Friday, March 5, 2010

अक्षम बच्चों के जीवन में एक रोशन चिराग

यह ब्लॉग अक्षम बच्चों के संघर्ष को समर्पित है और इस संबंध में जो भी जानकारी मिलती है उसे उन बच्चों और उनके माता-पिता तक पहुंचाने की कोशिश करता है। मानसिक रूप से अविकसित बच्चों को तराशना और उनमें एक समझ पैदा करना उल्टी धारा में नाव खेने जैसा है। जो लोग इस प्रयास में लगे हैं नन्हे पंख उन्हें सलाम करते हैं। कुछ दिन पहले भास्कर के लिए मैनेजमेंट फंडा कॉलम लिखने वाले एन रघुरामन ने 'हर एक की है उपयोगिताÓ नाम से यह लिखा था। इसे साभार लेकर मैं अक्षम बच्चों के संघर्ष में साझीदार लोगों के लिए प्रस्तुत कर रहा हूं। इस लेख से शायद उन्हें कोई दिशा मिलेगी।
मुं बई के एसपीजे सडाना स्कूल से 51 युवा पांच वर्षीय पॉलीटेक्निक व वोकेशनल कोर्स पूरा कर 10 मार्च को समाज की मुख्यधारा में अपनी राह तलाशने निकल पड़ेंगे। एसपीजे सडाना स्कूल मानसिक रूप से अविकसित बच्चों को सशक्त बनाने की दिशा में काम करता है। यह शिक्षण संस्थान खास तरह की शिक्षा व प्रशिक्षण के जरिए उन्हें इस हिसाब से तैयार करता है, ताकि वे दुनिया के साथ तालमेल बैठा सकें और समाज में अपना उपयोगी योगदान दे सकें। इस संस्था की उप-प्राचार्य राधिके पाटील का कहना है, 'यह काफी दिलचस्प सफर है। मुझे इस संस्थान से जुड़े हुए 25 साल से भी ज्यादा वक्त हो गया है और अब तो यह मुझे अपने घर जैसा लगने लगा है।Óइस स्कूल में दो सेक्शन हैं। पांचवी क्लास तक इस तरह के खास बच्चों को रचनात्मक चीजें सिखाई जाती हैं। इसके अलावा अपने किस्म का अनूठा पांच वर्षीय डिप्लोमा कोर्स भी है, जिसके तहत मानसिक रूप से अविकसित युवाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। स्कूल का मुख्य उद्देश्य उन्हें ऐसी बुनियाद देने का है जिसके सहारे वे आत्मनिर्भर बन सकें और अपने अभिभावकों पर निर्भरता रूपी बेडिय़ों से मुक्त हो सकें।37 साल पहले शुरू हुए एसपीजे सडाना स्कूल ने समय के साथ-साथ आगे बढ़ते हुए पठन-पाठन की नई-नई तकनीकें और अनूठा पाठ्ïयक्रम तैयार किया। राधिके के मुताबिक, 'हमारे समक्ष बड़ा काम है। ऐसे बच्चों के लिए कोई आरक्षण नहीं है। रोजगार की श्रेणी में उनके लिए कोई आरक्षण नहीं होता। हम इन बच्चों को प्लेसमेंट का मंच देते हैं और हमारी सफलता की दर 93 फीसदी है। ये सभी अच्छी जगहों पर पहुंचे हैं। असल में लोगों को उन पर भरोसा करना चाहिए और उन्हें यूं ही खारिज नहीं कर देना चाहिए।Ó चूंकि उन्हें भविष्य के लिहाज से अपनी शारीरिक सीमाओं से आगे देखने और सीमाओं से परे जाने की जरूरत होती है, इस लिहाज से स्कूल नई-नई तकनीकों की मदद से शिक्षा तथा इस तरह का प्रशिक्षण देता है ताकि उन्हें इस स्वार्थी दुनिया में खारिज न कर दिया जाए। इस स्कूल के पॉलीटेक्निक कोर्स का मुख्य फोकस अलग-अलग विभागों में प्रशिक्षण व शिक्षा के जरिए इन्हें मुख्यधारा के समाज के साथ जोडऩा है। इसके साथ-साथ रोजगार के हिसाब से जरूरी मानदंडों पर भी जोर दिया जाता है, मसलन काम के दौरान आपका व्यवहार सही रहे, आप दूसरों के साथ बेहतर संवाद स्थापित कर सकें। इन्हें सेल्फ-हेल्प का हुनर भी सिखाया जाता है। कार्यशालाओं और फील्ड ट्रिप्स पर ले जाना इस प्रोग्राम का अभिन्न हिस्सा है। खासकर इंटर्नशिप के अंतिम दो वर्र्षों में तो ऐसा ही होता है। इससे उन्हें बेशकीमती अनुभव मिलता है। अलग-अलग तरह की परिस्थितियों को प्रत्यक्ष समझने का अवसर मिलता है और बाधाओं से पार पाने का व्यावहारिक प्रशिक्षण मिलता है। इस दौरान स्कूल द्वारा अपनाई गई सुरक्षा व्यवस्था ही इनके साथ होती है। इस कोर्स में शामिल हैं- विजुअल आट्ïर्स एंड क्राफ्ट्ïस, हॉस्पिटैलिटी एंड कैटरिंग। तीन साल के गहन प्रशिक्षण के बाद चौथे व पांचवें साल में इंटर्नशिप पर ध्यान दिया जाता है। वोकेशनल कोर्स में शामिल हंै- हल्की मशीनों पर काम करना, सॉर्र्टिंग, एसेंबलिंग, स्टिकिंग, पैकेजिंग और प्रिंटिंग।

2 comments:

RAJNISH PARIHAR said...

ek achhi shuruaat!!!!

अनुनाद सिंह said...

इस सत्प्रयास के लिये साधुवाद।