Wednesday, July 15, 2009
घो-घो रानी, थोड़ा है पानी
घो-घो रानी, थोड़ा है पानी उदास है नानी।घो-घो रानी, कितना पानी का खेल अब हकीकत बन कर हलक को तरसाने लगा है। नन्हे पंखों नानी की चिंतित इसलिए है कि कल को उनके बच्चों को प्यास लगेगी तो पानी कहां से आएगा। अभी दो दिन पहले ही नानी हरिद्वार की यात्रा से लौटी है और वहां गंगा का हाल देखकर अंदर तक व्यथित है। मै आपकी नानी के साथ जिस फ्रेम के साथ गंगा दर्शन को हरिद्वार गया था वह फ्रेम वहां जाते ही छोटा हो गया। लोगों ने आस्था के नाम पर गंगा को इतना मैला कर दिया है कि भक्ति की भावना घाट पर पहुंचते ही छूमंतर हो जाती है। सब लोग अपने कांवर, प्लास्टिक बैग और यहां तक कि चप्पल भी गंगा में फेंक रहे थे। इससे हरकी पैड़ी में गंगा का पानी काफी प्रदूषित हो गया है। हमने प्रकृति को संरक्षित और सुरक्षित रखने के लिए धर्म का जो आवरण गढ़ा था, आस्था के उसी सैलाब ने प्रकृति को तहस-नहस कर दिया है। अब नदियों को बचाने की जिम्मेवारी आपको उठानी होगी नन्हे पंखों। गंगा में जो 170 करोड़ लीटर कचरा प्रति दिन बहाया जा रहा है उससे गंगा मईया को बचाने के लिए अश्वमेघ यज्ञ करना होगा।
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2 comments:
उम्दा प्रयास!! बच्चों के साथ मेरी सदभावनाऐं.
मेरे खाना मसाला ब्लॉग पर टिपण्णी देने के लिए शुक्रिया! लगता है आप भी मेरे जैसे खाने के शौकीन है! आते रहिएगा!
मेरी सदभावनाएँ सभी बच्चों के साथ और उनके लिए ढेर सारा प्यार!
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