Friday, July 24, 2009

जिन्दगी की आपाधापी में जो पीछे छूट गए। किसी ने पीछे मुड़कर देखा भी नहीं वो पुकारते रहे। उत्तरआधुनिकता के इस शोर में वो बच्चे जो सेरिब्रल पाल्सी (मानसिक विकलांगता) के मरीज हैं, बेहद अकेले और शून्य में हैं। अपने घर में और किसी नुक्कड़ पर वो जब चुपचाप टुकटुक मुझे निहारते हैं तो मैं कई सवालों से घिर जाता हूं और खुद को बेहद असहाय और लाचार पाता हूं। इस वक्त जब मैं आपसे बतिया रहा हूं, कई मासूम बेजुबान नन्हें पंख अकेले अपने बिस्तर पर पड़े शून्य में निहार रहे होंगे। कोई शक्ति है अदृश्य सुना है, कामना है इन बच्चों की खिलखिलाहट लौटा दें, इनके हिस्से का जीवन इन्हें दें। जिन्हें सबकुछ मिला और जिन्हें कुछ नहीं मिला उन सबकी तलाश में आपसे मुखातिब हैं कुछ शब्द-------

2 comments:

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर !!

shantanu said...

आप उन चंद अच्छे लोगों में से हैं जिन्हें दूसरों का दाद्र्द महसूस होता है.....बधाई