Monday, June 29, 2009

यह अंधेरे का अध्याय है

यह अध्याय कहीं से भी शुरू हो सकता है क्योंकि यह अंधेरे का अध्याय है जिसकी न कभी कोई शुरुआत थी और न ही कोई अंत दिखाई दे रहा है। इस अध्याय का जन्म ही अंधेरे में हुआ और भविष्य में गढ़े गए कई फ्रेम को चकनाचूर कर गया। जो सपना देखा, गढ़ा वह हकीकत में सांस लेने को आज भी छटपटा रहा है। साढ़े छह साल बीत गए हमारे इस अंधेरे सफर को, कुशाग्र भी इतने का ही हो चला है। हमारे तमाम दिली, दिमागी और शारीरिक मैराथन के बावजूद चलने, बोलने और बैठने में असमर्थ है। इस बीच अंधेरे के जिन्न ने एक और कलाबाजी की, कुशाग्र की मां अमृता भी मानसिक तौर पर कुंठित हो चली है। फोर्टिस ने उसे कुशाग्र की चिंता करते-करते डीप डिप्रेशन और ट्रॉमा में चले जाने की बात कही है। आलम यह है कि 19 मई को उसके पेट और स्पाइन में उठा तेज दर्द, होप नर्सिंग होम, पीजीआई चंडीगढ़ और फोर्टिस में दिखाने के बाद भी हर एक दो दिन पर ऊभर आ रहा है। सारे रिपोट्ïर्स नार्मल हैं सिवाय इंडोस्कोपी में उसकी अंातों में आया स्क्रैच पर डॉक्टर नागपाल (होप) और डॉ. अरविंद साहनी (फोर्टिस) का कहना है कि यह साइकाजनिक पेन है। हेप के डॉ. नीरज नागपाल और डॉ. साहनी ने उसे चिंता कम करने की सलाह दी है और खुश रहने को कहा है। इस बीच फोर्टिस के मनोचिकित्सक हरदीप सिंह ने उसे बेहद गंभीर मानसिक अवसाद में बताया है और नींद की दवा दी है।खैर अंधेरे के इस नए अध्याय के कारण कुशाग्र को सेराजेम से मिलने वाली थेरेपी रुक गई है, प्रयास की ऑक्युपेशनल व फिजियो थेरेपी भी छूट चुकी है। इस संघर्ष में फिलहाल मैं अकेला रह गया हूं। भगवान में मेरी अटूट आस्था भी अब डगमगाने लगी है। 27 जून की रात साढ़े 11 बजे मुझे आफिस में फोन आया कि अमृता के पेट में तेज जलन है। आफिस से जल्दी काम निपटा जब घर पहुंचा तो उसे भगवान के दरवाजे के पास लेटकर छटपटाता पाया। मेरे पहुंचते ही उसने भगवान के दरवाजे में ताला लगा देने को कहा, 'पूजा नहीं होगीÓ सब झूठ है। इन दिनों मेरे मकान मालिक और मित्रगण भी कहने लगे हैं, आप इतना पूजा पाठ करते हैं फिर आप के ही साथ ऐसा क्यों होता है। मैं भी अब सोचने को मजबूर हूं कि आखिर कब तक इम्तिहान लेंगे इश्वर। अब धीरे-धीरे कुशाग्र बड़ा हो रहा है और हम उम्रदराज। पिछले तीन-चार महीने से वह उसे नहाने बाथरूम तक ले जाने में असमर्थ हो गई थी। अब उसे मुझे ही नहलाना पड़ता है और इस दौरान मैंने महसूस किया कि नहलाने में रीढ़ की हड्ïडी अकड़ जाती है। बबली यानि अमृता बिना कुछ बोले एक साल तक जो कुश को उठाने, नहलाने सहित जो उसके सारे काम प्लस घर के काम करती रही इससे उसके शरीर पर गंभीर प्रतिकूल दबाव पड़ा और फिर भी उन्य बच्चों की तरह सामान्य न होने का मनोवैज्ञानिक तनाव भी साथ-साथ सालता रहा। गौर करने वाली बात यह है कि यह सिर्फ हमारी कहानी नहीं है, यह हम जैसे तमाम उन मां-बाप की कहानी है जिनके बच्चे सीपी के मरीज हैं। मैं ऐसे बच्चों के लिए एक आश्रम बनाने के लिए प्रयासरत हूं जहां ऐसे बच्चों को रखने और उनके समुचित देखभाल के लिए व्यवस्था की जा सके। इसमें समाज के प्रबुद्ध लोगों का मार्गदर्शन मुझे चाहिए। हां मेरा एक स्वार्थ भी इसमें निहित है जो मुझ जैसे तमाम माता-पिता के स्वार्थ से जुड़ा है कि कम से कम हम इस सुकून से मर सकें कि हमारे न रहने पर भी एक संस्था है जो हमारे बेटे और हम जैसे उन तमाम मां-बाप के बेटों की देखभाल कर सके। भारत सरकार से भी हमें इसमें मदद चाहिए। उम्मीद के साथ आपका अमलेन्दु अष्ठïानासीनियर सब एडीटर, दैनिक भास्कर चंडीगढ़।09217668495

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