Tuesday, May 24, 2011

मन के जीते प्रीत है






मेंटली चैलेंज्ड मनप्रीत के सार्थक संघर्ष की पे्ररणादायक कहानी पिछले दिनों दैनिक भास्कर के सिटी लाइफ में प्रकाशित हुई। प्रवीण कुमार डोगरा की इस रिपोर्ट को नन्हे पंख पर साभार प्रकाशित कर रहा हूं। उम्मीद है इस संकट से जूझ सहे अन्य मां-बाप को भी इससे संबल मिलेगा और अंधेरों से लड़कर वो एक नई सुबह अपने आंगन में खिला पाएंगे।
स्कूल में ट्रेनर के एक इशारे पर घंटों ट्रेड मिल पर दौड़ता है। दोपहर 3:30 बजे सेक्टर-7 के स्पोट्र्स कॉम्प्लेक्स के ट्रैक पर अपने फादर के पीछे लगातार दौड़ता रहता है। ये एथलीट कभी थकता नहीं। इसका नाम है मनप्रीत सिंह। उसकी एनर्जी का राज फिजिकल फिटनेस से ज्यादा इंसपिरेशन है जो उसे सामने वाले को वही काम करता देख मिलती है। इसी इंसपिरेशन के साथ मनप्रीत एथेंस में 25 जून से हो रहे स्पेशल समर्स ओलंपिक में एथलेटिक्स कैटिगरी में पार्टिसिपेट कर रहा है। मेडिकल साइंस के मुताबिक बचपन से एमआर यानी मेंटली रिटार्डेशन के शिकार होने के बावजूद इस लेवल तक पहुंचे मनप्रीत के सफर पर एक नजर: 14 साल से दौड़ जारी है: सुबह 6 बजे अपने घर से निकलते हैं। 3:30 बजे स्कूल बस चलाकर घर लौटते हैं। 'फिर टाइम आराम का नहीं दिन के सबसे जरूरी काम का होता है। मनप्रीत को स्पोट्र्स कॉम्प्लेक्स में ले जाकर दौड़ लगवाने और कसरत करवाने का। यह काम बिना किसी छुट्टी और आराम के होता है। इसी के चलते तो मनप्रीत आज इस लेवल तक पहुंचा हैÓ, अपने बेटे की कामयाबी की कहानी सुनाते मनप्रीत के 55 साल के पिता हरजिंदर सिंह को देखकर बेचारगी नहीं वाह का भाव आता है। वे इस उम्र में भी मनप्रीत के साथ दौड़ते दिखते हैं ताकि वह उन्हें कॉपी करते हुए दौड़े और उनसे कंपीटिशन फील करे। हरजिंदर कहते हैं,'मनप्रीत किसी भी चीज को ज्यादा देर तक याद नहीं रख पाता है। इसलिए उससे कोई भी काम करवाने के लिए खुद उस काम को करके दिखाना पड़ता है। पिछले 14 साल से यही रूटीन जी रहा हूं मैं।Ó थकना यहां मना है: उम्र में 26 साल के मनप्रीत बाकी बच्चों की ही तरह स्कूल जाते हैं। इनका स्कूल है सेक्टर 36 का सोरम। यहां ट्रेनर राकेश कुमार की मानें तो मनप्रीत को थकने का पता नहीं है, अगर उसे कुछ करने की इंसपिरेशन मिल जाए। घंटों ट्रेड मिल पर हंसते हुए गुजार सकता है और कहने पर स्केटिंग के कई राउंड भी काट सकता है।Ó चाहे मनप्रीत अपनी उम्र के लोगों से कई चीजों में पिछड़ा हो मगर बहुत सारी चीजें ऐसी भी हैं जो आम इंसान में नहीं मिल सकती हैं। 'इसे कुछ नहीं चाहिए, न ही कोई डिमांड है। बस आपकी अटेंशन चाहिए। वह स्टेडियम के कई चक्कर काट सकता है, सिर्फ इसके लिए कि कोई कहे, क्या बात है मनप्रीत तुम तो चैंपियन होÓ, सेक्टर- 20 से पानी की बॉटल और दो केले लेकर सेक्टर-7 आने वाली मां सरबजीत कौर स्माइल करते हुए बताती हैं। टाइटल पहले ही जीत चुके हैं: पिछले 26 सालों से मनप्रीत पर बिना किसी उम्मीद से मेहनत कर रहे मां-बाप कहते हैं,'चार साल के मनप्रीत और आज के मनप्रीत में जो फर्क हम देख रहे हैं, वही हमारी जीत का टाइटल है। एक ही चीज को अनगिनत बार बताना और सिखाना पड़ता था मगर हमने हार नहीं मानी। पहले भवन विद्यालय और अब सोरम स्कूल भेजने से यह सुधार आया है। अब स्पोट्र्स के अलावा मनप्रीत अपने बाल बांधने से लेकर अंडरवियर धोने तक में ट्रेंड हो चुका है। मनप्रीत में यह सुधार स्पोट्र्स से ही आया है।Ó ट्रायल उडऩे का भी: पेरंट्स बच्चे के लिए कितने केयरिंग और फिक्रमंद होते हैं, इसकी मिसाल हैं मनप्रीत के पेरंट्स। बेटा एथेंस जा रहा है तो उसे जहाज में उडऩे का एक्सपीरियंस कराने के लिए मां-बाप खासतौर पर जहाज से गोवा लेकर गए। इस पर सरबजीत कहती हैं, 'हम 10 अप्रैल को सिर्फ इसलिए गोवा गए ताकि यह जहाज में एथेंस जाते हुए घबराए न। हम चाहते हैं कि वह जहाज के अंदर की चीजों के प्रति अनजान न फील करे।Ó

2 comments:

वीना श्रीवास्तव said...

कभी हार न मानने वाले जज्बे को सलाम...

SHAYARI PAGE said...

tujhse naraz nhi ..is a nice song..thnk u for visiting in my blog..