Thursday, March 11, 2010

हौसला न छोड़ कर सामना जहान का


हौसला न छोड़ कर सामना जहान का
वो बदल रहा है देख रंग आसमान का
हौसला नामुमकिन को भी मुमकिन कर देता है। जो हौसलों के आगे हथियार डाल देते हैं परिस्थितियां उनको और दबाती हैं। बेहतर है विपरीत विरस्थितियों से लडऩा और खुद को साबित करना। मुमकिन है लडऩे वालों को कुछ भी न मिले पर कमसे कम यह गर्व तो होगा कि हम लड़े। और लडऩे वालों को भगवान क्यों नहीं देगा?, उसे देना होगा। चांद को थोड़ी सी ही सही चांदनी, सूरज को अपने तेज का आंशिक हिस्सा देना ही होगा। जिन लोगों ने साबित किया है उन विकलांग लोगों की अदभूत कला ने लोगों को दांतों तले उंगली दबा लेने पर मजबूर कर दिया। तस्वीर क्या कहती है पढ़ें नीचे। जॉर्डन के अम्मान में 'चाइना डिसेबल्ड पीपुल्स परफॉर्मिंग आर्ट ट्रूपÓ (सीडीपीपीएटी) के सदस्यों द्वारा प्रस्तुत बेहतरीन कला का प्रदर्शन। इस डांस गु्रप के सभी सदस्य बधिर हैं। इस नृत्य को 'सहस्रबाहूÓ भी कहा जाता है। इस डांस ग्रुप में कुल 104 कलाकार हैं, जो किसी न किसी रूप से विकलांग हैं। शो में कलाकारों ने गीत, संगीत, नाटक और नृत्य से ऐसा समां बांधा कि लोग मंत्रमुग्ध हो गए।

Sunday, March 7, 2010

गाय ने कन्याओं को जन्म दिया तो पूजा करने जुटे लोग


गाय ने दो कन्याओं को जन्म दिया तो लोगों का हुजूम उन कन्याओं की पूजा करने के लिए सेक्टर 45, चेडीगढ़ के नगर निगम गौशाले में इक_ा हो गया। गौशाले के मालिक ने लोगों से निवेदन किया कि ये खबर झूठी है पर लोगा फूल और मालाओं के साथ वहां जमे रहे। मुझे चंडीगढ़ सहित देश के तमाम लोगों की सोच पर हंसी भी आती है और तरस भी। जिस पंजाब में कन्या भूण हत्याएं होती हैं वहां गाय द्वारा जन्म कन्याओं की पूजा करने लोग दौड़ पड़ते हैं। मैं तो भगवान से यही प्रार्थना कर सकता हूं कि गाएं हीं कन्याओं को जन्म दें तब उनकी भ्रूण हत्या भी नहीं होगी और फूल मालाओं से पूजा कर उनका भव्य स्वागत भी। पंजाब में महिला-पुरुष अनुपात और अफवाह में लिपटी कन्याओं के प्रति लोगों का आकर्षण की खबर नीचे पेश कर रहा हूं।


पंजाब की स्वास्थ्य मंत्री लक्ष्मीकांत चावला के अनुसार पुरुष और महिलाओं का अनुपात २००१ के मुकाबले बढ़ा है पर फिर भी कम है। २००१ में यह प्रति १००० पुरुष ७८७ महिलाएं थीं जो २००९ में बढ़कर प्रति १००० पुरुष ८९४ हो गईं हैं।


लोगों का हुजूम मंगलवार को सेक्टर-45 स्थित नगर निगम की गौशाला की ओर बढ़ा चला जा रहा था। बच्चे, बूढ़े, युवा, स्त्री-पुरुष सब हाथ जोड़े गौशाला के गेट पर खड़े थे। कुछ लोग गेट पर ही माथा टेक रहे थे। अफवाह फैली थी, कि गाय ने बछड़े नहीं, इन्सान के दो बच्चों को जन्म दिया है। यह अफवाह से भी ज्यादा मजाक था, लेकिन भीड़ की नजर एकटक गौशाला की ओर टिकी थी। भीड़ के मुताबिक दिन के 2.30 बजे गौशाला में चारा देने आए किसी व्यक्ति ने लौटकर बताया कि गाय ने दो कन्याओं को जन्म दिया है। यह बात आग की तरह फैली और देखते ही देखते हजारों लोगों का हुजूम गौशाला की गेट तक पहुंच गया। गौशाला इंचार्ज को पता चला तो वह करीब 3 बजे मौके पर पहुंच गए। उन्होंने लोगों को समझाया कि एक सप्ताह से किसी गाय ने कोई बच्चा नहीं दिया है, यह सिर्फ एक अफवाह है। लेकिन लोगों पर उनकी बातों का असर नहीं हो रहा था। लोग हाथ जोड़कर खड़े थे, कुछ लोग प्रसाद चढ़ाने भी आए थे और कन्याओं के दर्शन करना चाहते थे। यह भीड़ आसपास की कॉलोनी और गांव की ही नहीं, बल्कि इसमें शहर के लोग भी शामिल थे। लोग कार और बाइक से गौशाला पहुंचे, जिससे मौके पर जाम के हालात पैदा हो गए। भीड़ धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी। हालात की गंभीरता देख पुलिस बुलाई गई। नगर निगम के अधिकारी केआर चिरवतकर ने लाउडस्पीकर पर घोषणा की कि यह सिर्फ अफवाह है। इसके बावजूद लोग मान नहीं रहे थे। वे जाने के लिए तैयार नहीं थे। इस तरह का सिलसिला देर रात तक चलता रहा। भीड़ देख गौशाला का गेट बंद कर दिया गया था, लेकिन लोग गेट के बाहर डटे हुए थे। पुलिस ने बाद में हालात को नियंत्रितकियाखबरभास्कर से साभार लिया है।

Friday, March 5, 2010

अक्षम बच्चों के जीवन में एक रोशन चिराग

यह ब्लॉग अक्षम बच्चों के संघर्ष को समर्पित है और इस संबंध में जो भी जानकारी मिलती है उसे उन बच्चों और उनके माता-पिता तक पहुंचाने की कोशिश करता है। मानसिक रूप से अविकसित बच्चों को तराशना और उनमें एक समझ पैदा करना उल्टी धारा में नाव खेने जैसा है। जो लोग इस प्रयास में लगे हैं नन्हे पंख उन्हें सलाम करते हैं। कुछ दिन पहले भास्कर के लिए मैनेजमेंट फंडा कॉलम लिखने वाले एन रघुरामन ने 'हर एक की है उपयोगिताÓ नाम से यह लिखा था। इसे साभार लेकर मैं अक्षम बच्चों के संघर्ष में साझीदार लोगों के लिए प्रस्तुत कर रहा हूं। इस लेख से शायद उन्हें कोई दिशा मिलेगी।
मुं बई के एसपीजे सडाना स्कूल से 51 युवा पांच वर्षीय पॉलीटेक्निक व वोकेशनल कोर्स पूरा कर 10 मार्च को समाज की मुख्यधारा में अपनी राह तलाशने निकल पड़ेंगे। एसपीजे सडाना स्कूल मानसिक रूप से अविकसित बच्चों को सशक्त बनाने की दिशा में काम करता है। यह शिक्षण संस्थान खास तरह की शिक्षा व प्रशिक्षण के जरिए उन्हें इस हिसाब से तैयार करता है, ताकि वे दुनिया के साथ तालमेल बैठा सकें और समाज में अपना उपयोगी योगदान दे सकें। इस संस्था की उप-प्राचार्य राधिके पाटील का कहना है, 'यह काफी दिलचस्प सफर है। मुझे इस संस्थान से जुड़े हुए 25 साल से भी ज्यादा वक्त हो गया है और अब तो यह मुझे अपने घर जैसा लगने लगा है।Óइस स्कूल में दो सेक्शन हैं। पांचवी क्लास तक इस तरह के खास बच्चों को रचनात्मक चीजें सिखाई जाती हैं। इसके अलावा अपने किस्म का अनूठा पांच वर्षीय डिप्लोमा कोर्स भी है, जिसके तहत मानसिक रूप से अविकसित युवाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। स्कूल का मुख्य उद्देश्य उन्हें ऐसी बुनियाद देने का है जिसके सहारे वे आत्मनिर्भर बन सकें और अपने अभिभावकों पर निर्भरता रूपी बेडिय़ों से मुक्त हो सकें।37 साल पहले शुरू हुए एसपीजे सडाना स्कूल ने समय के साथ-साथ आगे बढ़ते हुए पठन-पाठन की नई-नई तकनीकें और अनूठा पाठ्ïयक्रम तैयार किया। राधिके के मुताबिक, 'हमारे समक्ष बड़ा काम है। ऐसे बच्चों के लिए कोई आरक्षण नहीं है। रोजगार की श्रेणी में उनके लिए कोई आरक्षण नहीं होता। हम इन बच्चों को प्लेसमेंट का मंच देते हैं और हमारी सफलता की दर 93 फीसदी है। ये सभी अच्छी जगहों पर पहुंचे हैं। असल में लोगों को उन पर भरोसा करना चाहिए और उन्हें यूं ही खारिज नहीं कर देना चाहिए।Ó चूंकि उन्हें भविष्य के लिहाज से अपनी शारीरिक सीमाओं से आगे देखने और सीमाओं से परे जाने की जरूरत होती है, इस लिहाज से स्कूल नई-नई तकनीकों की मदद से शिक्षा तथा इस तरह का प्रशिक्षण देता है ताकि उन्हें इस स्वार्थी दुनिया में खारिज न कर दिया जाए। इस स्कूल के पॉलीटेक्निक कोर्स का मुख्य फोकस अलग-अलग विभागों में प्रशिक्षण व शिक्षा के जरिए इन्हें मुख्यधारा के समाज के साथ जोडऩा है। इसके साथ-साथ रोजगार के हिसाब से जरूरी मानदंडों पर भी जोर दिया जाता है, मसलन काम के दौरान आपका व्यवहार सही रहे, आप दूसरों के साथ बेहतर संवाद स्थापित कर सकें। इन्हें सेल्फ-हेल्प का हुनर भी सिखाया जाता है। कार्यशालाओं और फील्ड ट्रिप्स पर ले जाना इस प्रोग्राम का अभिन्न हिस्सा है। खासकर इंटर्नशिप के अंतिम दो वर्र्षों में तो ऐसा ही होता है। इससे उन्हें बेशकीमती अनुभव मिलता है। अलग-अलग तरह की परिस्थितियों को प्रत्यक्ष समझने का अवसर मिलता है और बाधाओं से पार पाने का व्यावहारिक प्रशिक्षण मिलता है। इस दौरान स्कूल द्वारा अपनाई गई सुरक्षा व्यवस्था ही इनके साथ होती है। इस कोर्स में शामिल हैं- विजुअल आट्ïर्स एंड क्राफ्ट्ïस, हॉस्पिटैलिटी एंड कैटरिंग। तीन साल के गहन प्रशिक्षण के बाद चौथे व पांचवें साल में इंटर्नशिप पर ध्यान दिया जाता है। वोकेशनल कोर्स में शामिल हंै- हल्की मशीनों पर काम करना, सॉर्र्टिंग, एसेंबलिंग, स्टिकिंग, पैकेजिंग और प्रिंटिंग।