लाइलाज बीमारी से पीडि़त बच्चों को इच्छा मृत्यु देने के लिए लगाई राष्ट्रपति से गुहार
वक्त आता है जब आदमी परिस्थितियों से लड़ता हुआ हारने लगता है, हम कहने को कह सकते हैं, चिंता न करें सब ठीक हो जाएगा पर जीत नारायण और उन्की पत्नी के हालात से रू-ब-बरू हाने के बाद ऐसा लिखने या कहने की हिम्मत मै नहीं जुटा पा रहा हूं। फिर भी ईश्वर से प्रार्थना है कि कोई रास्ता निकाले। प्रस्तुत है दैनिक भास्कर के 12 अगस्त अंक में छपा वो अंश।
अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए मां—बाप जिंदगी भर दुआएं करते हैं परंतु उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में ऐसे मां—बाप भी हैं जो लाइलाज बीमारी मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (हड्डियों के भुरभुराकर टूटने)से पीडि़त 10—16 साल उम्र तक के अपने चार बेटों के लिए मौत की दुआएं कर रहे हैं। कहीं से भी कोई मदद न मिलती देख इन्होंने अब राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील को पत्र लिखकर इन बच्चों के लिए इच्छा मृत्यु देने की मांग की है।
लाखों का कर्ज
मिर्जापुर के बाशी गांव के किसान जीत नारायण और उनकी पत्नी प्रभावती चार बेटों दुर्गेश (16) सर्वेश (14)ब्रिर्जेश (11)और सर्वेश(10) के इलाज के लिए पैतृक संपत्ति भी बेच चुके हैं। अब उनके सिर पर लाखों रुपए का कर्जहै। कमाई का भी कोई जरिया नहीं बचा है। प्रभावती का कहना है कि उनके बेटे पांच—पांच साल तक आम बच्चों जैसे थे उसके बाद इस बीमारी ने उन्हें शारीरिक रूप से अक्षम कर दिया। पैरों पर खड़ा होना तो दूर अब तो इनका चलना—फिरना यहां तक कि हिलना—डुलना भी मुश्किल है। डॉक्टरों ने भी इनके ठीक होने की उम्मीद छोड़ दी है। मुझसे अब यह देखा नहीं जाता। इन्हें मौत देने से इनकी सारी तकलीफ खत्म हो जाएगी। जीत नारायण और प्रभावती को अब यह डर सता रहा है कि कहीं यह बीमारी उनकीबेटी को न लग जाए। बेटी की उम्र अभी चार साल है।
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी: पीजीआई में हर साल आते हैं बीस मरह्वीज
चंडीगढ़. पीजीआई के न्यूरोलॉजी विभाग में पड़ोसी राज्यों से सालभर में पंद्रह से बीस मरीज मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के आते हैं। मसल्स को कमजोर करने वाली इस बीमारी का इलाज फिलहाल नहीं है। मसल्स में पहुुंचने वाले प्रोटीन के डिफेक्टिव होने से यह बीमारी होती है। पीजीआई के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर विवेक लाल ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पैरों की मसल्स कमजोर होना शुरू होती हैं फिर हाथों से लेकर अन्य अंगों की मसल्स कमजोर होती हैं। जीन के माध्यम से मसल्स में पहुुंचने वाले प्रोटीन डिफेक्टिव होने से मसल्स कमजोर होने लगते हैं। बीमारी ज्यादा बढऩे पर मरीज का गर्दन से नीचे हिलना डुलना खम्त्म हो जाता है।
Wednesday, October 14, 2009
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5 comments:
ईश्वर इन बच्चों की भी सुध ले यही कामना है।
धनतेरस, दीपावली और भइया-दूज पर आप सबको ढेरों शुभकामनाएँ!
अब ऐसे समाज को क्या कहेगे ?
हिन्दी के युवा कवि रजत कृश्ण इसी बीमारी से ग्रस्त हैं । अभी अभी उन्होने पी>एच.डी की है और कालेज मे प्रोफेसर हो गये है । उनका छोटा भाई उनके जिस्म का ही एक हिस्सा है जिसके सहारे वे बागबहारा से निकलकर दूर दूर तक यात्रायें करते है । गज़ब का आत्मविश्वास है उनमे । यह बता देना चाहता हूँ कि वे आनेवाले समय को जानते है पिछले दिनो ही उनसे बड़ी उनकी सगी बहन की मौत इसी बीमारी से हुई है । यह सब इसलिये लिखा कि इच्छा म्रत्यु या म्रत्यु की गुहार इसका इलाज नही है । हाँ लोगो को उनकी सहायता के लिये आगे आना चाहिये ।
kitni sahi baat kahi hai sharad jine.........mante hain ki halat bad se bhi badtar hain magar phir bhi maut ko khud pukarna bada peedadayi hota hai........ishwar se prarthna hai ki wo inki sune aur koi sthayi hal nikale taki wo bhi ek aam zindagi ji sakein.
शरद जी शब्दों का मलहम गहरे से गहरा जख्म भर देता है। आपने जो शब्दों का संबल दिया है मै उसका आभारी हूं। चाहता हूं कि आपकी सार्थक टिप्पणी को जीत नारायण और उनकी पत्नी प्रभावती भी पढ़ें और अपने बच्चों को संबल दें।
आपने सच बयां किया है----
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