली संस्था समर्थ ने चंडीगढ़ के सेक्टर-15 स्थित इंटरनेशनल बॉयज हॉस्टल में इस कार्यक्रम का आयोजन किया। मानसिक विकलांग बच्चों ने बाल कृष्ण, मीरा और सुदामा की भूमिकाएं निभाईं और रासलीला प्रस्तुत की। कृष्ण की भूमिका प्रथम और मीरा की भूमिका सोनिया ने अदा की। इस मौके पर बच्चों के अभिभावक भी मौजूद थे। समर्थ की प्रवक्ता सोनिया दत्ता ने बताया कि यूटी प्रशासन और नेशनल ट्रस्ट, नई दिल्ली के सहयोग से संचालित समर्थ में इस समय 27 बच्चे रह रहे हैं, जिन्हें स्पेशल एजुकेशन दी जा रही है। इसके साथ ही सेंटर में बच्चों को सभी प्रकार की सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं।

Friday, August 14, 2009

तुझसे नाराज नहीं जिन्दगी हैरान हूं मै

यह ब्लॉग अक्षम बच्चों के संघर्ष को समर्पित है।
तुझसे नाराज नहीं जिन्दगी हैरान हूं मै/तेरे मासूम सवालों से परेशान हूं मै। तुम चुपचाप मुस्कुराकर जो सवाल कर देते हो मुझसे, अपनी मां से तो हमें खामोश कर देते हो और दुनिया के तमाम ज्ञानियों को निरुत्तर। तुम्हारी आंखों से जो प्यार छलकता है उसके आगे रोमियो-जूलियट, लैला-मजनू और सोनी-महिवाल का प्यार फीका है। मैं तुम्हारे मासूम निच्छल प्यार पर नतमस्तक हूं। तुम्हारे और तुम जैसे नन्हे पंखों के अंदर कल्पना का जो सैलाब है, मुझे उससे रू-ब-रू होने दो। तुम्हारी भावनाओं को बांटने का हक तुम मुझे दो। मैं उन लोगों को सलाम करता हूं जो लहरों के बीच फंसी तुम्हारी कश्ती को पार लगाने में तुम्हारे संघर्षों में साझीदार हैं और समाज के उस तपके से सवाल करता हूं जो तुम्हारे हिस्से का कोना दबाए बैठे हैं। ये कोना नजरिया मात्र है जिसे बदलने की अपील मैं करता हूं। मासूम नन्हे पंखों मैं तुम्हारे जज्बे को सलाम करता हूं। तुम्हारे अंदर के आकाश में जो सूरज छिपा है, उसे उगना ही होगा। तुम्हारा संघर्ष रंग लाएगा, तुम रोशन होगे, तुम चमकोगे, तुम खिलोगे, तुम्हारे हौसलों की उड़ान जरूर होगी मेरा विश्वास है।
अपील- हर गर्भवती प्रीनेटल टेस्ट जरूर कराएं।

Wednesday, August 12, 2009

मुझे वो दिन याद है

यह ब्लॉग अक्षम बच्चों के संघर्ष को समर्पित है।मानसिक रूप से अक्षम बच्चों के प्रति समाज का नजरिया क्या है इसको 'प्रयासÓसंस्था के एडीओ सह को-ऑडिनेटर एस. सी. शर्मा ने बड़ी संजीदगी से महसूस किया और उसे नन्हे पंख के साथ साझा किया। जनवरी 2006 का वो दिन मुझे आज भी याद है जब पहली बार 'प्रयासÓसंस्था में विशेष बच्चों से मुलाकात की। वो विशेष बच्चे तो दुनिया की छल-कपट से अंजान थे। मैंने समाज में विशेष बच्चों के प्रति बेरुखी देखी है। इन विशेष बच्चों को इनका अधिकार दिलाने व इनको समाज का एक बेहतर हिस्सा बनाने की प्रबल इच्छा थी। मेरा यह सपना प्रयास में आकर पूरा हुआ। उस वक्त प्रयास में केवल आठ बच्चे थे जो ऑटिस्टिक(आत्मविभोरी ) थे। उन बच्चों की अपनी ही दुनिया थी और वो दिन-रात उसी दुनिया में खोए रहते। ये बच्चे खुद पर आत्मनिर्भर नहीं थे। इन्हें अपनी भी पहचान नहीं थी। हमने सबसे पहले इन बच्चों का खुद से परिचय करवाया और फिर इन्हें दैनिक दिनचर्या में लाने की कोशिश शुरू की। इन बच्चों को जहां हमारे फिजिकल सपोर्ट की जरूरत होती वहां हम इन्हें फिजिकल सपोर्ट देते जहां मौखिक तौर पर समझाने की जरूरत होती वहां हम उन्हें मौखिक तौर पर समझाते। सिखाने का सबसे अच्छा तरीका है रोल मॉडलिंग।बच्चों को समाज की मुख्यधारा से जोडऩे के लिए जरूरी है कि जब बच्चे दैनिक कार्यों में सक्षम हो उन्हें धीरे-धीरे शिक्षण गतिविधियों में निपुण किया जाए। हमने ऐसा ही किया। प्रयास प्रीपरेटरी स्कूल में श्रद्धा, निकिता, अंकित, मन्नत जैसे कई बच्चे आत्मनिर्भर हुए। वो अपने दैनिक कार्यों में तो सक्षम हैं हीं पढ़ाई में भी आगे हैं। शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम बच्चों के प्रति समाज का नजरिया सकारात्म होना चाहिए। ऐसे बच्चों को फिजियो और ऑक्युपेशनल थेरेपी से ही ठीक किया जा सकता है। समाज से मेरा अनुरोध है कि इन बच्चों को सजा, संवारकर आत्मनिर्भर बनाने के लिए आगे आएं। संस्था और समाज का योगदान मिल जाए तो इन बच्चों की जिन्दगी में भी उजाला आ सकता है। इन्हें आपका स्नेह चाहिए। साथ में नन्हे पंख की ओर से विनती, अनेरोध आग्रह जा कह लें, पढ़ें, जानें और लोगों को भी बताएं कि प्रीनेटल टेस्ट हर गर्भवती को कराना चाहिए।
For Moms
Have you under taken the prenatal screening.
5 ml of blood is taken from pregnant woman for screening between 9th to 12th week or 15th to 18th week of pregnancy. This test can ensure that your child if free from chromosomal Genetic disorder and Neural tube defects.
Every pregnant woman should go through this test.

Must read the article below

Sunday, August 9, 2009

हर गर्भवती को करना चाहिए प्री नेटल स्क्रीनिंग

यह ब्लॉग अक्षम बच्चों के संघर्ष को समर्पित है।
हमें इस बात को लेकर अचरज है कि भारत में काफी लोगों को अभी इस टेस्ट के बारे में जानकारी नहीं है। सन 2002 में जब कुशाग्र का जन्म हुआ तब भी हमें इस टेस्ट के बारे में पता नहीं था और ना ही लेडी डॉक्टर जगदीश्वरी मिश्रा ने हमें इस टेस्ट के बारे में बताया। फिलहाल चंडीगढ़ में मेरे साथ काम करने वाले गुलशन कुमार का बच्चा भी ऑटिस्टिक है और उनसे बात करने पर उन्होंने भी बताया कि उन्हें भी गायनोक्लोजिस्ट ने इस टेस्ट के बारे में नहीं बताया। आज अगर मैं और गुलशन जैसे लाखों मां-बाप ने यह टेस्ट कराया होता तो हम सब के बच्चे भी सामान्य बच्चों की तरह कदम से कदम मिलाकर चलते। खैर अब हम यही चाहते हैं कि कोई भी बच्चा इस बीमारी की चपेट में ना आए।
क्या है टेस्ट :
यह टेस्ट काफी सिम्पल है और इस आसान से टेस्ट के बाद आगे का जीवन कितना सुखमय और आसान हो सकता है। यह टेस्ट गर्भ के 9 वें से 12 वें और 15 से 18वें सप्ताह में किया जाता है। इस दौरान गर्भवती के शरीर से 5 एमएल ब्लड लिया जाता है और प्री नेटल टेस्ट किया जाता है जो यह बताता है कि आने वाला बच्चा क्रोमाजोनल जेनेटिक डिसऑडर से ग्रस्त होगा या नहीं या फिर उसके अंदर न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट ता नहीं। इसे टेस्ट से पता चलता है कि आने वाला बच्चा मंदबुद्धि तो नहीं। गड़बड़ी का पता चलने पर डॉक्टर उसे ठीक करने की कोशिश करते हैं और नहीं तो फिर गर्भपात का विकल्प बचता है।

Thursday, August 6, 2009

बच्चे क्यों हो जाते हैं मंदबुद्धि

जन्म से पहले- क्रोमोसोम में या गुणसुत्र में दोष उत्पन्न होने से। गुणसूत्रों की संख्या कम या ज्यादा होने से या उनमें कोई रचनात्मक दोष आ जाने से बच्चा मानसिक रूप से विकलांग या मंदबुद्धि हो सकता है। गर्भवती महिला की आयु अधिक हो जाने से भी बच्चों के अक्षम पैदा होने की आशंका यहती है। जीन में विकार आ जाने से इससे भी गर्भ में बच्चे का विकास पिछड़ जाता है। यह आणुवंशिक रोग के रूप में भी अपनी जड़ें जमा लेता है और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में आ सकता है। जीन संबंधी दोष से शारीरिक विकृतियां भी उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए गर्भवती महिलाओं को प्रसव के दौरान अपनी जांच करवा लेनी चाहिए। और हां अब गर्भ रहते यह भी जांच संभव है कि कहीं आने वाला बच्चा मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग तो नहीं होगा।
थायरॉइड की कमी:
आयोडीन की कमी के कारण थायरॉइड ग्रंथि कम काम करती है लिहाजा भ्रूण में थायरॉइड की कमी से बच्चे का मानसिक विकास रुक जाता है और बच्चा मंदबुद्धि पैदा हो सकता है। ऐसे में गर्भवती महिला को आयोडीन देकर या जन्म के बाद बच्चे को आयोडीन देकर बचाया जा सकता है। जन्म के वक्त:
समय से पहले जन्म लिए बच्चों या दो किलोग्राम से कम वजन के बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास रुक सकता है। जन्म के बाद बच्चे को यदि सांस संबंधी कोई दिक्कत पेश आए तो सामान्य रूप से जन्मा बच्चा भी मानसिक रोग का शिकार हो सकता है।
जन्म के बाद :
जन्म के कुछ दिन बाद बच्चे को सीजर का अटैक यानि ऐपिलेप्सी (मिर्गी का दौरा) आए तो भी बच्चे का मानसिक विकास रुक जाता है और बच्चा मंद बुद्धि का हो जाता है। ऐसी स्थिति को मां-बाप से बेहतर डाक्टर समझ सकते हैं। इस स्थिति में गर्भवती का इलाज कर रही लेडी डाक्टर जिसे सारी हिस्ट्री मालूम है और जन्म के समय उपस्थित चाइल्ड स्पेशलिस्ट को आपसी सलाह से बच्चे को तुरंत इंक्यूवेटर में डालना चाहिए और साथ ही अन्य एहतियाती कदम उठाने चाहिएं।
तेज बुखार :
मस्तिष्क ज्वर यानि मेनिनजाइटिस या दौरा जैसा मैंने ऊपर जिक्र किया है पडऩे से भी बच्चे के आगे चलकर मंदबुद्धि हो सकता है।
सिर में चोट :
18 वर्ष तक यदि सिर में चोट आती है तो भी मानसिक विकास रुक सकता है। नवजात बच्चों पर खास ध्यान देना चाहिए ताकि उनके सिर में चोट न लगे।

Friday, July 24, 2009

जिन्दगी की आपाधापी में जो पीछे छूट गए। किसी ने पीछे मुड़कर देखा भी नहीं वो पुकारते रहे। उत्तरआधुनिकता के इस शोर में वो बच्चे जो सेरिब्रल पाल्सी (मानसिक विकलांगता) के मरीज हैं, बेहद अकेले और शून्य में हैं। अपने घर में और किसी नुक्कड़ पर वो जब चुपचाप टुकटुक मुझे निहारते हैं तो मैं कई सवालों से घिर जाता हूं और खुद को बेहद असहाय और लाचार पाता हूं। इस वक्त जब मैं आपसे बतिया रहा हूं, कई मासूम बेजुबान नन्हें पंख अकेले अपने बिस्तर पर पड़े शून्य में निहार रहे होंगे। कोई शक्ति है अदृश्य सुना है, कामना है इन बच्चों की खिलखिलाहट लौटा दें, इनके हिस्से का जीवन इन्हें दें। जिन्हें सबकुछ मिला और जिन्हें कुछ नहीं मिला उन सबकी तलाश में आपसे मुखातिब हैं कुछ शब्द-------

जिंदगी की तलाश में

यह ब्लॉग अक्षम बच्चों के संघर्ष को समर्पित है।

जिंदगी में कुछ नही था कुछ के सिबा

जो कुछ था वो कुछ के लिए था और

कुछ के लिए था सबकुछ और

कुछ की तलाश में जो कुछ थे वो

जिंदगी भर ढूंढते रहे कुछ-कुछ

Thursday, July 23, 2009

यह ब्लॉग अक्षम बच्चों के संघर्ष को समर्पित है।

यह ब्लॉग अक्षम बच्चों के संघर्ष को समर्पित है। मानसिक रूप से अक्षम बच्चों के लिए अभी और कम करने की जरुरत है। भारत में मानसिक रूप से विकलांग बच्चों की संख्या तीन प्रतिशत है और इसके मुकाबले काम करनेवाली संस्थानों की संख्या काफी कम है। सरकार को और एनजियो को अभी और सार्थक कदम उठाने की जरुरत है।

Wednesday, July 15, 2009

घो-घो रानी, थोड़ा है पानी

घो-घो रानी, थोड़ा है पानी उदास है नानी।घो-घो रानी, कितना पानी का खेल अब हकीकत बन कर हलक को तरसाने लगा है। नन्हे पंखों नानी की चिंतित इसलिए है कि कल को उनके बच्चों को प्यास लगेगी तो पानी कहां से आएगा। अभी दो दिन पहले ही नानी हरिद्वार की यात्रा से लौटी है और वहां गंगा का हाल देखकर अंदर तक व्यथित है। मै आपकी नानी के साथ जिस फ्रेम के साथ गंगा दर्शन को हरिद्वार गया था वह फ्रेम वहां जाते ही छोटा हो गया। लोगों ने आस्था के नाम पर गंगा को इतना मैला कर दिया है कि भक्ति की भावना घाट पर पहुंचते ही छूमंतर हो जाती है। सब लोग अपने कांवर, प्लास्टिक बैग और यहां तक कि चप्पल भी गंगा में फेंक रहे थे। इससे हरकी पैड़ी में गंगा का पानी काफी प्रदूषित हो गया है। हमने प्रकृति को संरक्षित और सुरक्षित रखने के लिए धर्म का जो आवरण गढ़ा था, आस्था के उसी सैलाब ने प्रकृति को तहस-नहस कर दिया है। अब नदियों को बचाने की जिम्मेवारी आपको उठानी होगी नन्हे पंखों। गंगा में जो 170 करोड़ लीटर कचरा प्रति दिन बहाया जा रहा है उससे गंगा मईया को बचाने के लिए अश्वमेघ यज्ञ करना होगा।

Friday, July 10, 2009

आदमी को आदमी के साथ खड़ा होना चाहिए

आदमी को आदमी के साथ खड़ा होना चाहिए। आदमी दीवारों के बीच खड़ा है इसलिए आदमी की आवाज नहीं सुन रहा है आदमी। आदमी पैसों की झनकार के बीच खड़ा है इसलिए अकेला है आदमी। अहंकारों के बीच खड़ा है आदमी इसलिए आदमी को दिखाई नहीं दे रहा है आदमी। आदमी को आदमी का चश्मा चाहिए, आदमी का दिल चाहिए। आदमी को आदमी के साथ खड़ा होना चाहिए।

Tuesday, July 7, 2009

इन्हें तो रोज सलाखों से दागो

आज इंडियन एक्सप्रेस पढ़ रहा था कि अचानक एक खबर ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींच लिया। शर्षक था, 'बोथ अक्यूज्ड रेप्ड विक्टिम, मोर दैन वन्स : एडमिनिस्ट्रेशन काउंसिलÓ हेडिंग के बाद खबर पढ़ी तो घटना की गंभीरता का पता चला। घटना चंडीगढ़ के सेक्टर 26 स्थित नारी निकेतन की है जहां काम करने वाले दो लोगों ने एक 19 वर्षीय मेंटली रिटार्डेड लड़की के साथ कई-कई बार बलात्कार किया। बलात्कार करने वालों में एक भूपेंद्र सिंह जबकि दूसरा 52 वर्षीय जमना कुमार(गार्ड नारी निकेतन) है। इन दोनों के खिलाफ केस दर्ज करने वाले यूटी एडमिनिस्ट्रेशन के वरिष्ठï वकील अनुपम गुप्ता का कहना है कि दोनों अभियुक्तों ने उससे पहले तो नारी निकेतन में बलात्कार किया और फिर बाद में जब उसे सेक्टर 32 के मेंटली रिटार्डेड इंस्टीट्ïयूशन में भेज दिया गया तो ये दोनों वहां जाकर भी बाथरूम में उसके साथ जबर्दस्ती की। पिलहाल वह गर्भवती है और पीजीआई साइकैट्रिस्ट डिपार्टमेंट के प्रोफेसर अजीत अवस्थी का कहना है कि उसे पता है कि उसके पेट में बच्चा है और वह उसे खोना नहीं चाहती है। यह घटना समाज की उस मानसिकता को उजागर करता है जिसे सख्ती से रोके जाने की जरूरत है। ऐसे संस्थानों में ऐसे बच्चों को लेकर अति संवेदनशील लोगों को ही रखा जाना चाहिए। हां एक बात और है लड़कियों के संस्थान में जूडो या अन्य मार्शल आर्ट से प्रशिक्षित लड़कियों को ही रखा जाना चाहिए। लड़कों के संस्थान में लड़कों को। हां जहां तक पकड़े गए भूपेन्द्र और जमना की बात है तो इन्हें ताउम्र जेल के एक सेल में बंद कर देने की सजा दी जानी चाहिए और हर रोज गर्म सलाखों से पूरे अंग को दागा जाना चाहिए एवं जेल में ही इनकी मौत के बाद लाश को लावारिस कहीं फेंक दिया जाना चाहिए।

Monday, June 29, 2009

यह अंधेरे का अध्याय है

यह अध्याय कहीं से भी शुरू हो सकता है क्योंकि यह अंधेरे का अध्याय है जिसकी न कभी कोई शुरुआत थी और न ही कोई अंत दिखाई दे रहा है। इस अध्याय का जन्म ही अंधेरे में हुआ और भविष्य में गढ़े गए कई फ्रेम को चकनाचूर कर गया। जो सपना देखा, गढ़ा वह हकीकत में सांस लेने को आज भी छटपटा रहा है। साढ़े छह साल बीत गए हमारे इस अंधेरे सफर को, कुशाग्र भी इतने का ही हो चला है। हमारे तमाम दिली, दिमागी और शारीरिक मैराथन के बावजूद चलने, बोलने और बैठने में असमर्थ है। इस बीच अंधेरे के जिन्न ने एक और कलाबाजी की, कुशाग्र की मां अमृता भी मानसिक तौर पर कुंठित हो चली है। फोर्टिस ने उसे कुशाग्र की चिंता करते-करते डीप डिप्रेशन और ट्रॉमा में चले जाने की बात कही है। आलम यह है कि 19 मई को उसके पेट और स्पाइन में उठा तेज दर्द, होप नर्सिंग होम, पीजीआई चंडीगढ़ और फोर्टिस में दिखाने के बाद भी हर एक दो दिन पर ऊभर आ रहा है। सारे रिपोट्ïर्स नार्मल हैं सिवाय इंडोस्कोपी में उसकी अंातों में आया स्क्रैच पर डॉक्टर नागपाल (होप) और डॉ. अरविंद साहनी (फोर्टिस) का कहना है कि यह साइकाजनिक पेन है। हेप के डॉ. नीरज नागपाल और डॉ. साहनी ने उसे चिंता कम करने की सलाह दी है और खुश रहने को कहा है। इस बीच फोर्टिस के मनोचिकित्सक हरदीप सिंह ने उसे बेहद गंभीर मानसिक अवसाद में बताया है और नींद की दवा दी है।खैर अंधेरे के इस नए अध्याय के कारण कुशाग्र को सेराजेम से मिलने वाली थेरेपी रुक गई है, प्रयास की ऑक्युपेशनल व फिजियो थेरेपी भी छूट चुकी है। इस संघर्ष में फिलहाल मैं अकेला रह गया हूं। भगवान में मेरी अटूट आस्था भी अब डगमगाने लगी है। 27 जून की रात साढ़े 11 बजे मुझे आफिस में फोन आया कि अमृता के पेट में तेज जलन है। आफिस से जल्दी काम निपटा जब घर पहुंचा तो उसे भगवान के दरवाजे के पास लेटकर छटपटाता पाया। मेरे पहुंचते ही उसने भगवान के दरवाजे में ताला लगा देने को कहा, 'पूजा नहीं होगीÓ सब झूठ है। इन दिनों मेरे मकान मालिक और मित्रगण भी कहने लगे हैं, आप इतना पूजा पाठ करते हैं फिर आप के ही साथ ऐसा क्यों होता है। मैं भी अब सोचने को मजबूर हूं कि आखिर कब तक इम्तिहान लेंगे इश्वर। अब धीरे-धीरे कुशाग्र बड़ा हो रहा है और हम उम्रदराज। पिछले तीन-चार महीने से वह उसे नहाने बाथरूम तक ले जाने में असमर्थ हो गई थी। अब उसे मुझे ही नहलाना पड़ता है और इस दौरान मैंने महसूस किया कि नहलाने में रीढ़ की हड्ïडी अकड़ जाती है। बबली यानि अमृता बिना कुछ बोले एक साल तक जो कुश को उठाने, नहलाने सहित जो उसके सारे काम प्लस घर के काम करती रही इससे उसके शरीर पर गंभीर प्रतिकूल दबाव पड़ा और फिर भी उन्य बच्चों की तरह सामान्य न होने का मनोवैज्ञानिक तनाव भी साथ-साथ सालता रहा। गौर करने वाली बात यह है कि यह सिर्फ हमारी कहानी नहीं है, यह हम जैसे तमाम उन मां-बाप की कहानी है जिनके बच्चे सीपी के मरीज हैं। मैं ऐसे बच्चों के लिए एक आश्रम बनाने के लिए प्रयासरत हूं जहां ऐसे बच्चों को रखने और उनके समुचित देखभाल के लिए व्यवस्था की जा सके। इसमें समाज के प्रबुद्ध लोगों का मार्गदर्शन मुझे चाहिए। हां मेरा एक स्वार्थ भी इसमें निहित है जो मुझ जैसे तमाम माता-पिता के स्वार्थ से जुड़ा है कि कम से कम हम इस सुकून से मर सकें कि हमारे न रहने पर भी एक संस्था है जो हमारे बेटे और हम जैसे उन तमाम मां-बाप के बेटों की देखभाल कर सके। भारत सरकार से भी हमें इसमें मदद चाहिए। उम्मीद के साथ आपका अमलेन्दु अष्ठïानासीनियर सब एडीटर, दैनिक भास्कर चंडीगढ़।09217668495

Tuesday, June 23, 2009

आप सब बच्चों को आशीर्वाद

काफी दिनों से आप सब से बात नही कर पाया हूँ। अक्षम बच्चों के लिए समाज में चेतना जगाने की जरूरत है। समाज के हेर तपके से उन्हें आशीर्वाद चाहिए।

Wednesday, March 18, 2009

मंदबुद्घि बच्चों के बालों में मिला यूरेनियमजर्मन लैब की रिपोर्ट में खुलासा

क बारूद के ढेर पर बैठी है दुनिया। हम रचने का सामान कम और विनास का सामान ज्यादा तैयार कर रहे हैं। सृजन का दामन छोड़ जब इंसान संहार का दामन थाम ले तो उसके परिणाम घातक हाने ही होने हैं। हिरोसिमा और नागासाकी की विनास लीला भूल अफगानिस्तान में अक्टूबर 2001 से जनवरी 2003 तक 6 हजार से भी ज्यादा बमों व मिसाइलों का इस्तेमाल किया गया। जिसमें प्रयुक्त यूरेनियम की मात्रा 1000 टन तक होने की आशंका है और इसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। इस संबंध में भासकर में छपी एक रिपोर्ट को साभार प्रस्तुत कर रहा हूं। परमजीत सिंह। फरीदकोट जर्मनी की रिसर्च लैब 'माइक्रो ट्रेस मिनरल लेबोरेट्रीÓ ने भारत से जांच के लिए गए सैंपल में से 82 से 87 फीसदी मंदबुद्घि बच्चों में यूरेनियम मौजूद होने की बात कही है। लैब इंचार्ज और वैज्ञानिक डॉ. ब्लॉर्क बुश के इस खुलासे की सूचना फरीदकोट सेंटर ने भारत सर•ार व राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग नई दिल्ली को भेज दी है। बाबा फरीद स्पेशल चिल्ड्रन सेंटर फरीदकोट द्वारा मई 2008 में 149 बच्चों के बाल सैंपल के रूप में जर्मनी भेजे गए थे। इन्हीं की जांच में डिप्लेटेड यूरेनियम मौजूद होने की आशंका जताई गई है। सेंटर में भारत के सभी प्रांतों के अलावा कनाडा, साउथ अफ्रीका सहित आठ मुल्कों के मंदबुद्धि बच्चे रह रहे हैं। सेंटर हेड डॉ. प्रितपाल सिंह ने बताया कि हमने 6 साल पहले यह सेंटर शुरू किया और मंदबुद्धि बच्चों की स्थिति में नेचरोपैथी और न्यूरोथेरेपी के जरिए सुधार लाने की बात कही।

मंदबुद्घि बच्चों के बालों में मिला यूरेनियम

Sunday, March 15, 2009

छल----

जिसे इंसान ने भी छला, भगवान ने भी छला और विज्ञान ने भी छला। ऐसे तन्हा, अपने आप में गुम, खोए-खोए से रहने वाले शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम नन्हे पंखों के बारे में सोचते हुए जो ख्याल आए उन्हें आप सब से बांटना चाहता हूं।
इसे एक कविता के रूप में आप सब के सामने परोस रहा हूं।
शीर्षक छल----
छल, छल से छलक गया, कोई छल गया/ वर्षों से जो यकीं था उनपर बर्फ सा पिघल गया/ कोई छल गया। झूठ के खिलाफ दम भरने वाले जो थे तमाम/उनसे सच भी कहा तो उनको खल गया/ छल, छल से छलक गया, कोई छल गया/सिरफिरों को समझाने की भूल की थी कभी/ अगले ही दिन सारा शहर दहल गया/ कोई छल गया।
अब ये गुस्ताखी फिर कभी नहीं/ कुछ कहते-कहते मैं फिर संभल गया/उनसे सच भी कहा तो उनको खल गया/ छल, छल से छलक गया, कोई छल गया।

Tuesday, March 10, 2009

नन्हें पंखों को होली की शुभकामना

रंगों सा खिलो/ उमंगों से मिलो/गुलाल से भी गुलाबी दिन हों तुम्हारे/हंसो, खिलखिलाओ रहो सब के प्यारे। नन्हें पंखों आपको ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद। हमारे बï्ïलॉग पर पधारने वाल ब्ïलागरों सहित समाज की सार्थक रचना में जुड़े सभी ब्ïलॉगरों को होली की शुभकामना।यह ब्ïलॉग अक्षम बच्चों के संघर्ष को समर्पित है। इस यज्ञ में आपके योगदान की अपेक्षा है।

Sunday, March 8, 2009

अपने लिए जिए तो क्या जिए.. .

अपने को तो सब संवारते हैं, खुद के लिए तो सभी जीते हैं। दूसरों के लिए जीने का हौसला कोई-कोई ही रखता है। मीना खन्ना एक ऐसी ही महिला है। एक रिक्शा चालक की बेटी होने और घरों में आया का काम करने के बावजूद मीना आज झुग्गी झोपड़ी के नन्हें पंखों को संवारने में जुटी है। वह कहती है कि खुद ज्यादा न पढ़ सकी तो क्या इन बच्चों को उनका आकाश ढूंढने में जरूर मदद करेगी। पिता रिक्शा चलाकर घर चलाते रहे और मीना आर्थिक तंगी के बीच पली बढ़ी। उसने गरीबों की इच्छाओं को दफन होते देखा था। मीना सुबह पढ़ाई करती और शाम में दूसरों के घरों में आया का काम करती।
मीना बताती है कि शादी के बाद जब उसने अपने पति से बच्चों को पढ़ाते रहने की इच्छा जाहिर की तो उसके पति ने भी उसके हौसले को देखते हुए उसकी मदद की। आज वह चंडीगढ़ के सेक्टर 25 में स्लम के बच्चों को पढ़ा रही है। वह एक कमरा बनवना चाहती है ताकि बच्चों को खुले में न पढऩा पड़े। फिलहाल वह 70 बच्चों को स्लम डॉग मिलियनेयर दिखाने के लिए पैसे जमा कर रही है।

Tuesday, March 3, 2009

उनमें हैं बच्चों के लिए कुछ करने का जज्बा

यह ब्ïलॉग अक्षम बच्चों के संघर्ष को समर्पित है। जो लोग इन बच्चों के संघर्ष में साझीदार हैं, हम उनको सलाम करते हैं। ऐसी ही एक संजीदा महिला हैं 78 वर्षीय प्रोमिला चंद। दैनिक भास्कर चंडीगढ़ के वरिष्ठï पत्रकार गुलशन कुमार ने इनसे बात की और स्पेशल बच्चों के बारे में इनकी प्रतिबद्धता को कुछ यूं बयां किया। हम दैनिक भास्कर से साभार लेकर इसे अपने ब्ïलॉग पर प्रकाशित कर रहे हैं।
बुजुर्ग महिला ने शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम बच्चों के लिए खोला खास तरह का स्कूलउम्र के आखिरी दौर में पहुंच चुकी 78 वर्षीय प्रोमिला चंद्र मोहन ने स्पेशल किड्स के लिए शहर में एक ऐसा सेंटर तो बना दिया है जो बच्चों को जिंदगी में अपने पैरों पर खड़ा होने में सक्षम बना रहा है। पर अभी भी काफी काम बाकी है और प्रोमिला चंद्र मोहन ऐसे बच्चों के लिए ही कुछ साल और मांग रही हैं। प्रोमिला चंद्र मोहन के अनुसार लर्निंग डिसेबिल्टीज, डिसलेक्सिक, ऑटिजम, एडीएचडी, मेंटली चैलेंजड जैसी विभिन्न न्यूरो दिक्कतों से जूझने वाले बच्चों की संख्या शहर और आसपास के राच्यों में लगातार बढ़ रही है, जबकि उनके लिए एक भी ऐसा सेंटर नहीं है जो उन्हें अच्छी तरह से समझ सकें। ऐसे में प्रोमिला चंद्र मोहन ने सेक्टर-36 में एक विशेष सेंटर सोरेम (सोसाइटी फॉर द रिहेबिल्टेशन ऑफ मेंटली चैलेंजड), बनाया है जिसमें बच्चों को सामान्य शिक्षा के साथ ही ऑक्युपेशनल थेरेपी, फिजियो थेरेपी, स्पीच थेरेपी, स्पोर्ट्स, संगीत, योग के जरिए सामान्य करने के प्रयास किए जा रहे हैं। बच्चों के लिए वोकेशनल ट्रेनिंग का भी इंतजाम है, जिससे वे आगे चल कर रोजगार भी प्राप्त कर सकें। सेंटर में 40 से अधिक बच्चे एडमिशन ले चुके हैं। इन्फ्रॉस्ट्रक्चर के लिए फंड की कमी : प्रोमिला चंद्र मोहन ने बताया कि प्रशासन से जमीन मिलने के अलावा और भी कई लोगों ने सहयोग किया। लेकिन अभी भी पूरा इन्फ्रॉस्ट्रक्चर तैयार करने और सेंटर को पूरी तरह से क्रियान्वित करने के लिए काफी कुछ करना बाकी है। प्रोमिला के अनुसार ऐसे बच्चों के लिए प्रशिक्षकों से लेकर फंड की भी कमी है। बच्चों की थैरेपीज और ट्रेनिंग के लिए उपकरण एवं सामान काफी महंगा है। स्केटिंग रिंक और बॉस्केटबॉल स्टेडियम बन चुका है, जबकि कुछ इन्डोर गेम्स के लिए तैयारी चल रही है। फिलहाल सोसायटी मेंंबर और अन्य दानी लोग ही फंड् आदि का इंतजाम कर रहे हैं लेकिन बच्चों की बढ़ती गिनती के साथ ही सेंटर की आर्थिक जरूरतें भी बढऩा तय है। बच्चों को समझने की जरूरत: बीते पांच दशकों से खेल और शिक्षा से जुड़ी प्रोमिला चंद्र मोहन के अनुसार स्पेशल किड्स की जरूरतें सामान्य बच्चों से अलग होती है। सबसे पहले यह बात उनके मां-बाप को समझनी चाहिए और फिर शिक्षकों को। ऐसे बच्चों को नजरअंदाज करने के बजाए उनकी तरफ विशेष ध्यान देने की जरूरत है। सही इन्टरवेंशन मिलने से उन्हें भी समाज की मुख्यधारा में शामिल किया जा सकता है। एक्सपेरीमेंटल म्यूजिक एवं गेम्स से ऐसे बच्चों को काफी हद तक सामान्य किया जा सकता है।मां-बाप की मुश्किलें: स्पेशल किड्स की विभिन्न थैरेपीज के लिए चंडीगढ़ और मोहाली में एक-दो प्राइवेट सेंटर हैं तो उनकी फीस आम लोगों के बस से बाहर की बात है। सेंटर में आने वाले मां-बाप भी सरकारी संस्थानों से निराश ही दिखते हैं। ऐेसे ही एक अभिभावक ने बताया कि एक सेंटर में काफी क्लोज इन्वायरमेंट में बच्चों को मशीनी अंदाज में थैरेपीज दी जा रही है और फीस भी काफी भारी-भरकम है। जबकि सोरम काफी खुले स्पेस में बना है और फीस भी आम आदमी की पहुंच में है।

Friday, February 27, 2009

बांद्रा के नन्हें पंखों को हमारा सलाम

बांद्रा के नन्हें पंखों को हमारा सलामप्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती। पतझड़ में भी चमन गुलजार होता है। बांद्रा की झोपड़पट्टी के नन्हें पंखों रूबीना अली और अजहरुद्दीन मोहम्मद इस्माइल आयुश महेश खेदकर और तन्वी गणेश लोनकर को हमारा सलाम। आप देश के लाल हो, फलो-फूलो और पंखभर अपनी उड़ान भरो, हमारी दुआ है।

Wednesday, February 25, 2009

एक खत प्रकृति को

कभी कहीं से वो हवा आए/कोई बूंद तो मुस्कराए/ कोई किरण तो झिलमिलाए।कहीं तो जरूर छिपा है शक्तिपूंज। प्रकृति तुम्हारे पास तो हर विकल्प है। मेरे खाते में और उनके खाते में भी जो मेरे जैसे हैं, खुशियों का दो-चार कतरा डाल दो। नन्हें पंखों को अपनी उंगली थामकर ले चलो सूरज, इनके हिस्से की चांदनी लौटा दो चांद। इन बेजुबानों को शब्ïदों का सहारा दो प्रभु।हमारे हारे हुए मन पर थकान के जो धूल हैं, उन्हें उड़ा ले जाए हवा, बहा ले जाए झरने। कुछ लोग और विज्ञान जो हमारे विश् वास को हमारा भ्रम करार देते हैं, उसे झुठला दो सर्वशक्तिमान। हवा तेज है और उतनी ही तेज है बेचैनियों की आंधी। मन क्या चाहता है, कई बार समझ नहीं पाता। कुछ ऐसे सवाल होते हैं जिनका जबाब सिर्फ और सिर्फ वक्त के पास होता है। हमारे सिराहने चुपचाप जो खाब बैठते हैं, उन्हें सुबह का पता नहीं होता, वह बंद पलकों में भी जागते रहते हैं। हमें उनके सच होने का इंतजार होता है। मै और मुझ जैसे हालात के साझीदार सभी एक भ्रम को सच करने में तुले हैं। दुनिया और मेडिकल साइंस इसे भ्रम कहते हैंऔर हम जैसे कहते हैं सच तो कहीं है, हल जरूर है, इसी पृथ्वी पर। जब इतनी बीमारियां ठीक हो रही हैं तो सीपी पर साइंस क्यूं पंगू बना बैठा है। ऋषि-मुनियों के इस देश में कोई अद्वितीय शक्ति का बाबा क्यों नहीं सामने आता। जब सारी औषधियां, सारे मेडिसिन धरती पर व्याप्त स्रोतों से ही बने हैं तो सेरिब्रल पाल्सी का हल भी धरती पर मौजूद जड़ी-बूटियों और रसायनों में छिपा होगा। इस दिशा में और शोध किए जाने चाहिए ताकि मझदार में फंसे नन्हें पंख अपना आकाश पा सकें।मेरे हौसलों पर थकान की धूल दिख सकती है पर हारा नहीं हूं मै और ना ही हारे हैं वो सभी मां-बाप। कुशाग्र को अभी सेराजेम की ओर से स्पाइन पर एक कोरियन थेरेपी दी जा रही है।
एक खत प्रकृति कोकभी कहीं से वो हवा आए/कोई बूंद तो मुस्कराए/ कोई किरण तो झिलमिलाए।कहीं तो जरूर छिपा है शक्तिपूंज। प्रकृति तुम्हारे पास तो हर विकल्प है। मेरे खाते में और उनके खाते में भी जो मेरे जैसे हैं, खुशियों का दो-चार कतरा डाल दो। नन्हें पंखों को अपनी उंगली थामकर ले चलो सूरज, इनके हिस्से की चांदनी लौटा दो चांद। इन बेजुबानों को शब्ïदों का सहारा दो प्रभु।हमारे हारे हुए मन पर थकान के जो धूल हैं, उन्हें उड़ा ले जाए हवा, बहा ले जाए झरने। कुछ लोग और विज्ञान जो हमारे विश् वास को हमारा भ्रम करार देते हैं, उसे झुठला दो सर्वशक्तिमान। हवा तेज है और उतनी ही तेज है बेचैनियों की आंधी। मन क्या चाहता है, कई बार समझ नहीं पाता। कुछ ऐसे सवाल होते हैं जिनका जबाब सिर्फ और सिर्फ वक्त के पास होता है। हमारे सिराहने चुपचाप जो खाब बैठते हैं, उन्हें सुबह का पता नहीं होता, वह बंद पलकों में भी जागते रहते हैं। हमें उनके सच होने का इंतजार होता है। मै और मुझ जैसे हालात के साझीदार सभी एक भ्रम को सच करने में तुले हैं। दुनिया और मेडिकल साइंस इसे भ्रम कहते हैंऔर हम जैसे कहते हैं सच तो कहीं है, हल जरूर है, इसी पृथ्वी पर। जब इतनी बीमारियां ठीक हो रही हैं तो सीपी पर साइंस क्यूं पंगू बना बैठा है। ऋषि-मुनियों के इस देश में कोई अद्वितीय शक्ति का बाबा क्यों नहीं सामने आता। जब सारी औषधियां, सारे मेडिसिन धरती पर व्याप्त स्रोतों से ही बने हैं तो सेरिब्रल पाल्सी का हल भी धरती पर मौजूद जड़ी-बूटियों और रसायनों में छिपा होगा। इस दिशा में और शोध किए जाने चाहिए ताकि मझदार में फंसे नन्हें पंख अपना आकाश पा सकें।मेरे हौसलों पर थकान की धूल दिख सकती है पर हारा नहीं हूं मै और ना ही हारे हैं वो सभी मां-बाप। कुशाग्र को अभी सेराजेम की ओर से स्पाइन पर एक कोरियन थेरेपी दी जा रही है।

Sunday, February 15, 2009

धन्यवाद

संगीता पुरी सांकृत्यायन और उड़न जी को नन्हें पंखों को आशीर्वाद देने के लिए धन्यवाद । शब्दों का संबल वास्तविक शक्ति है ।

Sunday, February 1, 2009

कुछ बोलो

माँ ने कहा : नन्हें पंखों कुछ बोलो।
सुना है तुम चाँद से बातें करते हो, चांदनी संग मुस्कुराते हो
/सूरज के साथ जागते खेलते हो फिर हमारे साथ बात क्यों नही करते। एसी तमाम माँ के इंतजार को मै सलाम करता हूँ। इनके उम्मीद का आँचल खुशिओं से भर जाए।

Wednesday, January 28, 2009

भीगी पलकें

हमारी पलकें उसे देखकर जब भीगती हैं उस वक्त भी कुशाग्र हमें देखकर मुस्कुराता रहता है।

Friday, January 9, 2009

शुभकामना

नन्हें पंखों की ओर से सभी ब्लागरों को नव वर्ष की शुभकामाना।
आगे मैं आप सब को इस ब्लॉग के उपर दिख रही तस्वीर में जो नन्हा सा मासूम है उसके संघेर्ष की कहानी बताऊंगा। उसका नाम कुशाग्र है। वह मेंटली चैलेंज्ड है।