Thursday, August 6, 2009

बच्चे क्यों हो जाते हैं मंदबुद्धि

जन्म से पहले- क्रोमोसोम में या गुणसुत्र में दोष उत्पन्न होने से। गुणसूत्रों की संख्या कम या ज्यादा होने से या उनमें कोई रचनात्मक दोष आ जाने से बच्चा मानसिक रूप से विकलांग या मंदबुद्धि हो सकता है। गर्भवती महिला की आयु अधिक हो जाने से भी बच्चों के अक्षम पैदा होने की आशंका यहती है। जीन में विकार आ जाने से इससे भी गर्भ में बच्चे का विकास पिछड़ जाता है। यह आणुवंशिक रोग के रूप में भी अपनी जड़ें जमा लेता है और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में आ सकता है। जीन संबंधी दोष से शारीरिक विकृतियां भी उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए गर्भवती महिलाओं को प्रसव के दौरान अपनी जांच करवा लेनी चाहिए। और हां अब गर्भ रहते यह भी जांच संभव है कि कहीं आने वाला बच्चा मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग तो नहीं होगा।
थायरॉइड की कमी:
आयोडीन की कमी के कारण थायरॉइड ग्रंथि कम काम करती है लिहाजा भ्रूण में थायरॉइड की कमी से बच्चे का मानसिक विकास रुक जाता है और बच्चा मंदबुद्धि पैदा हो सकता है। ऐसे में गर्भवती महिला को आयोडीन देकर या जन्म के बाद बच्चे को आयोडीन देकर बचाया जा सकता है। जन्म के वक्त:
समय से पहले जन्म लिए बच्चों या दो किलोग्राम से कम वजन के बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास रुक सकता है। जन्म के बाद बच्चे को यदि सांस संबंधी कोई दिक्कत पेश आए तो सामान्य रूप से जन्मा बच्चा भी मानसिक रोग का शिकार हो सकता है।
जन्म के बाद :
जन्म के कुछ दिन बाद बच्चे को सीजर का अटैक यानि ऐपिलेप्सी (मिर्गी का दौरा) आए तो भी बच्चे का मानसिक विकास रुक जाता है और बच्चा मंद बुद्धि का हो जाता है। ऐसी स्थिति को मां-बाप से बेहतर डाक्टर समझ सकते हैं। इस स्थिति में गर्भवती का इलाज कर रही लेडी डाक्टर जिसे सारी हिस्ट्री मालूम है और जन्म के समय उपस्थित चाइल्ड स्पेशलिस्ट को आपसी सलाह से बच्चे को तुरंत इंक्यूवेटर में डालना चाहिए और साथ ही अन्य एहतियाती कदम उठाने चाहिएं।
तेज बुखार :
मस्तिष्क ज्वर यानि मेनिनजाइटिस या दौरा जैसा मैंने ऊपर जिक्र किया है पडऩे से भी बच्चे के आगे चलकर मंदबुद्धि हो सकता है।
सिर में चोट :
18 वर्ष तक यदि सिर में चोट आती है तो भी मानसिक विकास रुक सकता है। नवजात बच्चों पर खास ध्यान देना चाहिए ताकि उनके सिर में चोट न लगे।

3 comments:

sanjay vyas said...

अगर कोई आनुवांशिक बीमारी ही तो शायद बच्चे को मंदता के साथ ही जीना पड़े पर फिर ज़िम्मेदारी घर और समाज की बनती है कि उसके जेवण की गुणवत्ता प्रभावित न हो. अक्सर देखने में आता है कि मंदता के शिकार बच्चे भरी उपेक्षा झेलते है.
शुक्रिया विषय उठाने का.अफ़सोस है कि ऐसे संवदनशील मुद्दे पर जहां बहस छिड़ती, कोई टिपण्णी देखने को नहीं मिल रही है. मैं कहूँगा हताश न हो, ऐसे विषयों को और आगे ले जाई.

sanjay vyas said...

सुधार
कृपया ही को है पढें , जेवण को जीवन पढें टिपण्णी को टिप्पणी और जाई को जाएं पढ़े.
सखेद.

Unknown said...

Me kuch sikhta Hu to samajh nai aata Jo sikhta Hu use Sikhne ka man nahi Karta. Kya karu