tag:blogger.com,1999:blog-43425853175661589952024-03-13T04:04:55.564-07:00नन्हे पंखtujhse naraj nahi Zindgi hairan hoon mainamlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.comBlogger59125tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-19845192947204558462013-08-12T10:56:00.000-07:002013-08-12T10:56:57.602-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<iframe allowfullscreen='allowfullscreen' webkitallowfullscreen='webkitallowfullscreen' mozallowfullscreen='mozallowfullscreen' width='320' height='266' src='https://www.blogger.com/video.g?token=AD6v5dztVhQUprkdFIhSjFCL5By9dYb1FhVK9I66OAsYXJXvI9Z7YzDQ2nzgbPmINr1kWFPyw6CqGdJX1Qn_f-wx7w' class='b-hbp-video b-uploaded' frameborder='0'></iframe></div>
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<span style="font-family: Mangal;">इस</span><span style="font-family: Chanakya; mso-bidi-font-family: Chanakya;"> </span><span style="font-family: Mangal;">हफ्ते</span><span style="font-family: Chanakya; mso-bidi-font-family: Chanakya;"> </span><span style="font-family: Mangal;">आने</span><span style="font-family: Chanakya; mso-bidi-font-family: Chanakya;"> </span><span style="font-family: Mangal;">वाली</span><span style="font-family: Chanakya; mso-bidi-font-family: Chanakya;"> </span><span style="font-family: Mangal;">मेरी</span><span style="font-family: Chanakya; mso-bidi-font-family: Chanakya;"> </span><span style="font-family: Mangal;">किताब</span></div>
<a name='more'></a><span style="font-family: Chanakya; mso-bidi-font-family: Chanakya;"><o:p></o:p></span></div>
amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-4197319500573998742013-02-23T04:35:00.000-08:002013-02-23T04:35:03.791-08:00अक्षम बच्चे कैसे जीएं वहां, जहां हर चेहरे से निकलती है चिनगारी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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मंदबुद्धि 14 वर्षीय छात्रा से दुष्कर्म<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnj2U-loIcqwTy03Z5BQ5pIUdcLoPmskWf5eQWRYqrLdFSwCrHC9ZsSCcO5RCawbeYO2l-OwU61ikQbfVKndqWKXjGhGy50Kbd9M2ZzgsJmAkfvKa3_LOPND9an-omofUsw1taR2qlDXU/s1600/Girl.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnj2U-loIcqwTy03Z5BQ5pIUdcLoPmskWf5eQWRYqrLdFSwCrHC9ZsSCcO5RCawbeYO2l-OwU61ikQbfVKndqWKXjGhGy50Kbd9M2ZzgsJmAkfvKa3_LOPND9an-omofUsw1taR2qlDXU/s320/Girl.jpg" width="320" /></a></div>
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<a name='more'></a><br /><br />
रिश्तों की चादर पतली होती जा रही है। हालात यह है कि रिश्ते तार-तार हो रहे हैं। मर्यादा की सख्त बुनावट भी ढीली हो गई है। नैतिकता के अश्लील नृत्य ने समाज का चेहरा बदरंग कर दिया है। विकास का ढिढोरा पीटने वाली दुनिया इतनी व्यस्त है कि उसे अपना चेहरा देखने की फुर्सत नहीं। समाज के ऐेसे चरित्र के साथ अक्षम, अपाहिज और लाचार बच्चे कैसे जीएं, जहां हर चेहरे से चिनगारी निकल रही है।<br />
बुधवार को भूना (फतेहाबाद) के गांव गोरखपुर में निजी स्कूल के अध्यापक द्वारा मंदबुद्धि 14 वर्षीय छात्रा से दुष्कर्म करने का मामला सामने आया। छात्रा के पिता ने शिकायत में बताया कि बेटी गांव के एक निजी स्कूल में पढ़ती है। 20 फरवरी को उसकी बेटी ने स्कूल जाने से इंकार कर दिया। स्कूल में भेजने के लिए दबाव डाला गया तो उसने टीचर द्वारा दुष्कर्म करने की बात बताई। इसके पहले चंडीगढ़ की एक संस्था के कर्मचारियों ने एक मंदबुद्धि लडक़ी के साथ दुराचार किया था। मामला तूफान की तरह उठा और उफनते दूध की तरह शांत हो गया। उस पीडि़त लडक़ी ने आखिरकार कोर्ट की सहमति पर एक नन्ही परी को जन्म दिया। सृष्टि के हादसे के शिकार लोग समाज की प्रताडऩा भी सहते हैं, ऐसे में मैं प्रभु से न्याय की गुहार लगाता हूं। उसकी कचहरी कहीं सजते नहीं देखी फिर भी अगर इंसाफ की अदालत कहीं लगती हो तो इन अक्षम मासूमों के साथ न्याय करना। कोई ऐसा फरिस्ता भेजना हे परमपिता तो इनका पालनहार बन सके। वर्ना विश्वास में धोखे की मिलावट ऐसी है कि पालनहार बनने का दावा करने वाला सख्स ही प्रताडऩा की हदें पार करता है।<br />
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amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-44895065672751914872012-03-05T10:48:00.001-08:002012-03-05T10:50:09.727-08:00मानसिक रूप से अक्षम बच्चों के लिए विशेष थीम पार्क<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDCAOlm9Zv_ZZWZ_kWgyq1l-ud6Dvt6ZDPMSyKmwuYRj9svJT1ukHl7eVAMWkUkoh1agROJ-ZM_uD9vh56OizH3gD6MWu85mJ6s6sP2q4FtWSMCxoy9sNjexMjoKlatg4MV1ZYy_pij0s/s1600/242295854.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5716487203728000706" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 221px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDCAOlm9Zv_ZZWZ_kWgyq1l-ud6Dvt6ZDPMSyKmwuYRj9svJT1ukHl7eVAMWkUkoh1agROJ-ZM_uD9vh56OizH3gD6MWu85mJ6s6sP2q4FtWSMCxoy9sNjexMjoKlatg4MV1ZYy_pij0s/s320/242295854.jpg" border="0" /></a><br /><br /><div>दिव्य भास्कर नेटवर्क. अहमदाबाद अहमदाबाद में शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए एक विशेष थीम पार्क बनाया गया है। यहां वे आवाज सुनकर या छूकर चीजों को महसूस कर सकते हैं। नेशनल स्कूल ऑफ डिजाइंस की छात्रा अंजलि मेनन व अदिति अग्रवाल ने यह पार्क तैयार किया है। :इनक्लूजिव सेन्सरी आउटडोर पार्क फॉर चिल्ड्रन– नामक इस थीम पार्क में विशेष बच्चों के लिए बायस्कोप, बेंबू चाइम्स और इन्टरेक्टिव वॉल जैसी चीजें बनाई गई हैं। इस पार्क का उद्देश्य विकलांग बच्चों में आउटडोर प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन देना है। पार्क में रखे बायस्कोप की डिजाइन अंतरिक्ष यान जैसी बनाई गई है। विशेष बच्चों के लिए यह विजुुअल सिम्युलेटर की तरह काम करेगा। मानसिक रूप से कमजोर बच्चों की एकाग्रता इससे बढ़ाने में मदद मिलेगी। इसमें अलग-अलग फोटो देखने की व्यवस्था है। पार्क में लगाई गई बेंबू चाइम्स इन विशेष बच्चों का कई तरह से विकास करने में मदद करेंगी। बच्चे इनके नीचे से गुजर सकेंगे, उनके बीच संकरी जगह से दूसरी ओर देख पाएंगे। साथ ही उनके टेक्स्चर को महसूस कर सकेंगे। बेंबू चाइम्स में फूंक मारके अलग-अलग प्रकार की आवाज निकाल पाएंगे।</div>amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-89714221438315422642012-02-23T04:41:00.000-08:002012-02-23T11:00:07.459-08:00मासूमों ko kaun देखेगा।हर शहर में अक्षम bachchon ke liye directory होनी चाहिए और उनko सपोर्ट kahan से मिले इसki व्यवस्था समाज ko सजग लोगों ko karni चाहिए। सरkar ko भी इस दिशा में kadam उठाना चाहिए। वर्ना जहां तीन feet जमीन ke लिए भाई,भाई ko जला रहा है। बेटा बाप ka katl kr रहा है। ऐसी दुनिया में उन बेजुबान मासूमों ko kaun देखेगा। मेरा ९ साल ka बेटा भी उद्बहीं बेजुबान मासूमों में से Ek है।amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-13942469875213420462011-05-24T10:30:00.000-07:002011-05-24T10:45:52.099-07:00मन के जीते प्रीत है<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjkO7NHvBeyvyqV5gtkyglLlEu0KU-45pNVw68nrUOXI03_SK2wcXe7ruVAu0PztjQ-TzGYIx6uj-EBhfAQ9js-L_yAAmZ8KsTtE7OiNZBK4hxebR8Ms9yjzRwBvld6Vw1GYpQgU1ntHVA/s1600/DSC_0078.tif"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5610340211330545538" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 227px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjkO7NHvBeyvyqV5gtkyglLlEu0KU-45pNVw68nrUOXI03_SK2wcXe7ruVAu0PztjQ-TzGYIx6uj-EBhfAQ9js-L_yAAmZ8KsTtE7OiNZBK4hxebR8Ms9yjzRwBvld6Vw1GYpQgU1ntHVA/s320/DSC_0078.tif" border="0" /></a><br /><br /><div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGNwWBFWie4eeAAR8bof70EM5AUF_N7yBw1w14OaearV5i8rtWpfeiX2e-s7NT-zNGmsOuYPfCEJXyDWsAkhsxkLQEyJctv7wNggU3DZYIpcw55NUZkTL7pHuaTeyv87DNEaUxlrc2D6k/s1600/DSC_0090.JPG"></a><br /><br /><br /><div>मेंटली चैलेंज्ड मनप्रीत के सार्थक संघर्ष की पे्ररणादायक कहानी पिछले दिनों दैनिक भास्कर के सिटी लाइफ में प्रकाशित हुई। प्रवीण कुमार डोगरा की इस रिपोर्ट को नन्हे पंख पर साभार प्रकाशित कर रहा हूं। उम्मीद है इस संकट से जूझ सहे अन्य मां-बाप को भी इससे संबल मिलेगा और अंधेरों से लड़कर वो एक नई सुबह अपने आंगन में खिला पाएंगे।<br />स्कूल में ट्रेनर के एक इशारे पर घंटों ट्रेड मिल पर दौड़ता है। दोपहर 3:30 बजे सेक्टर-7 के स्पोट्र्स कॉम्प्लेक्स के ट्रैक पर अपने फादर के पीछे लगातार दौड़ता रहता है। ये एथलीट कभी थकता नहीं। इसका नाम है मनप्रीत सिंह। उसकी एनर्जी का राज फिजिकल फिटनेस से ज्यादा इंसपिरेशन है जो उसे सामने वाले को वही काम करता देख मिलती है। इसी इंसपिरेशन के साथ मनप्रीत एथेंस में 25 जून से हो रहे स्पेशल समर्स ओलंपिक में एथलेटिक्स कैटिगरी में पार्टिसिपेट कर रहा है। मेडिकल साइंस के मुताबिक बचपन से एमआर यानी मेंटली रिटार्डेशन के शिकार होने के बावजूद इस लेवल तक पहुंचे मनप्रीत के सफर पर एक नजर: 14 साल से दौड़ जारी है: सुबह 6 बजे अपने घर से निकलते हैं। 3:30 बजे स्कूल बस चलाकर घर लौटते हैं। 'फिर टाइम आराम का नहीं दिन के सबसे जरूरी काम का होता है। मनप्रीत को स्पोट्र्स कॉम्प्लेक्स में ले जाकर दौड़ लगवाने और कसरत करवाने का। यह काम बिना किसी छुट्टी और आराम के होता है। इसी के चलते तो मनप्रीत आज इस लेवल तक पहुंचा हैÓ, अपने बेटे की कामयाबी की कहानी सुनाते मनप्रीत के 55 साल के पिता हरजिंदर सिंह को देखकर बेचारगी नहीं वाह का भाव आता है। वे इस उम्र में भी मनप्रीत के साथ दौड़ते दिखते हैं ताकि वह उन्हें कॉपी करते हुए दौड़े और उनसे कंपीटिशन फील करे। हरजिंदर कहते हैं,'मनप्रीत किसी भी चीज को ज्यादा देर तक याद नहीं रख पाता है। इसलिए उससे कोई भी काम करवाने के लिए खुद उस काम को करके दिखाना पड़ता है। पिछले 14 साल से यही रूटीन जी रहा हूं मैं।Ó थकना यहां मना है: उम्र में 26 साल के मनप्रीत बाकी बच्चों की ही तरह स्कूल जाते हैं। इनका स्कूल है सेक्टर 36 का सोरम। यहां ट्रेनर राकेश कुमार की मानें तो मनप्रीत को थकने का पता नहीं है, अगर उसे कुछ करने की इंसपिरेशन मिल जाए। घंटों ट्रेड मिल पर हंसते हुए गुजार सकता है और कहने पर स्केटिंग के कई राउंड भी काट सकता है।Ó चाहे मनप्रीत अपनी उम्र के लोगों से कई चीजों में पिछड़ा हो मगर बहुत सारी चीजें ऐसी भी हैं जो आम इंसान में नहीं मिल सकती हैं। 'इसे कुछ नहीं चाहिए, न ही कोई डिमांड है। बस आपकी अटेंशन चाहिए। वह स्टेडियम के कई चक्कर काट सकता है, सिर्फ इसके लिए कि कोई कहे, क्या बात है मनप्रीत तुम तो चैंपियन होÓ, सेक्टर- 20 से पानी की बॉटल और दो केले लेकर सेक्टर-7 आने वाली मां सरबजीत कौर स्माइल करते हुए बताती हैं। टाइटल पहले ही जीत चुके हैं: पिछले 26 सालों से मनप्रीत पर बिना किसी उम्मीद से मेहनत कर रहे मां-बाप कहते हैं,'चार साल के मनप्रीत और आज के मनप्रीत में जो फर्क हम देख रहे हैं, वही हमारी जीत का टाइटल है। एक ही चीज को अनगिनत बार बताना और सिखाना पड़ता था मगर हमने हार नहीं मानी। पहले भवन विद्यालय और अब सोरम स्कूल भेजने से यह सुधार आया है। अब स्पोट्र्स के अलावा मनप्रीत अपने बाल बांधने से लेकर अंडरवियर धोने तक में ट्रेंड हो चुका है। मनप्रीत में यह सुधार स्पोट्र्स से ही आया है।Ó ट्रायल उडऩे का भी: पेरंट्स बच्चे के लिए कितने केयरिंग और फिक्रमंद होते हैं, इसकी मिसाल हैं मनप्रीत के पेरंट्स। बेटा एथेंस जा रहा है तो उसे जहाज में उडऩे का एक्सपीरियंस कराने के लिए मां-बाप खासतौर पर जहाज से गोवा लेकर गए। इस पर सरबजीत कहती हैं, 'हम 10 अप्रैल को सिर्फ इसलिए गोवा गए ताकि यह जहाज में एथेंस जाते हुए घबराए न। हम चाहते हैं कि वह जहाज के अंदर की चीजों के प्रति अनजान न फील करे।Ó</div></div>amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-64552769628453527142011-05-02T10:47:00.000-07:002011-05-02T10:51:30.639-07:00आतंक से मुक्ति की बधाई।ब्लोग्गेर्स भाइयों अप सब को मेरा शादर नमस्कार<br />ओसामा के आतंक से मुक्ति की बधाई। न जाने उसने कितने मासूमों की जान लिए है। कितना घर सुना किया है.amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-48254986426734923202010-12-30T09:25:00.000-08:002010-12-30T09:45:30.457-08:00<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjT5CtOdqAxoNaN_hvumeGyaEvihiVNDbSf2LN0QxtfK4cU168CCCnWqPIrYyr1aJIzBEHJNfhh7pPjmIvK4SJrsQjzrL_K55cYlj3wd986darjOeddrfStO4PikR0ZpHI_PcKpzVHgIdo/s1600/normal_new-year_2.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5556532808465790066" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 240px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjT5CtOdqAxoNaN_hvumeGyaEvihiVNDbSf2LN0QxtfK4cU168CCCnWqPIrYyr1aJIzBEHJNfhh7pPjmIvK4SJrsQjzrL_K55cYlj3wd986darjOeddrfStO4PikR0ZpHI_PcKpzVHgIdo/s320/normal_new-year_2.jpg" border="0" /></a><br /><div>ब्लागर भाइयो को नववर्ष की ढेर सारी शुभकामना। आप सब यूंही ब्लाग के माध्यम से जुड़ें और जोड़े। हर समाज कुछ न कुछ रचता रहता है पर रचना सार्थक और सकारात्मक होनी चाहिए। अक्षम बच्चों के प्रति आपसब के संवेदनशील रुख को सलाम। आज मैं फिर अपनी कविता की वही चार पंक्ति लिख रहा हूं जो पिछले साल लिखा था.. .जो कल बीता वा आज नहीं,<br />जो आज यूंही ढल जाएगा<br />तुम रचते रहना पल-पल कुछ<br />तो वक्त संभलता जाएगा।</div><br /><div><br />आप सब से ढेर सारी बातें करनी है। पर एक महत्वपूर्ण जानकारी के साथ आपसे अगले पोस्ट तक के लिए बिदा ले रहा हूं।जानकारी : नवजात शिशु में 67 फीसदी को पीलिया होता ही होता है लेकिन उनका थायरायड लेवल जरूर चेक करवाएं। डॉक्टरों ने बताया है कि 20 से 25 दिन के बच्चे का टीएसएच 9 प्वाइंट तक नार्मल है लेकिन उससे ज्यादा बढऩे पर उसके ब्रेन का विकास नहीं होता है। मेरे नवजात बेटे जो अभी एक महीने और 5 दिन का है टीएसएच 11.२ है। डॉक्टरों ने इसे चिंता का विषय बताते हुए फिर से हफ्ते भर में टेस्ट कराने को कहा है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा है कि घबराने की कोई बात नहीं 25 एमजी की दवा चलाने से वह नार्मल रेंज में आ जाएगा। मैं अपने संघर्ष की बातें सांझा करना चाहता हूं ताकि जो मैं भोग रहा हूं दूसरे न भोगें।शुभ रात्रि.. .</div>amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-8004749212532782732010-08-13T10:57:00.000-07:002010-08-13T11:19:48.260-07:00सभी ब्लॉगर भाइयों को और नन्हे-नन्हे मासूमों को स्वतंत्रता दिवस की ढेर सारी शुभकामनासभी ब्लॉगर भाइयों को और नन्हे-नन्हे मासूमों को स्वतंत्रता दिवस की ढेर सारी शुभकामना।<br />विनती है कि वो सारी व्याधियों से मुक्त हों और स्वस्थ रहें।amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-47343876730977479132010-05-24T08:56:00.000-07:002010-05-24T09:56:34.143-07:00मैं तो बीमार था, मुझे पापा ने क्यूं छोड़ा ?यह ब्लॉग अक्षम बच्चों के संघर्ष को समर्पित है।<br />जब अपनों का भरोसा टूटता है तो एक पल के लिए पूरी दुनिया अंधेरी हो जाती है। उस अंधेरे से लड़कर बाहर आना दूसरों के लिए उम्मीद की एक चराग रोशन करना है। गीता वर्मा ने जालंधर की एक ऐसी ही दास्तान भेजी जो कुछ दिन पहले भास्कर में प्रकाशित हुई थी। <br />मैडम मेरे नाम के साथ दुग्गल मत लगाना। मैं पति का नाम नहीं लगाना चाहती। उसने मुझे तब छोड़ा जब मुझे उसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी...<br />जया के बेटे का पूरा शरीर एक बीमारी ने डस लिया। हाथ-पैर नकारा हो गए। आवाज चली गई। बचा तो सिर्फ दिमाग। पढ़ाई-लिखाई बंद हो गई। स्कूल वालों ने राहुल को एडमिशन देने से मना कर दिया। पति ने कहा, वह अपनी सैलेरी इसके इलाज पर खराब नहीं करेगा। इसके बाद तो जैसे उसकी जिंदगी में तूफान आ गया। जया लुधियाना की हैं। राहुल जब 9 साल का था तो एक दिन अचानक भारी दस्त के बाद उसके पैरों में कमजोरी आ गई। राहुल के शरीर ने काम करना बंद कर दिया। हाथों में जान नहीं रही। पैरों से हरकत गायब हो गई। शब्दों ने मुंह का साथ छोड़ दिया। उन्होंने राहुल को कई डॉक्टरों को दिखाया पर किसी को कुछ समझ नहीं आया। यहीं तक होता तो ठीक था। रोज-रोज की भागम-भाग से झल्लाए पति ने एक दिन कह दिया कि राहुल कभी ठीक नहीं होगा। इस पर समय और पैसा खराब मत करो। इसकी जगह एक और बच्चा पैदा कर लेते हैं। जया जब इसके लिए तैयार नहीं हुई तो पति ने कहर ढा दिया। दूसरी शादी रचा ली। इसके बाद वह पति से अलग हो गई और उसमें और ताकत आ गई। उसने ठान लिया कि वह उसे ठीक करके रहेगी। उसे दिल्ली ले गई। अपोलो में जांच के बाद पता चला कि उसे मायलाइटिस पोर्स वायरल है। यह तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करने वाला रोग है। न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. पीएन रंजन ने बताया कि इस वायरल का कोई निश्चित इलाज नहीं है। फिजियोथैरेपी और एक्सरसाइज के जरिए कुछ मदद जरूर मिल सकती है। उन्होंने राहुल को भी समझाया कि हिम्मत उसे ही करनी होगी। अपने घर हैबोवाल आकर मां-बेटे दोनों 12-12 घंटे तक एक्सरसाइज करते। राहुल थक जाता पर मां का हौसला उसे और हिम्मत देता। फिजियोथैरेपिस्ट के हर निर्देश का पालन करते। मां के त्याग ने राहुल को मानसिक रूप से बहुत मजबूत बनाया। प्रयास रंग लाया। 6 माह में वह बोलने लग गया।इसके बाद राहुल को लगा कि वह ठीक हो सकता है। मां ने उसे बोलकर पढ़ाना शुरू किया। बहन नेहा उसके लिए लिखने की प्रैक्टिस करती। राहुल ने इतना रिकवर किया कि उसने 8वीं के पेपर स्ट्रैचर पर लेट कर दिए। अच्छे नंबरों ने उसका आत्मविश्वास और बढ़ाया। वह 10वीं के पेपर की तैयारी में जुट गया। वह घंटों बोलने की प्रैक्टिस करता और बहन लिखने की। स्कूल वालों ने दाखिला नहीं दिया तो उसने प्राइवेट पेपर दे दिए। अब इंतजार था रिजल्ट का। रिजल्ट आया तो राहुल ने सबसे ज्यादा नंबर पाए थे। लगन देखकर भारती विद्या मंदिर स्कूल ऊधम सिंह नगर ने उसे एडमिशन दे दिया। 12 वीं में जब उसने टॉप किया तो प्रिंसीपल सुनील अरोड़ा ने कहा, राहुल ने साबित कर दिया कि उसे दाखिला देना गलत निर्णय नहीं था। इसके बाद राहुल ने बीसीए ज्वाइन किया और पहले ही साल पंजाबभर में फस्र्ट आकर मां का नाम रोशन किया।सीखिए, ऐसे करते हैं दर्द का सामना राहुल के हाथ अभी भी तेजी से नहीं चलते। प्रैक्टिस के दौरान पेपर 7 घंटे में हल करता है। रात-रात भर उसे भयंकर दर्द होता है। कराहने की बजाय वह इस दर्द को पढ़ाई कर भूलने का प्रयास करता है।amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-49932434385133536382010-05-10T06:59:00.000-07:002010-05-10T07:02:05.835-07:00कहने को सारा जहान अपनाइस दुनिया में पैसा को सबकुछ मानने वाले लोगों की संख्या ज्यादा है और आदमी को सबकुछ मानने वालों की संख्या कमइस जहान में आदमी को आदमी का साथ चाहिए। पैसा तो हम कहीं से लोन भी ले सकते हैं, आदमी कहां से लोन लें? लोगों के दिए भरोसे पर सोचते हुए जो ख्याल आया वो है.. .. .. .. .. ..<br />कहने को सारा जहान अपना था,<br />जब मांगा तो सब हवा हुए,<br />सब सपना था।।<br />कहने को सारा जहान अपना था।<br />ये जीवन माटी-ढेला सब,<br />बस राम नाम ही जपना था<br />सब सपना था।<br />सब कह के गए थे आएंगे,<br />जीवन भर साथ निभाएंगे,<br />हम राह तके और थके-थके,<br />हिस्से जो मिला तड़पना था,<br />सब सपना था।amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-43697764865637025332010-04-20T06:16:00.000-07:002010-04-20T06:25:48.159-07:00नशे में गिरफ्तार पंजाब का बचपन<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgeAb9mhxR-aDHsBcVWOqPF7otCVK3GB_TZ0ERGahGb-SuPoQv0BMlMxS-YwZjlJ95aUyq9l72j9SARHbUtm-CvAfjchViecEtQZBm9ZmM7Ou30fK6DDf1M_fdFhEpvIjWRj6Rnr1TKPdk/s1600/drug+addiction+in+india.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5462209707835586898" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 257px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgeAb9mhxR-aDHsBcVWOqPF7otCVK3GB_TZ0ERGahGb-SuPoQv0BMlMxS-YwZjlJ95aUyq9l72j9SARHbUtm-CvAfjchViecEtQZBm9ZmM7Ou30fK6DDf1M_fdFhEpvIjWRj6Rnr1TKPdk/s320/drug+addiction+in+india.jpg" border="0" /></a><br /><div>नशे का कोई सिद्धांत या उसूल नहीं होता, नशा तो सिर्फ गुलामी की भाषा समझता है। अपने आस-पास फटकने वाले कर शख्स को वह अपना गुलाम बना लेना चाहता है और फिर उसके चेहरे पर धीरे-धीरे बर्बादी की तस्वीर खींचता है। नशा देश के लगभग सभी हिस्सों में अपना फन फैला रहा है। लेकिन हाल में पंजाब की जो तस्वीर सामने आई है उससे भारत के भविष्य पर ग्रहण लगता दिख रहा है। नशे के दलदल में फंसे बच्चों की जो तस्वीर दैनिक भास्कर, चंडीगढ़ के ब्यूरो चीफ ब्रज मोहन सिंह ने खींची है उसे साभार प्रस्तुत कर रहा हूं।</div><br /><div>पंजाब के लोगों ने आतंकवाद का डटकर मुकाबला किया और उसे शिकस्त भी दी, लेकिन यही सूबा अब नशे के खिलाफ जंग हारता दिख रहा है। पंजाब के वयस्कों में नशे की लत खतरनाक स्तर को पार कर चुकी है। इससे भी ज्यादा चिंता की बात है, वह ट्रेंड जिसके चलते पंजाब के ज्यादातर जिलों में बच्चे 10-11 साल की उम्र से किसी न किसी तरह का नशा करने लगते हैं। इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन ने पंजाब में नशे की बढ़ती प्रवृत्ति की स्टडी करने के लिए राज्य के 4 सरहदी जिले गुरदासपुर, अमृतसर, तरनतारन के 80 गांवों में सर्वे किया। इसमें अलग-अलग उम्र के 1527 लोगों से बातचीत की गई। ये सभी ऐसे थे, जो किसी न किसी तरह के नशे का इस्तेमाल करते थे। सर्वे के नतीजे चौंकाते हैं। सर्वे में शामिल 77 फीसदी नशा करने वालों की उम्र 11 से 18 साल के बीच है। पंजाब के फिरोजपुर जिले में 10 फीसदी ऐसे बच्चे मिले, जिन्होंने 10 साल से कम उम्र में ही ड्रग्स लेनी शुरू कर दी। उन्हें इस दलदल में धकेलने वाला कोई और नहीं बल्कि परिवार के लोग और उनके नजदीकी दोस्त हैं। फिरोजपुर में रामकोट गांव के 8 से 10 साल के बच्चों ने बताया कि उन्होंने घरवालों को देखकर ही नशा करना सीखा है। पंजाब एंटी-ड्रग कंट्रोल सेल के आर।पी. मीणा कहते हैं, नशे की समस्या इस हद तक गंभीर है कि पुलिस अधिकारियों को बच्चों को ड्रग्स के नुकसान के बारे में स्कूल जाकर बताना पड़ रहा है। नशे की आदत पर लगाम लगाने के लिए हम स्कूलों में जाकर पर्चियां बांट रहे हैं।</div><br /><div><br />सरकारी निगहबानी में चल रहा <span class="">धंधा </span></div><br /><div><span class=""></span><br />शहरी इलाकों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में नशे की समस्या ज्यादा जटिल है। पंजाब सरकार सालों से कह रही है कि वो सबस्टांस ड्रग्स के ऊपर कड़ी निगरानी रख रही है, लेकिन सब कुछ यहां पेन किलर की आड़ में हो रहा है। मार्फिन वाली नशीली दवाइयां भी खुलेआम बिक रही हैं। पंजाब हेल्थ एंड ड्रग कंट्रोलर विंग के भाग सिंह कहते हैं कि सरकार की तरफ से कड़े निर्देश हैं कि बिना डॉक्टर के पर्चे के कोई भी नशीली दवा न दी जाए।अगर कोई ऐसा करता है तो उनके लाइसेंस रद्द करने का प्रावधान है। अधिकारियों के दावे अपनी जगह हैं, लेकिन सर्वे में शामिल 31 फीसदी लोगों ने ये बात कबूल की कि वो सिंथेटिक ड्रग्स की खरीद अपने गांव के मेडिकल स्टोर से ही करते हैं। स्पष्ट है कि सब कुछ सरकार की नाक के नीचे चल रहा है। नशे के बढिय़ा बाजार के चलते पंजाब के ग्रामीण और शहरी इलाकों में सिंथेटिक ड्रग्स सप्लाई करने वालों की एक चेन बन गई है। इन्हें राजनीतिक संरक्षण मिला होता है और पुलिस भी इनके खिलाफ कार्रवाई से हिचकती है। इस धंधे में ड्रग्स की बाकायदा होम डिलीवरी भी होती है। पंजाब में 11 फीसदी लोगों ने माना कि भुक्की की खेती पंजाब के गांवों में हो रही है, सरकार भले ही कुछ कह ले।</div><br /><div></div>amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-89580326892167083922010-04-07T06:34:00.000-07:002010-04-07T06:36:38.138-07:00अमेरिकी हमले के कारण इराक में पैदा हो रहे विचित्र बच्चेहमला किसी के हक में नहीं होता, हमला का गला घोंटना होगा। इराक में शांति के नाम पर जो अमेरिकी हमले हो रहे हैं, उसका खमियाजा मासूम बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। दो हमलावरों की भ_ी में मासूमों की जिन्दगी झोंकी जा रही है। हमारी दुआ है कि हमलावरों को चेतना आए और वा समझौते की सरहद पर बैठकर शांति की तस्वीर खींचे। कुछ दिनों पहले इराक की जो तस्वीर खबरों के माध्यम से सामने आई है उसे आपसबों के समक्ष रख रहा हूं।<br />इराकी शहर फलूजा में अमेरिकी हमले के बाद से बच्चों में पैदाइशी खामियों के मामले बढ़ गए हैं। हालत इतनी खराब है कि नवजातों में सिर्फ हृदय संबंधी गड़बडिय़ों के मामले यूरोप की तुलना में तेरह गुना अधिक हैं। इराकी राजधानी से 40 मील पश्चिम में स्थित यह शहर नवंबर 2004 में अमेरिकी अभियान के दौरान भयानक संघर्ष का गवाह बना था। तब अमेरिकी फौज ने हमले में व्हाइट फास्फोरस व डिप्लीटेड यूरेनियम का इस्तेमाल किया था। डॉक्टर बच्चों में पैदायशी बीमारियों व खराबी के लिए इसे ही वजह मानते हैं। शिशुरोग विशेषज्ञ समीरा अल अनी के मुताबिक वे नवजात बच्चों में हृदय विकार के दो-तीन मामले वे रोज देख रही हैं। 2003 के पहले एक माह में ऐसा एक मामला सामने आता था। ऐसे मामलों की दर प्रति हजार बच्चों में 95 है, जो यूरोप की तुलना में 13 गुना अधिक है। कैसे-कैसे विकार : हृदय विकार, लकवा अथवा मस्तिष्क को नुकसान पहुंचने के मामले, बच्चों में तीन सिर, माथे पर आंख, हाथ में नाक पाए जाने जैसे कई मामले हैं। अमेरिकी फौज ने पल्ला झाड़ा: अमेरिकी सेना के प्रवक्ता माइकल किलपैट्रिक ने दावा किया कि सेना स्वास्थ्य से जुड़े मामलों को गंभीरता से लेती है। उन्होंने कहा, 'पर्यावरण को लेकर ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया।<br />गाजा पïट्टी में भी यही करुण कथा<br />इजरायल द्वारा नवंबर 2008 में गाजा पïट्टी के फलस्तीनी इलाकों पर की गई कार्रवाई के बाद वहां भी बच्चों में जन्मजात विकृतियों के मामले बढ़े हैं। एक मानवाधिकार संगठन कांशस आर्गनाइजेशन फॉर ह्यïूमन राइट्स के मुताबिक इजरायली हमले के तीन माह पहले इलाके में जन्मजात खामियों वाले सिर्फ 27 बच्चे पैदा हुए थे। 2009 में यह संख्या अचानक बढ़कर 59 हो गई। इजरायल ने जाबालिया, बेइत, हनाउन व बेइत लाहिया जिलों पर व्हाइट फास्फोरस जबर्दस्त बमबारी की थी और जन्मजात खामियों के मामले भी यहीं अधिक पाए गए हैं।amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-63254708426081094982010-03-11T07:10:00.000-08:002010-03-11T07:14:51.293-08:00हौसला न छोड़ कर सामना जहान का<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhU2grV9yqRlC_lkFanUmPSkNI7lO9XLHFKpPvOpQFJxgU-bxJwm2IuXgEWguzDkyo0ocXDgMeBYehW9zX9tdDpuSLjE2fR2WA61IID5URqPJsYcO98Uw079JK2id0w3eu0EhlicvAH1fM/s1600-h/09-Mideast_Jordan_China_AMM101_635599609032010.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5447394933559720018" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 306px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhU2grV9yqRlC_lkFanUmPSkNI7lO9XLHFKpPvOpQFJxgU-bxJwm2IuXgEWguzDkyo0ocXDgMeBYehW9zX9tdDpuSLjE2fR2WA61IID5URqPJsYcO98Uw079JK2id0w3eu0EhlicvAH1fM/s320/09-Mideast_Jordan_China_AMM101_635599609032010.jpg" border="0" /></a><br /><div>हौसला न छोड़ कर सामना जहान का<br />वो बदल रहा है देख रंग आसमान का<br />हौसला नामुमकिन को भी मुमकिन कर देता है। जो हौसलों के आगे हथियार डाल देते हैं परिस्थितियां उनको और दबाती हैं। बेहतर है विपरीत विरस्थितियों से लडऩा और खुद को साबित करना। मुमकिन है लडऩे वालों को कुछ भी न मिले पर कमसे कम यह गर्व तो होगा कि हम लड़े। और लडऩे वालों को भगवान क्यों नहीं देगा?, उसे देना होगा। चांद को थोड़ी सी ही सही चांदनी, सूरज को अपने तेज का आंशिक हिस्सा देना ही होगा। जिन लोगों ने साबित किया है उन विकलांग लोगों की अदभूत कला ने लोगों को दांतों तले उंगली दबा लेने पर मजबूर कर दिया। तस्वीर क्या कहती है पढ़ें नीचे। जॉर्डन के अम्मान में 'चाइना डिसेबल्ड पीपुल्स परफॉर्मिंग आर्ट ट्रूपÓ (सीडीपीपीएटी) के सदस्यों द्वारा प्रस्तुत बेहतरीन कला का प्रदर्शन। इस डांस गु्रप के सभी सदस्य बधिर हैं। इस नृत्य को 'सहस्रबाहूÓ भी कहा जाता है। इस डांस ग्रुप में कुल 104 कलाकार हैं, जो किसी न किसी रूप से विकलांग हैं। शो में कलाकारों ने गीत, संगीत, नाटक और नृत्य से ऐसा समां बांधा कि लोग मंत्रमुग्ध हो गए। </div>amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-12378796713494129882010-03-07T05:53:00.000-08:002010-03-07T06:01:02.673-08:00गाय ने कन्याओं को जन्म दिया तो पूजा करने जुटे लोग<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhYghweTsB82XGS17dYSZLfkn1_kDskvFAdlpNkCZNVNraTKlTx4fEWFyUMwxeI3T0Omfnl00ieVsEEGV2le3MIBm9docts0OK6-c6pivUlxtxTWsPK7hfjAWLZNW41sJJCz4D6vbsKaGg/s1600-h/02rbhatia_(34)+copy.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5445891063151905794" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 177px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhYghweTsB82XGS17dYSZLfkn1_kDskvFAdlpNkCZNVNraTKlTx4fEWFyUMwxeI3T0Omfnl00ieVsEEGV2le3MIBm9docts0OK6-c6pivUlxtxTWsPK7hfjAWLZNW41sJJCz4D6vbsKaGg/s320/02rbhatia_(34)+copy.jpg" border="0" /></a><br /><div>गाय ने दो कन्याओं को जन्म दिया तो लोगों का हुजूम उन कन्याओं की पूजा करने के लिए सेक्टर 45, चेडीगढ़ के नगर निगम गौशाले में इक_ा हो गया। गौशाले के मालिक ने लोगों से निवेदन किया कि ये खबर झूठी है पर लोगा फूल और मालाओं के साथ वहां जमे रहे। मुझे चंडीगढ़ सहित देश के तमाम लोगों की सोच पर हंसी भी आती है और तरस भी। जिस पंजाब में कन्या भूण हत्याएं होती हैं वहां गाय द्वारा जन्म कन्याओं की पूजा करने लोग दौड़ पड़ते हैं। मैं तो भगवान से यही प्रार्थना कर सकता हूं कि गाएं हीं कन्याओं को जन्म दें तब उनकी भ्रूण हत्या भी नहीं होगी और फूल मालाओं से पूजा कर उनका भव्य स्वागत भी। पंजाब में महिला-पुरुष अनुपात और अफवाह में लिपटी कन्याओं के प्रति लोगों का आकर्षण की खबर नीचे पेश कर रहा हूं। </div><br /><div></div><br /><div>पंजाब की स्वास्थ्य मंत्री लक्ष्मीकांत चावला के अनुसार पुरुष और महिलाओं का अनुपात २००१ के मुकाबले बढ़ा है पर फिर भी कम है। २००१ में यह प्रति १००० पुरुष ७८७ महिलाएं थीं जो २००९ में बढ़कर प्रति १००० पुरुष ८९४ हो गईं हैं। </div><br /><div></div><br /><div>लोगों का हुजूम मंगलवार को सेक्टर-45 स्थित नगर निगम की गौशाला की ओर बढ़ा चला जा रहा था। बच्चे, बूढ़े, युवा, स्त्री-पुरुष सब हाथ जोड़े गौशाला के गेट पर खड़े थे। कुछ लोग गेट पर ही माथा टेक रहे थे। अफवाह फैली थी, कि गाय ने बछड़े नहीं, इन्सान के दो बच्चों को जन्म दिया है। यह अफवाह से भी ज्यादा मजाक था, लेकिन भीड़ की नजर एकटक गौशाला की ओर टिकी थी। भीड़ के मुताबिक दिन के 2.30 बजे गौशाला में चारा देने आए किसी व्यक्ति ने लौटकर बताया कि गाय ने दो कन्याओं को जन्म दिया है। यह बात आग की तरह फैली और देखते ही देखते हजारों लोगों का हुजूम गौशाला की गेट तक पहुंच गया। गौशाला इंचार्ज को पता चला तो वह करीब 3 बजे मौके पर पहुंच गए। उन्होंने लोगों को समझाया कि एक सप्ताह से किसी गाय ने कोई बच्चा नहीं दिया है, यह सिर्फ एक अफवाह है। लेकिन लोगों पर उनकी बातों का असर नहीं हो रहा था। लोग हाथ जोड़कर खड़े थे, कुछ लोग प्रसाद चढ़ाने भी आए थे और कन्याओं के दर्शन करना चाहते थे। यह भीड़ आसपास की कॉलोनी और गांव की ही नहीं, बल्कि इसमें शहर के लोग भी शामिल थे। लोग कार और बाइक से गौशाला पहुंचे, जिससे मौके पर जाम के हालात पैदा हो गए। भीड़ धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी। हालात की गंभीरता देख पुलिस बुलाई गई। नगर निगम के अधिकारी केआर चिरवतकर ने लाउडस्पीकर पर घोषणा की कि यह सिर्फ अफवाह है। इसके बावजूद लोग मान नहीं रहे थे। वे जाने के लिए तैयार नहीं थे। इस तरह का सिलसिला देर रात तक चलता रहा। भीड़ देख गौशाला का गेट बंद कर दिया गया था, लेकिन लोग गेट के बाहर डटे हुए थे। पुलिस ने बाद में हालात को नियंत्रितकियाखबरभास्कर से साभार लिया है। </div>amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-6109446249140417082010-03-05T05:40:00.000-08:002010-03-05T05:42:30.438-08:00अक्षम बच्चों के जीवन में एक रोशन चिरागयह ब्लॉग अक्षम बच्चों के संघर्ष को समर्पित है और इस संबंध में जो भी जानकारी मिलती है उसे उन बच्चों और उनके माता-पिता तक पहुंचाने की कोशिश करता है। मानसिक रूप से अविकसित बच्चों को तराशना और उनमें एक समझ पैदा करना उल्टी धारा में नाव खेने जैसा है। जो लोग इस प्रयास में लगे हैं नन्हे पंख उन्हें सलाम करते हैं। कुछ दिन पहले भास्कर के लिए मैनेजमेंट फंडा कॉलम लिखने वाले एन रघुरामन ने 'हर एक की है उपयोगिताÓ नाम से यह लिखा था। इसे साभार लेकर मैं अक्षम बच्चों के संघर्ष में साझीदार लोगों के लिए प्रस्तुत कर रहा हूं। इस लेख से शायद उन्हें कोई दिशा मिलेगी।<br />मुं बई के एसपीजे सडाना स्कूल से 51 युवा पांच वर्षीय पॉलीटेक्निक व वोकेशनल कोर्स पूरा कर 10 मार्च को समाज की मुख्यधारा में अपनी राह तलाशने निकल पड़ेंगे। एसपीजे सडाना स्कूल मानसिक रूप से अविकसित बच्चों को सशक्त बनाने की दिशा में काम करता है। यह शिक्षण संस्थान खास तरह की शिक्षा व प्रशिक्षण के जरिए उन्हें इस हिसाब से तैयार करता है, ताकि वे दुनिया के साथ तालमेल बैठा सकें और समाज में अपना उपयोगी योगदान दे सकें। इस संस्था की उप-प्राचार्य राधिके पाटील का कहना है, 'यह काफी दिलचस्प सफर है। मुझे इस संस्थान से जुड़े हुए 25 साल से भी ज्यादा वक्त हो गया है और अब तो यह मुझे अपने घर जैसा लगने लगा है।Óइस स्कूल में दो सेक्शन हैं। पांचवी क्लास तक इस तरह के खास बच्चों को रचनात्मक चीजें सिखाई जाती हैं। इसके अलावा अपने किस्म का अनूठा पांच वर्षीय डिप्लोमा कोर्स भी है, जिसके तहत मानसिक रूप से अविकसित युवाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। स्कूल का मुख्य उद्देश्य उन्हें ऐसी बुनियाद देने का है जिसके सहारे वे आत्मनिर्भर बन सकें और अपने अभिभावकों पर निर्भरता रूपी बेडिय़ों से मुक्त हो सकें।37 साल पहले शुरू हुए एसपीजे सडाना स्कूल ने समय के साथ-साथ आगे बढ़ते हुए पठन-पाठन की नई-नई तकनीकें और अनूठा पाठ्ïयक्रम तैयार किया। राधिके के मुताबिक, 'हमारे समक्ष बड़ा काम है। ऐसे बच्चों के लिए कोई आरक्षण नहीं है। रोजगार की श्रेणी में उनके लिए कोई आरक्षण नहीं होता। हम इन बच्चों को प्लेसमेंट का मंच देते हैं और हमारी सफलता की दर 93 फीसदी है। ये सभी अच्छी जगहों पर पहुंचे हैं। असल में लोगों को उन पर भरोसा करना चाहिए और उन्हें यूं ही खारिज नहीं कर देना चाहिए।Ó चूंकि उन्हें भविष्य के लिहाज से अपनी शारीरिक सीमाओं से आगे देखने और सीमाओं से परे जाने की जरूरत होती है, इस लिहाज से स्कूल नई-नई तकनीकों की मदद से शिक्षा तथा इस तरह का प्रशिक्षण देता है ताकि उन्हें इस स्वार्थी दुनिया में खारिज न कर दिया जाए। इस स्कूल के पॉलीटेक्निक कोर्स का मुख्य फोकस अलग-अलग विभागों में प्रशिक्षण व शिक्षा के जरिए इन्हें मुख्यधारा के समाज के साथ जोडऩा है। इसके साथ-साथ रोजगार के हिसाब से जरूरी मानदंडों पर भी जोर दिया जाता है, मसलन काम के दौरान आपका व्यवहार सही रहे, आप दूसरों के साथ बेहतर संवाद स्थापित कर सकें। इन्हें सेल्फ-हेल्प का हुनर भी सिखाया जाता है। कार्यशालाओं और फील्ड ट्रिप्स पर ले जाना इस प्रोग्राम का अभिन्न हिस्सा है। खासकर इंटर्नशिप के अंतिम दो वर्र्षों में तो ऐसा ही होता है। इससे उन्हें बेशकीमती अनुभव मिलता है। अलग-अलग तरह की परिस्थितियों को प्रत्यक्ष समझने का अवसर मिलता है और बाधाओं से पार पाने का व्यावहारिक प्रशिक्षण मिलता है। इस दौरान स्कूल द्वारा अपनाई गई सुरक्षा व्यवस्था ही इनके साथ होती है। इस कोर्स में शामिल हैं- विजुअल आट्ïर्स एंड क्राफ्ट्ïस, हॉस्पिटैलिटी एंड कैटरिंग। तीन साल के गहन प्रशिक्षण के बाद चौथे व पांचवें साल में इंटर्नशिप पर ध्यान दिया जाता है। वोकेशनल कोर्स में शामिल हंै- हल्की मशीनों पर काम करना, सॉर्र्टिंग, एसेंबलिंग, स्टिकिंग, पैकेजिंग और प्रिंटिंग।amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-37463616966183279832010-01-01T23:52:00.000-08:002010-01-04T07:58:30.643-08:00'पल दो पलÓनये साल के शुभ अवसर पर आप तमाम ब्लॉगर भाइयों को शुभकामना। नन्हे पंखों की ओर से आप सबको ढेर सारा प्यार। नए साल के इस पल को जिस तरह मैंने महसूस किया और इसें जिन शब्दों में पिरोया, आपके सामने रख रहा हूं। इसे लिखते हुए मैं अपने वास्तविक मुहिम से हर पल के अहसास को जोडऩा चाहता हूं। नन्हे पंखों के पलपल का जो अहसास है उसकी कुछ छवि शायद आपको इन पंक्तियों में मिले।<br /><br />पेड़ों के नीचे बैठे पल ,<br />कुछ सोए से, कुछ संभल-संभल।<br />कुछ हाथों से यूं फिसल-फिसल,<br />वो दूर खड़े मुस्काते पल।<br />कुछ सपनों में, कुछ अपनों में,<br />कुछ घायल से कतराते पल।<br />कुछ बिखरे-बिखरे पत्ते से,<br />कुछ खिलते से, अंकुराते पल।<br />कुछ पल दो पल में हवा हुए,<br />बीते जीवन, मुरझाते पल।<br />कुछ याद रहे, कुछ भूल गए,<br />कुछ साथ चले हमसाए पल।<br />ये पल जो पल पल खोते हैं,<br />हम याद जिन्हें कर रोते हैं,<br />यूं रात-रात क्यूं जागे पल,<br />आंखों से कच्चे धागे से,<br />यूं छलक-छलक छलकाते पल।<br />लहरों सी ऊबडूब सांस हुूई,<br />जब जीवन घिरकर फांस हुई,<br />वो मुश्किल से समझाते पल।<br />अपनों का कंधा कंधा है,<br />बाकी तो झूठा फंदा है,<br />क्यूं झूठे वादे कर-कर के,<br />यूं लूट गए बलखाते पल।<br />जो वक्त के तिनके चुन चुनकर,<br />यंू रखा इक चेहरा बुनकर,<br />वो कल का चेहरा आज नहीं,<br />उन्हें ढूंढ़ रहे घबराते पल।<br />जो कल बीता वो आज नहीं,<br />जो आज, यूंही ढल जाएगा,<br />तुम रचते रहना पल-पल कुछ,<br />तो वक्त संभलता जाएगा,<br />जीवन एक बहता दरिया है,<br />बहते रहना सिखलाते पल।<br />पेड़ों के नीचे बैठे पल ,<br />कुछ सोए से, कुछ संभल-संभल।amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-12694591260981306452009-11-18T10:52:00.000-08:002009-11-18T11:01:27.788-08:00नन्हे पंखों संग मुस्कुराया चांद<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZ_XYP-VG3S_QrrxlJ_1gxJTUEjnXbLQoD-J6k6RoJvUwHuVaQFW3ZHey6Gxd6rXgTGtI1xWWf42yQtcaVGi3C8UHtftYEZTOZ1wgf03oosvxGtBbf6XcS1rAIH1GCuvIQ_kAilPGAaQg/s1600/north-pole-moon2.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5405520553646640706" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 240px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZ_XYP-VG3S_QrrxlJ_1gxJTUEjnXbLQoD-J6k6RoJvUwHuVaQFW3ZHey6Gxd6rXgTGtI1xWWf42yQtcaVGi3C8UHtftYEZTOZ1wgf03oosvxGtBbf6XcS1rAIH1GCuvIQ_kAilPGAaQg/s320/north-pole-moon2.jpg" border="0" /></a><br /><div></div>शब्द बहुत कुछ नहीं करते पर इनका स्पंदन अंतरिक्ष में होता है और उसकी सार्थक प्रतिक्रिया धरती पर भी होती है। सेरिब्रल पाल्सी, प्रिजोरिया, मस्कुलर डिस्ट्रोफी, थेलेसिमिया और ऑटिस्टिक से प्रभावित बच्चों के हक में सार्थक और सकारात्मक शब्दों को अबतक जोड़ता रहा हूं, कॉस्मिक एनर्जी से प्रार्थना करता रहा हूं कि इनके अंदर के पॉजिटिव वाइब्रेशन को अपनी ऊर्जा से सींचो और इन्हें भी फलने फूलने दो। इन में से हरएक बीमारी पर शोध हो रहे हैं। दुआ करता हूं शोध में लगे शोधकर्ताओं को जल्दी सफलता मिले। आज नन्हे पंखों के लिए कुछ गुनगुनाने का मन कर रहा है। मेरा छह वर्षीय बेटा कुशाग्र जो सीपी का मरीज है, गाना सुनने का शौकीन है। उसे थपकी देकर सुलाते, कभी टहलाते कभी बिस्तर पर यूहीं उसके साथ खेलते मैंने गुनबुन कर जो उसे सुनाया आज उनमें से एक-दो नन्हे पंखों के लिए भी परोस रहा हूं। 15 अगस्त को बाबू के साथ टहलते हुए ये अहसास शब्दों में ढल गए ।<br />चल री खुशी.......<br />चल री खुशी चल।<br />नदिया संग कलकल छलछल ।।<br />चल री खुशी चल।<br />मेरे मन के सूने आंगन में<br />कोई फूल खिला चल,<br />चल री खुशी चल।<br />बलखाती, लहराती चल<br />नदिया संग कलकल छलछल ।।<br />चल री खुशी चल।<br />तू भूल गई तो रुठे सब,<br />अपने जितने थे, झूठे सब,<br />रिश्ते-नाते भूल<br />चल री खुशी चल।<br />नदिया संग कलकल छलछल ।।<br />होठों पर मुस्कान लिए चल,<br />पल पल मीठी तान लिए चल,<br />आज नया ये ज्ञान लिए चल,<br />चल री खुशी चल।<br />नदिया संग कलकल छलछल ।।amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-74178543382514541462009-11-13T10:59:00.000-08:002009-11-13T11:00:47.206-08:00नन्हे पंखों को बाल दिवस की शुभकामनानन्हे पंखों को बाल दिवस की ढेर सारी शुभकामना और आशीर्वाद। आपके संघर्ष से ऊपर वाला भी पिघले और आपको सामान्य बच्चों सी जिन्दगी दे। मेरी प्रार्थना है, हर बच्चा खुशहाल हो, हंसे, खिलखिलाए और वो सब पा ले जो चाहता है।amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-69403500984442884752009-11-02T05:45:00.000-08:002009-11-02T05:46:42.408-08:00गुरु पर्व की शुभकामनानन्हे पंखों और सभी ब्लॉगर भाइयों को गुरु पर्व की शुभकामना। गुरु पर्व पर परमपिता परमेश्वर से नन्हे पंखों के कष्टों को हरने की प्रार्थना करता हूं।amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-71650682346765681132009-10-14T07:13:00.000-07:002009-10-14T07:48:16.168-07:00मेरे चारों बेटों को मौत दे दोलाइलाज बीमारी से पीडि़त बच्चों को इच्छा मृत्यु देने के लिए लगाई राष्ट्रपति से गुहार<br />वक्त आता है जब आदमी परिस्थितियों से लड़ता हुआ हारने लगता है, हम कहने को कह सकते हैं, चिंता न करें सब ठीक हो जाएगा पर जीत नारायण और उन्की पत्नी के हालात से रू-ब-बरू हाने के बाद ऐसा लिखने या कहने की हिम्मत मै नहीं जुटा पा रहा हूं। फिर भी ईश्वर से प्रार्थना है कि कोई रास्ता निकाले। प्रस्तुत है दैनिक भास्कर के 12 अगस्त अंक में छपा वो अंश।<br />अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए मां—बाप जिंदगी भर दुआएं करते हैं परंतु उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में ऐसे मां—बाप भी हैं जो लाइलाज बीमारी मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (हड्डियों के भुरभुराकर टूटने)से पीडि़त 10—16 साल उम्र तक के अपने चार बेटों के लिए मौत की दुआएं कर रहे हैं। कहीं से भी कोई मदद न मिलती देख इन्होंने अब राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील को पत्र लिखकर इन बच्चों के लिए इच्छा मृत्यु देने की मांग की है।<br />लाखों का कर्ज<br />मिर्जापुर के बाशी गांव के किसान जीत नारायण और उनकी पत्नी प्रभावती चार बेटों दुर्गेश (16) सर्वेश (14)ब्रिर्जेश (11)और सर्वेश(10) के इलाज के लिए पैतृक संपत्ति भी बेच चुके हैं। अब उनके सिर पर लाखों रुपए का कर्जहै। कमाई का भी कोई जरिया नहीं बचा है। प्रभावती का कहना है कि उनके बेटे पांच—पांच साल तक आम बच्चों जैसे थे उसके बाद इस बीमारी ने उन्हें शारीरिक रूप से अक्षम कर दिया। पैरों पर खड़ा होना तो दूर अब तो इनका चलना—फिरना यहां तक कि हिलना—डुलना भी मुश्किल है। डॉक्टरों ने भी इनके ठीक होने की उम्मीद छोड़ दी है। मुझसे अब यह देखा नहीं जाता। इन्हें मौत देने से इनकी सारी तकलीफ खत्म हो जाएगी। जीत नारायण और प्रभावती को अब यह डर सता रहा है कि कहीं यह बीमारी उनकीबेटी को न लग जाए। बेटी की उम्र अभी चार साल है।<br />मस्कुलर डिस्ट्रॉफी: पीजीआई में हर साल आते हैं बीस मरह्वीज<br />चंडीगढ़. पीजीआई के न्यूरोलॉजी विभाग में पड़ोसी राज्यों से सालभर में पंद्रह से बीस मरीज मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के आते हैं। मसल्स को कमजोर करने वाली इस बीमारी का इलाज फिलहाल नहीं है। मसल्स में पहुुंचने वाले प्रोटीन के डिफेक्टिव होने से यह बीमारी होती है। पीजीआई के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर विवेक लाल ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पैरों की मसल्स कमजोर होना शुरू होती हैं फिर हाथों से लेकर अन्य अंगों की मसल्स कमजोर होती हैं। जीन के माध्यम से मसल्स में पहुुंचने वाले प्रोटीन डिफेक्टिव होने से मसल्स कमजोर होने लगते हैं। बीमारी ज्यादा बढऩे पर मरीज का गर्दन से नीचे हिलना डुलना खम्त्म हो जाता है।amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-36346931655555273012009-10-08T06:16:00.000-07:002009-10-08T06:31:21.258-07:0053 साल के जगतीत और 7 साल का दिमागबचपन में मेधावी थे जगजीत और अव्वल आते थे<br />वक्त ने कुछ अजीब सा खेल खेला है----<br />ब्लॉग के प्रिय साथियों मैं आप सब के सामने एक ऐसे मां की आपबीती सुनाने जा रहा हूं जो चाहती हैं कि उनकी मौत से ठीक पहले उनके बेटे की मौत हो जाए। मैं उदयपुर के जगजीत की केस हिस्ट्री हू-ब-हू वैसे ही परोस रहा हूं जैसा उनकी मां ने मुझे लिख कर दिया। जगजीत 53 साल के हैं लेकिन उनका दिमाग सात साल के बच्चे का है।<br />जन्म- 23 नवम्बर 1956 दिन शुक्रवार। जन्म के समय वजन साढ़े 9 पाउंड। जगजीत एक हंसते खेलते सामान्य बच्चे की तरह दुनिया में कदम रखा। एक साल में ही चलना और दो साल में स्पष्ट बोलना शुरू कर दिया था जगजीत ने।<br />बीमारी : पहली बार ढाई साल की उम्र में लीवर की शिकायत हुई जो धीरे-धीरे काफी गंभीर हो गई। कई तरह के उपचार के बाद करीब एक साल में उसकी बीमारी ठीक हुई। उसके बाद वह चार साल तक बिल्कुल स्वस्थ रहा। <br />स्कूल में प्रवेश : लगभग छह साल की उम्र में पहली कक्षा में भर्ती किया। करीब आठ माह तक पढ़ाई में अव्वल रहा।<br />टायफाइड : दूसरी बार सात साल की आयु में बीमार हुआ। आयुर्वेद से एक महीने तक इलाज करवाया। उसके बाद अचानक काफी तेज बुखार आया जिसमें जगजीत ने कुछ से कुछ बोलना शुरू किया। उसके बाद हमने उसे इंदौर के एक हास्पीटल में भर्ती करवाया। यहां पर चेकअप के बाद वह कौमा में चला गया। डॉक्टर चेकअप करते और हर बार उसकी रिपोर्ट में कोई न कोई नई बीमारी बतला देते। जांच के बाद उन्होंने उसकी रिपोर्ट में आंखों की रोशनी खत्म होना बताया क्योंकि काली वाली पुतली तो ऊपर चढ़ चुकी थी और आंखें सिर्फ सफेद दिखाई देती थीं। उसे कानों से सुनाई भी नहीं देता था। वह एक लाश की तरह पूरे छह महीने भर्ती रहा। यहां डॉक्टर नाक से नली के सहारे दूध और दवाइयां आदि देते रहे और साथ ही हर दिन रीढ़ की हड्डी से एलपी करके एक से दो सीरिंज सफेद पानी निकालते रहे। पूरे छह माह के बाद उसे धीरे-धीरे होश आना शुरू हुआ। इसी बीच लेफ्ट साइड में पैरालिसिस भी हो गया। यह बड़ी ही भयावह स्थिति थी। न बैठना, न बोलना और चलने का तो सवाल ही नहीं। पूरे एक साल में बैठकर चलना सिखाया गया। डाक्टरों का कहना था कि इसे ब्रेन टीबी हो गया है। दिमाग की नसें तेज बुखार के कारण अब ऐसी स्थिति में पहुंच गईं थीं कि वह पागलों जैसा व्यवहार करने लगा। जैसा हम कहते, वह वैसा ही चिल्ला कर बोलता रहता। गुस्से में उसके हाथ में जो भी आता फेंक देता अपने आप को मारता रहता। इस कारण से उसके दोनो हाथों को पलंग से बांधकर रखना पड़ता। जब कुछ माह बाद चलना सीखा तो घर से भागना शुरू कर दिया। पागलों जैसी स्थिति में कहीं भी भाग जाता उसके बाद मेरा, मेरे बड़े बेटे का और आसपास के लोगों का काम सिर्फ ढूंढना रहता। कभी-कभी सारा-सारा दिन नहीं मिलता। इसके बाद हमने हार कर उसे एक लम्बे चेन से बांध कर रखना शुरू किया। चेन इतनी लम्बी थी कि वह घर के हर हिस्से में जा सके। टायलेट, बाथरूम जा सके। इसके बावजूद वह चकमा देकर भाग जाता, कभी किसी बस में चढ़कर कहीं चला जाता। कभी-कभी ट्रेन में चढ़कर भाग जाता। इतना ही नहीं दो-दो,चार-चार यहां तक की आठ-आठ दिन भटकता रहता। लोग उसे बड़ी बुरी हालत में पकड़कर घर लाते। भूखा-प्यासा भटकता रहता। इसके अलावा तीन बार तो ऐसा भागा कि 12 दिनों बाद मिला और एक बार 25 दिनों के बाद। जिस हाल में उसे लाया गया उसे लिखना या बताना असंभव है। घर आने पर उसकी बातों से जानकारी मिलती कि यह उन दिनों मुंबई, पूणा, मद्रास और न जाने कहां-कहां भटकता रहा। जगजीत का छोटा भाई उन दिनों ढाई साल का था जिसे लेकर हम भोपाल में अखबारों में रिपोर्ट छपवाते, हर स्टेशन पर पंपलेट बंटवाते, उसे दीवारों पर खुद और लोगों की मदद से चिपकाते। आज भी गुस्सा आने पर अपने आप को मारपीट कर घर से निकल जाता है और रात के 12 बजे, 2 बजे तक लौटता है।<br />हमारी परेशानियां : उपरोक्त समस्याओं को देखते हुए सहज अंदाज लगाया जा सकता है कि हमें किन-किन मुसीबतों का सामना करना पड़ा होगा। कितने तरह के इलाज करवाए, उनमें अनाप-सनाप पैसा खर्च हुआ जिसका अंदाजा लगाना संभव नहीं है। इसकी पूरी सेवा करना, नहलाना, खिलाना, कपड़े बदलना आदि काम मुझे आज भी करने पड़ते हैं और मुझे अंतिम सांस तक इसे करना है। प्रार्थना (जो जगजीत की मां ईश्वर से कर रहीं हैं।) : मेरे मरने से पहले इसे ऊपर बुला लो भगवान नहीं तो मैं चैन से मर भी नहीं सकूंगी।<br />श्रीमती निर्मला कपूर,6, गणेश मार्ग, निर्मल कुंज, उदयपुरराजस्थान। फोन : 2490767<br />साथियों ये जगजीत और उनके मां की दास्तां है। और न जाने कितने ज़ख्म ऐसे हैं जिसे टटोलने से मन पर दर्द के फफोले अनायास उभर आते हैं। चकाचौंध के बीच एक दुनिया यह भी है, जिन्दगी की सिलवटें हैं और नितांत अंधेरा है, तनहाई है। हो सके तो इस नंबर पर फोन कर निर्मलाजी को हौसला दीजिएगा कि लोग हैं जो उनके साथ हैं, आपके बाद भी जगजीत जगमगाता रहेगा। वैसे आप खुद दो सौ साल जिएं, कामना है और आप जैसी मां को जीना भी चाहिए क्योंकि आप मां की एक मिसाल हैं। दीपावली के इस शुभ अवसर पर मैं इन्हें शुभकामना देता हूं, ईश्वर इनकी सुने और इनका जीवन रोशनी से भर दे।amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-50054591237779302522009-09-27T10:41:00.000-07:002009-09-27T10:44:07.146-07:00विशेष बच्चें ने मनाया दशहरा<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOSd95MitkdSOhClkl4M6H10tuPP-GFOSt8vgLF1IH_cUYAVpi5kcw9BqhmabJcfBarVjpoidUUYII6h6e-1zlV86GcnnLAyvAka73xAjSbXksBpSrJ5NUngNwFZj706YmjXha5xJAty0/s1600-h/25vijay01.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5386204174920586738" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 210px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOSd95MitkdSOhClkl4M6H10tuPP-GFOSt8vgLF1IH_cUYAVpi5kcw9BqhmabJcfBarVjpoidUUYII6h6e-1zlV86GcnnLAyvAka73xAjSbXksBpSrJ5NUngNwFZj706YmjXha5xJAty0/s320/25vijay01.jpg" border="0" /></a><br /><div>यह ब्लॉग अक्षम बच्चों के संघर्ष को समर्पित है<br />विभिन्न प्रकार की मानसिक समस्याओं से जूझ रहे बच्चों को भी त्योहार का आनंद प्रदान करने के लिए शुक्रवार को सेक्टर—36 स्थित सोरेम इंस्टीट्यूट में दशहरा मनाया गया। कार्यक्रम में शामिल विशेष बच्चों और उनके अभिभावकों ने आपस में बातचीत कर विभिन्न समस्याओं का समाधान ढूंढऩे का भी प्रयास किया। इस मौके पर मोहाली दशहरा कमेटी के सहयोग से रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले जलाए गए। सोरेम की सचिव प्रोमिला चंद्रमोहन ने बताया कि दशहरा के उपलक्ष्य पर बच्चों को त्योहार की खुशियां प्रदान करने का यह हमारा छोटा सा प्रयास है। आतिशबाजी की बच्चों ने भी इस आयोजन का भरपूर आनंद लिया। इस मौके पर शानदार आतिशबाजी भी की गई।</div>amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-68344104777042736852009-09-21T05:56:00.000-07:002009-09-21T05:57:27.077-07:00नवरात्र की शुभकामनानन्हे पंखों को नवरात्र की ढेर सारी शुभकामना। ईश्वर करे उनकी हर मनोकामना पूरी हो। माता रानी की चौखट तक अगर मेरी आवाज पहुंचे तो मैं उनसे विनती करता हूं कि सभी अक्षम बच्चों को स्वस्थ कर दें। सभी ब्लॉगर भाइयों को भी नवरात्र की ढेर सारी शुभकामना। कामना है, उनकी हर मनोकामना पूरी हो।amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-21822032043524610452009-09-04T11:49:00.000-07:002009-09-04T11:52:40.121-07:00दूर तक छलेगा यह उजाला, अंधेरे साजिश करेंगेआधुनिकता के इस षडयंत्र के साथ नीचे पढ़ें नन्हे पंखों का दर्द।amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4342585317566158995.post-56637308210864377692009-09-04T11:34:00.000-07:002009-09-04T11:40:29.446-07:00थर्मल पॉवर के रैडिएशन से बच्चे हो रहे विकलांग<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgVHHRS7xM1ZU91dUnmCc4AkfjFw-SE_QjTKAEz-cTfOCt3mBxX2gFzPLCUnH5cNTsJRAWGt6ZkmOEvZa1WkXKYOgJJtN6L0KODP_vUhJNyT2D8m5WDOpZC8SmhJl5spHQPECZsW7_wre4/s1600-h/CP-1.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5377683397914529186" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; 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के आसपास के इलाके में रहने वाले रैडिएशन के कुप्रभाव से बच नहीं सकते और इस कारण उन्हें गंभीर स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें पेश आती हैं। इससे नवजात बच्चों के मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग होने का खतरा रहता है। भटिंडा, फरीदकोट और मालवा सहित आसपास के इलाकों में लगातार मंदबुद्धि (मेंटली चायलेंज्ड) बच्चे पैदा हो रहे हैं। इन सबको नजरंदाज करते हुए गिद्दरबाहा, राजपुरा और तलवंडी साबो में नये थर्मल पावर प्लांट लगाने की तैयारी हो रही है। यह गंभीर चिंता का विषय है। ऐसे उजाले का कोई मतलब नहीं है जिसके पीछे अंधेरे का विशाल साम्राज्य हो। अंधेरे की इस साजिश में कई नन्हे पंखों की उड़ान को ग्रहण लग जाएगा। पंजाब सरकार को इसपर संजीदगी से विचार करना चाहिए। जब आने वाली पीढ़ी ही अपंग पैदा होगी तो रोशनी से नहाए शहर और गांवों का होना बेमानी हैं।amlendu asthanahttp://www.blogger.com/profile/03358266859679497823noreply@blogger.com5