इस हफ्ते आने वाली मेरी किताब
Monday, August 12, 2013
Saturday, February 23, 2013
Monday, March 5, 2012
मानसिक रूप से अक्षम बच्चों के लिए विशेष थीम पार्क
दिव्य भास्कर नेटवर्क. अहमदाबाद अहमदाबाद में शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए एक विशेष थीम पार्क बनाया गया है। यहां वे आवाज सुनकर या छूकर चीजों को महसूस कर सकते हैं। नेशनल स्कूल ऑफ डिजाइंस की छात्रा अंजलि मेनन व अदिति अग्रवाल ने यह पार्क तैयार किया है। :इनक्लूजिव सेन्सरी आउटडोर पार्क फॉर चिल्ड्रन– नामक इस थीम पार्क में विशेष बच्चों के लिए बायस्कोप, बेंबू चाइम्स और इन्टरेक्टिव वॉल जैसी चीजें बनाई गई हैं। इस पार्क का उद्देश्य विकलांग बच्चों में आउटडोर प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन देना है। पार्क में रखे बायस्कोप की डिजाइन अंतरिक्ष यान जैसी बनाई गई है। विशेष बच्चों के लिए यह विजुुअल सिम्युलेटर की तरह काम करेगा। मानसिक रूप से कमजोर बच्चों की एकाग्रता इससे बढ़ाने में मदद मिलेगी। इसमें अलग-अलग फोटो देखने की व्यवस्था है। पार्क में लगाई गई बेंबू चाइम्स इन विशेष बच्चों का कई तरह से विकास करने में मदद करेंगी। बच्चे इनके नीचे से गुजर सकेंगे, उनके बीच संकरी जगह से दूसरी ओर देख पाएंगे। साथ ही उनके टेक्स्चर को महसूस कर सकेंगे। बेंबू चाइम्स में फूंक मारके अलग-अलग प्रकार की आवाज निकाल पाएंगे।
Thursday, February 23, 2012
मासूमों ko kaun देखेगा।
हर शहर में अक्षम bachchon ke liye directory होनी चाहिए और उनko सपोर्ट kahan से मिले इसki व्यवस्था समाज ko सजग लोगों ko karni चाहिए। सरkar ko भी इस दिशा में kadam उठाना चाहिए। वर्ना जहां तीन feet जमीन ke लिए भाई,भाई ko जला रहा है। बेटा बाप ka katl kr रहा है। ऐसी दुनिया में उन बेजुबान मासूमों ko kaun देखेगा। मेरा ९ साल ka बेटा भी उद्बहीं बेजुबान मासूमों में से Ek है।
Tuesday, May 24, 2011
मन के जीते प्रीत है
मेंटली चैलेंज्ड मनप्रीत के सार्थक संघर्ष की पे्ररणादायक कहानी पिछले दिनों दैनिक भास्कर के सिटी लाइफ में प्रकाशित हुई। प्रवीण कुमार डोगरा की इस रिपोर्ट को नन्हे पंख पर साभार प्रकाशित कर रहा हूं। उम्मीद है इस संकट से जूझ सहे अन्य मां-बाप को भी इससे संबल मिलेगा और अंधेरों से लड़कर वो एक नई सुबह अपने आंगन में खिला पाएंगे।
स्कूल में ट्रेनर के एक इशारे पर घंटों ट्रेड मिल पर दौड़ता है। दोपहर 3:30 बजे सेक्टर-7 के स्पोट्र्स कॉम्प्लेक्स के ट्रैक पर अपने फादर के पीछे लगातार दौड़ता रहता है। ये एथलीट कभी थकता नहीं। इसका नाम है मनप्रीत सिंह। उसकी एनर्जी का राज फिजिकल फिटनेस से ज्यादा इंसपिरेशन है जो उसे सामने वाले को वही काम करता देख मिलती है। इसी इंसपिरेशन के साथ मनप्रीत एथेंस में 25 जून से हो रहे स्पेशल समर्स ओलंपिक में एथलेटिक्स कैटिगरी में पार्टिसिपेट कर रहा है। मेडिकल साइंस के मुताबिक बचपन से एमआर यानी मेंटली रिटार्डेशन के शिकार होने के बावजूद इस लेवल तक पहुंचे मनप्रीत के सफर पर एक नजर: 14 साल से दौड़ जारी है: सुबह 6 बजे अपने घर से निकलते हैं। 3:30 बजे स्कूल बस चलाकर घर लौटते हैं। 'फिर टाइम आराम का नहीं दिन के सबसे जरूरी काम का होता है। मनप्रीत को स्पोट्र्स कॉम्प्लेक्स में ले जाकर दौड़ लगवाने और कसरत करवाने का। यह काम बिना किसी छुट्टी और आराम के होता है। इसी के चलते तो मनप्रीत आज इस लेवल तक पहुंचा हैÓ, अपने बेटे की कामयाबी की कहानी सुनाते मनप्रीत के 55 साल के पिता हरजिंदर सिंह को देखकर बेचारगी नहीं वाह का भाव आता है। वे इस उम्र में भी मनप्रीत के साथ दौड़ते दिखते हैं ताकि वह उन्हें कॉपी करते हुए दौड़े और उनसे कंपीटिशन फील करे। हरजिंदर कहते हैं,'मनप्रीत किसी भी चीज को ज्यादा देर तक याद नहीं रख पाता है। इसलिए उससे कोई भी काम करवाने के लिए खुद उस काम को करके दिखाना पड़ता है। पिछले 14 साल से यही रूटीन जी रहा हूं मैं।Ó थकना यहां मना है: उम्र में 26 साल के मनप्रीत बाकी बच्चों की ही तरह स्कूल जाते हैं। इनका स्कूल है सेक्टर 36 का सोरम। यहां ट्रेनर राकेश कुमार की मानें तो मनप्रीत को थकने का पता नहीं है, अगर उसे कुछ करने की इंसपिरेशन मिल जाए। घंटों ट्रेड मिल पर हंसते हुए गुजार सकता है और कहने पर स्केटिंग के कई राउंड भी काट सकता है।Ó चाहे मनप्रीत अपनी उम्र के लोगों से कई चीजों में पिछड़ा हो मगर बहुत सारी चीजें ऐसी भी हैं जो आम इंसान में नहीं मिल सकती हैं। 'इसे कुछ नहीं चाहिए, न ही कोई डिमांड है। बस आपकी अटेंशन चाहिए। वह स्टेडियम के कई चक्कर काट सकता है, सिर्फ इसके लिए कि कोई कहे, क्या बात है मनप्रीत तुम तो चैंपियन होÓ, सेक्टर- 20 से पानी की बॉटल और दो केले लेकर सेक्टर-7 आने वाली मां सरबजीत कौर स्माइल करते हुए बताती हैं। टाइटल पहले ही जीत चुके हैं: पिछले 26 सालों से मनप्रीत पर बिना किसी उम्मीद से मेहनत कर रहे मां-बाप कहते हैं,'चार साल के मनप्रीत और आज के मनप्रीत में जो फर्क हम देख रहे हैं, वही हमारी जीत का टाइटल है। एक ही चीज को अनगिनत बार बताना और सिखाना पड़ता था मगर हमने हार नहीं मानी। पहले भवन विद्यालय और अब सोरम स्कूल भेजने से यह सुधार आया है। अब स्पोट्र्स के अलावा मनप्रीत अपने बाल बांधने से लेकर अंडरवियर धोने तक में ट्रेंड हो चुका है। मनप्रीत में यह सुधार स्पोट्र्स से ही आया है।Ó ट्रायल उडऩे का भी: पेरंट्स बच्चे के लिए कितने केयरिंग और फिक्रमंद होते हैं, इसकी मिसाल हैं मनप्रीत के पेरंट्स। बेटा एथेंस जा रहा है तो उसे जहाज में उडऩे का एक्सपीरियंस कराने के लिए मां-बाप खासतौर पर जहाज से गोवा लेकर गए। इस पर सरबजीत कहती हैं, 'हम 10 अप्रैल को सिर्फ इसलिए गोवा गए ताकि यह जहाज में एथेंस जाते हुए घबराए न। हम चाहते हैं कि वह जहाज के अंदर की चीजों के प्रति अनजान न फील करे।Ó
स्कूल में ट्रेनर के एक इशारे पर घंटों ट्रेड मिल पर दौड़ता है। दोपहर 3:30 बजे सेक्टर-7 के स्पोट्र्स कॉम्प्लेक्स के ट्रैक पर अपने फादर के पीछे लगातार दौड़ता रहता है। ये एथलीट कभी थकता नहीं। इसका नाम है मनप्रीत सिंह। उसकी एनर्जी का राज फिजिकल फिटनेस से ज्यादा इंसपिरेशन है जो उसे सामने वाले को वही काम करता देख मिलती है। इसी इंसपिरेशन के साथ मनप्रीत एथेंस में 25 जून से हो रहे स्पेशल समर्स ओलंपिक में एथलेटिक्स कैटिगरी में पार्टिसिपेट कर रहा है। मेडिकल साइंस के मुताबिक बचपन से एमआर यानी मेंटली रिटार्डेशन के शिकार होने के बावजूद इस लेवल तक पहुंचे मनप्रीत के सफर पर एक नजर: 14 साल से दौड़ जारी है: सुबह 6 बजे अपने घर से निकलते हैं। 3:30 बजे स्कूल बस चलाकर घर लौटते हैं। 'फिर टाइम आराम का नहीं दिन के सबसे जरूरी काम का होता है। मनप्रीत को स्पोट्र्स कॉम्प्लेक्स में ले जाकर दौड़ लगवाने और कसरत करवाने का। यह काम बिना किसी छुट्टी और आराम के होता है। इसी के चलते तो मनप्रीत आज इस लेवल तक पहुंचा हैÓ, अपने बेटे की कामयाबी की कहानी सुनाते मनप्रीत के 55 साल के पिता हरजिंदर सिंह को देखकर बेचारगी नहीं वाह का भाव आता है। वे इस उम्र में भी मनप्रीत के साथ दौड़ते दिखते हैं ताकि वह उन्हें कॉपी करते हुए दौड़े और उनसे कंपीटिशन फील करे। हरजिंदर कहते हैं,'मनप्रीत किसी भी चीज को ज्यादा देर तक याद नहीं रख पाता है। इसलिए उससे कोई भी काम करवाने के लिए खुद उस काम को करके दिखाना पड़ता है। पिछले 14 साल से यही रूटीन जी रहा हूं मैं।Ó थकना यहां मना है: उम्र में 26 साल के मनप्रीत बाकी बच्चों की ही तरह स्कूल जाते हैं। इनका स्कूल है सेक्टर 36 का सोरम। यहां ट्रेनर राकेश कुमार की मानें तो मनप्रीत को थकने का पता नहीं है, अगर उसे कुछ करने की इंसपिरेशन मिल जाए। घंटों ट्रेड मिल पर हंसते हुए गुजार सकता है और कहने पर स्केटिंग के कई राउंड भी काट सकता है।Ó चाहे मनप्रीत अपनी उम्र के लोगों से कई चीजों में पिछड़ा हो मगर बहुत सारी चीजें ऐसी भी हैं जो आम इंसान में नहीं मिल सकती हैं। 'इसे कुछ नहीं चाहिए, न ही कोई डिमांड है। बस आपकी अटेंशन चाहिए। वह स्टेडियम के कई चक्कर काट सकता है, सिर्फ इसके लिए कि कोई कहे, क्या बात है मनप्रीत तुम तो चैंपियन होÓ, सेक्टर- 20 से पानी की बॉटल और दो केले लेकर सेक्टर-7 आने वाली मां सरबजीत कौर स्माइल करते हुए बताती हैं। टाइटल पहले ही जीत चुके हैं: पिछले 26 सालों से मनप्रीत पर बिना किसी उम्मीद से मेहनत कर रहे मां-बाप कहते हैं,'चार साल के मनप्रीत और आज के मनप्रीत में जो फर्क हम देख रहे हैं, वही हमारी जीत का टाइटल है। एक ही चीज को अनगिनत बार बताना और सिखाना पड़ता था मगर हमने हार नहीं मानी। पहले भवन विद्यालय और अब सोरम स्कूल भेजने से यह सुधार आया है। अब स्पोट्र्स के अलावा मनप्रीत अपने बाल बांधने से लेकर अंडरवियर धोने तक में ट्रेंड हो चुका है। मनप्रीत में यह सुधार स्पोट्र्स से ही आया है।Ó ट्रायल उडऩे का भी: पेरंट्स बच्चे के लिए कितने केयरिंग और फिक्रमंद होते हैं, इसकी मिसाल हैं मनप्रीत के पेरंट्स। बेटा एथेंस जा रहा है तो उसे जहाज में उडऩे का एक्सपीरियंस कराने के लिए मां-बाप खासतौर पर जहाज से गोवा लेकर गए। इस पर सरबजीत कहती हैं, 'हम 10 अप्रैल को सिर्फ इसलिए गोवा गए ताकि यह जहाज में एथेंस जाते हुए घबराए न। हम चाहते हैं कि वह जहाज के अंदर की चीजों के प्रति अनजान न फील करे।Ó
Monday, May 2, 2011
आतंक से मुक्ति की बधाई।
ब्लोग्गेर्स भाइयों अप सब को मेरा शादर नमस्कार
ओसामा के आतंक से मुक्ति की बधाई। न जाने उसने कितने मासूमों की जान लिए है। कितना घर सुना किया है.
ओसामा के आतंक से मुक्ति की बधाई। न जाने उसने कितने मासूमों की जान लिए है। कितना घर सुना किया है.
Thursday, December 30, 2010
ब्लागर भाइयो को नववर्ष की ढेर सारी शुभकामना। आप सब यूंही ब्लाग के माध्यम से जुड़ें और जोड़े। हर समाज कुछ न कुछ रचता रहता है पर रचना सार्थक और सकारात्मक होनी चाहिए। अक्षम बच्चों के प्रति आपसब के संवेदनशील रुख को सलाम। आज मैं फिर अपनी कविता की वही चार पंक्ति लिख रहा हूं जो पिछले साल लिखा था.. .जो कल बीता वा आज नहीं,
जो आज यूंही ढल जाएगा
तुम रचते रहना पल-पल कुछ
तो वक्त संभलता जाएगा।
जो आज यूंही ढल जाएगा
तुम रचते रहना पल-पल कुछ
तो वक्त संभलता जाएगा।
आप सब से ढेर सारी बातें करनी है। पर एक महत्वपूर्ण जानकारी के साथ आपसे अगले पोस्ट तक के लिए बिदा ले रहा हूं।जानकारी : नवजात शिशु में 67 फीसदी को पीलिया होता ही होता है लेकिन उनका थायरायड लेवल जरूर चेक करवाएं। डॉक्टरों ने बताया है कि 20 से 25 दिन के बच्चे का टीएसएच 9 प्वाइंट तक नार्मल है लेकिन उससे ज्यादा बढऩे पर उसके ब्रेन का विकास नहीं होता है। मेरे नवजात बेटे जो अभी एक महीने और 5 दिन का है टीएसएच 11.२ है। डॉक्टरों ने इसे चिंता का विषय बताते हुए फिर से हफ्ते भर में टेस्ट कराने को कहा है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा है कि घबराने की कोई बात नहीं 25 एमजी की दवा चलाने से वह नार्मल रेंज में आ जाएगा। मैं अपने संघर्ष की बातें सांझा करना चाहता हूं ताकि जो मैं भोग रहा हूं दूसरे न भोगें।शुभ रात्रि.. .
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