बचपन में मेधावी थे जगजीत और अव्वल आते थे
वक्त ने कुछ अजीब सा खेल खेला है----
ब्लॉग के प्रिय साथियों मैं आप सब के सामने एक ऐसे मां की आपबीती सुनाने जा रहा हूं जो चाहती हैं कि उनकी मौत से ठीक पहले उनके बेटे की मौत हो जाए। मैं उदयपुर के जगजीत की केस हिस्ट्री हू-ब-हू वैसे ही परोस रहा हूं जैसा उनकी मां ने मुझे लिख कर दिया। जगजीत 53 साल के हैं लेकिन उनका दिमाग सात साल के बच्चे का है।
जन्म- 23 नवम्बर 1956 दिन शुक्रवार। जन्म के समय वजन साढ़े 9 पाउंड। जगजीत एक हंसते खेलते सामान्य बच्चे की तरह दुनिया में कदम रखा। एक साल में ही चलना और दो साल में स्पष्ट बोलना शुरू कर दिया था जगजीत ने।
बीमारी : पहली बार ढाई साल की उम्र में लीवर की शिकायत हुई जो धीरे-धीरे काफी गंभीर हो गई। कई तरह के उपचार के बाद करीब एक साल में उसकी बीमारी ठीक हुई। उसके बाद वह चार साल तक बिल्कुल स्वस्थ रहा।
स्कूल में प्रवेश : लगभग छह साल की उम्र में पहली कक्षा में भर्ती किया। करीब आठ माह तक पढ़ाई में अव्वल रहा।
टायफाइड : दूसरी बार सात साल की आयु में बीमार हुआ। आयुर्वेद से एक महीने तक इलाज करवाया। उसके बाद अचानक काफी तेज बुखार आया जिसमें जगजीत ने कुछ से कुछ बोलना शुरू किया। उसके बाद हमने उसे इंदौर के एक हास्पीटल में भर्ती करवाया। यहां पर चेकअप के बाद वह कौमा में चला गया। डॉक्टर चेकअप करते और हर बार उसकी रिपोर्ट में कोई न कोई नई बीमारी बतला देते। जांच के बाद उन्होंने उसकी रिपोर्ट में आंखों की रोशनी खत्म होना बताया क्योंकि काली वाली पुतली तो ऊपर चढ़ चुकी थी और आंखें सिर्फ सफेद दिखाई देती थीं। उसे कानों से सुनाई भी नहीं देता था। वह एक लाश की तरह पूरे छह महीने भर्ती रहा। यहां डॉक्टर नाक से नली के सहारे दूध और दवाइयां आदि देते रहे और साथ ही हर दिन रीढ़ की हड्डी से एलपी करके एक से दो सीरिंज सफेद पानी निकालते रहे। पूरे छह माह के बाद उसे धीरे-धीरे होश आना शुरू हुआ। इसी बीच लेफ्ट साइड में पैरालिसिस भी हो गया। यह बड़ी ही भयावह स्थिति थी। न बैठना, न बोलना और चलने का तो सवाल ही नहीं। पूरे एक साल में बैठकर चलना सिखाया गया। डाक्टरों का कहना था कि इसे ब्रेन टीबी हो गया है। दिमाग की नसें तेज बुखार के कारण अब ऐसी स्थिति में पहुंच गईं थीं कि वह पागलों जैसा व्यवहार करने लगा। जैसा हम कहते, वह वैसा ही चिल्ला कर बोलता रहता। गुस्से में उसके हाथ में जो भी आता फेंक देता अपने आप को मारता रहता। इस कारण से उसके दोनो हाथों को पलंग से बांधकर रखना पड़ता। जब कुछ माह बाद चलना सीखा तो घर से भागना शुरू कर दिया। पागलों जैसी स्थिति में कहीं भी भाग जाता उसके बाद मेरा, मेरे बड़े बेटे का और आसपास के लोगों का काम सिर्फ ढूंढना रहता। कभी-कभी सारा-सारा दिन नहीं मिलता। इसके बाद हमने हार कर उसे एक लम्बे चेन से बांध कर रखना शुरू किया। चेन इतनी लम्बी थी कि वह घर के हर हिस्से में जा सके। टायलेट, बाथरूम जा सके। इसके बावजूद वह चकमा देकर भाग जाता, कभी किसी बस में चढ़कर कहीं चला जाता। कभी-कभी ट्रेन में चढ़कर भाग जाता। इतना ही नहीं दो-दो,चार-चार यहां तक की आठ-आठ दिन भटकता रहता। लोग उसे बड़ी बुरी हालत में पकड़कर घर लाते। भूखा-प्यासा भटकता रहता। इसके अलावा तीन बार तो ऐसा भागा कि 12 दिनों बाद मिला और एक बार 25 दिनों के बाद। जिस हाल में उसे लाया गया उसे लिखना या बताना असंभव है। घर आने पर उसकी बातों से जानकारी मिलती कि यह उन दिनों मुंबई, पूणा, मद्रास और न जाने कहां-कहां भटकता रहा। जगजीत का छोटा भाई उन दिनों ढाई साल का था जिसे लेकर हम भोपाल में अखबारों में रिपोर्ट छपवाते, हर स्टेशन पर पंपलेट बंटवाते, उसे दीवारों पर खुद और लोगों की मदद से चिपकाते। आज भी गुस्सा आने पर अपने आप को मारपीट कर घर से निकल जाता है और रात के 12 बजे, 2 बजे तक लौटता है।
हमारी परेशानियां : उपरोक्त समस्याओं को देखते हुए सहज अंदाज लगाया जा सकता है कि हमें किन-किन मुसीबतों का सामना करना पड़ा होगा। कितने तरह के इलाज करवाए, उनमें अनाप-सनाप पैसा खर्च हुआ जिसका अंदाजा लगाना संभव नहीं है। इसकी पूरी सेवा करना, नहलाना, खिलाना, कपड़े बदलना आदि काम मुझे आज भी करने पड़ते हैं और मुझे अंतिम सांस तक इसे करना है। प्रार्थना (जो जगजीत की मां ईश्वर से कर रहीं हैं।) : मेरे मरने से पहले इसे ऊपर बुला लो भगवान नहीं तो मैं चैन से मर भी नहीं सकूंगी।
श्रीमती निर्मला कपूर,6, गणेश मार्ग, निर्मल कुंज, उदयपुरराजस्थान। फोन : 2490767
साथियों ये जगजीत और उनके मां की दास्तां है। और न जाने कितने ज़ख्म ऐसे हैं जिसे टटोलने से मन पर दर्द के फफोले अनायास उभर आते हैं। चकाचौंध के बीच एक दुनिया यह भी है, जिन्दगी की सिलवटें हैं और नितांत अंधेरा है, तनहाई है। हो सके तो इस नंबर पर फोन कर निर्मलाजी को हौसला दीजिएगा कि लोग हैं जो उनके साथ हैं, आपके बाद भी जगजीत जगमगाता रहेगा। वैसे आप खुद दो सौ साल जिएं, कामना है और आप जैसी मां को जीना भी चाहिए क्योंकि आप मां की एक मिसाल हैं। दीपावली के इस शुभ अवसर पर मैं इन्हें शुभकामना देता हूं, ईश्वर इनकी सुने और इनका जीवन रोशनी से भर दे।
Thursday, October 8, 2009
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5 comments:
behad dukhadayee sthiti hai. aur hum log apne chhote se dukhon se dukhi ho jaate hain.
ghughuti basuti
मन भर आया पढ़कर.
बेहद दुःख हुआ और दिल भर आया , हमारी भी शुभकामनाये दीपावली के अवसर पर इनका जीवन खुशियों और रौशनी से जगमगा जाए.."
regards
agar kisi ke putr ko jwar chad aaye to man ka haal vaise hi bura ho jata hai.fir poore jeevan beemar putr ,padhte padhte aankhe nam ho gayi.
behad sanjeeda
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