Sunday, March 8, 2009

अपने लिए जिए तो क्या जिए.. .

अपने को तो सब संवारते हैं, खुद के लिए तो सभी जीते हैं। दूसरों के लिए जीने का हौसला कोई-कोई ही रखता है। मीना खन्ना एक ऐसी ही महिला है। एक रिक्शा चालक की बेटी होने और घरों में आया का काम करने के बावजूद मीना आज झुग्गी झोपड़ी के नन्हें पंखों को संवारने में जुटी है। वह कहती है कि खुद ज्यादा न पढ़ सकी तो क्या इन बच्चों को उनका आकाश ढूंढने में जरूर मदद करेगी। पिता रिक्शा चलाकर घर चलाते रहे और मीना आर्थिक तंगी के बीच पली बढ़ी। उसने गरीबों की इच्छाओं को दफन होते देखा था। मीना सुबह पढ़ाई करती और शाम में दूसरों के घरों में आया का काम करती।
मीना बताती है कि शादी के बाद जब उसने अपने पति से बच्चों को पढ़ाते रहने की इच्छा जाहिर की तो उसके पति ने भी उसके हौसले को देखते हुए उसकी मदद की। आज वह चंडीगढ़ के सेक्टर 25 में स्लम के बच्चों को पढ़ा रही है। वह एक कमरा बनवना चाहती है ताकि बच्चों को खुले में न पढऩा पड़े। फिलहाल वह 70 बच्चों को स्लम डॉग मिलियनेयर दिखाने के लिए पैसे जमा कर रही है।

2 comments:

संगीता पुरी said...

इस मीना नामक महिला से उन महिलाओं को सीख लेनी चाहिए ... जो दिन भर अपना समय ऐसे वैसे जाया किया करती हैं।

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

menaa ji ko mera salaam..........aur unko aur aap sabko holi kee shubhkaamnaayen.......!!