Wednesday, August 12, 2009

मुझे वो दिन याद है

यह ब्लॉग अक्षम बच्चों के संघर्ष को समर्पित है।मानसिक रूप से अक्षम बच्चों के प्रति समाज का नजरिया क्या है इसको 'प्रयासÓसंस्था के एडीओ सह को-ऑडिनेटर एस. सी. शर्मा ने बड़ी संजीदगी से महसूस किया और उसे नन्हे पंख के साथ साझा किया। जनवरी 2006 का वो दिन मुझे आज भी याद है जब पहली बार 'प्रयासÓसंस्था में विशेष बच्चों से मुलाकात की। वो विशेष बच्चे तो दुनिया की छल-कपट से अंजान थे। मैंने समाज में विशेष बच्चों के प्रति बेरुखी देखी है। इन विशेष बच्चों को इनका अधिकार दिलाने व इनको समाज का एक बेहतर हिस्सा बनाने की प्रबल इच्छा थी। मेरा यह सपना प्रयास में आकर पूरा हुआ। उस वक्त प्रयास में केवल आठ बच्चे थे जो ऑटिस्टिक(आत्मविभोरी ) थे। उन बच्चों की अपनी ही दुनिया थी और वो दिन-रात उसी दुनिया में खोए रहते। ये बच्चे खुद पर आत्मनिर्भर नहीं थे। इन्हें अपनी भी पहचान नहीं थी। हमने सबसे पहले इन बच्चों का खुद से परिचय करवाया और फिर इन्हें दैनिक दिनचर्या में लाने की कोशिश शुरू की। इन बच्चों को जहां हमारे फिजिकल सपोर्ट की जरूरत होती वहां हम इन्हें फिजिकल सपोर्ट देते जहां मौखिक तौर पर समझाने की जरूरत होती वहां हम उन्हें मौखिक तौर पर समझाते। सिखाने का सबसे अच्छा तरीका है रोल मॉडलिंग।बच्चों को समाज की मुख्यधारा से जोडऩे के लिए जरूरी है कि जब बच्चे दैनिक कार्यों में सक्षम हो उन्हें धीरे-धीरे शिक्षण गतिविधियों में निपुण किया जाए। हमने ऐसा ही किया। प्रयास प्रीपरेटरी स्कूल में श्रद्धा, निकिता, अंकित, मन्नत जैसे कई बच्चे आत्मनिर्भर हुए। वो अपने दैनिक कार्यों में तो सक्षम हैं हीं पढ़ाई में भी आगे हैं। शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम बच्चों के प्रति समाज का नजरिया सकारात्म होना चाहिए। ऐसे बच्चों को फिजियो और ऑक्युपेशनल थेरेपी से ही ठीक किया जा सकता है। समाज से मेरा अनुरोध है कि इन बच्चों को सजा, संवारकर आत्मनिर्भर बनाने के लिए आगे आएं। संस्था और समाज का योगदान मिल जाए तो इन बच्चों की जिन्दगी में भी उजाला आ सकता है। इन्हें आपका स्नेह चाहिए। साथ में नन्हे पंख की ओर से विनती, अनेरोध आग्रह जा कह लें, पढ़ें, जानें और लोगों को भी बताएं कि प्रीनेटल टेस्ट हर गर्भवती को कराना चाहिए।

2 comments:

karuna said...

अमलेंदु जी विशेष बच्चों के लिए आपके मन में जो प्यार की भावना है वह प्रशंशनीय है ,हम सभी लोगों का प्रथम कर्त्तव्य है कि समाज को बनाने में सिर्फ शब्दों का ही प्रयोग न करें वरन शरीर से भी सहयोग करें ,इन बच्चों को हमारी सहायता की जरुरत है |आप आदर के पात्र हैं |

Urmi said...

इस बेहतरीन पोस्ट के लिए ढेर सारी बधाइयाँ! आपके जैसे अगर हर कोई इतना अच्छा सोचने लगे हमारे देश के बच्चों के बारे में तो सारे समस्या का हल हो जाएगा! आपकी लेखनी को सलाम!