Wednesday, April 7, 2010

अमेरिकी हमले के कारण इराक में पैदा हो रहे विचित्र बच्चे

हमला किसी के हक में नहीं होता, हमला का गला घोंटना होगा। इराक में शांति के नाम पर जो अमेरिकी हमले हो रहे हैं, उसका खमियाजा मासूम बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। दो हमलावरों की भ_ी में मासूमों की जिन्दगी झोंकी जा रही है। हमारी दुआ है कि हमलावरों को चेतना आए और वा समझौते की सरहद पर बैठकर शांति की तस्वीर खींचे। कुछ दिनों पहले इराक की जो तस्वीर खबरों के माध्यम से सामने आई है उसे आपसबों के समक्ष रख रहा हूं।
इराकी शहर फलूजा में अमेरिकी हमले के बाद से बच्चों में पैदाइशी खामियों के मामले बढ़ गए हैं। हालत इतनी खराब है कि नवजातों में सिर्फ हृदय संबंधी गड़बडिय़ों के मामले यूरोप की तुलना में तेरह गुना अधिक हैं। इराकी राजधानी से 40 मील पश्चिम में स्थित यह शहर नवंबर 2004 में अमेरिकी अभियान के दौरान भयानक संघर्ष का गवाह बना था। तब अमेरिकी फौज ने हमले में व्हाइट फास्फोरस व डिप्लीटेड यूरेनियम का इस्तेमाल किया था। डॉक्टर बच्चों में पैदायशी बीमारियों व खराबी के लिए इसे ही वजह मानते हैं। शिशुरोग विशेषज्ञ समीरा अल अनी के मुताबिक वे नवजात बच्चों में हृदय विकार के दो-तीन मामले वे रोज देख रही हैं। 2003 के पहले एक माह में ऐसा एक मामला सामने आता था। ऐसे मामलों की दर प्रति हजार बच्चों में 95 है, जो यूरोप की तुलना में 13 गुना अधिक है। कैसे-कैसे विकार : हृदय विकार, लकवा अथवा मस्तिष्क को नुकसान पहुंचने के मामले, बच्चों में तीन सिर, माथे पर आंख, हाथ में नाक पाए जाने जैसे कई मामले हैं। अमेरिकी फौज ने पल्ला झाड़ा: अमेरिकी सेना के प्रवक्ता माइकल किलपैट्रिक ने दावा किया कि सेना स्वास्थ्य से जुड़े मामलों को गंभीरता से लेती है। उन्होंने कहा, 'पर्यावरण को लेकर ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया।
गाजा पïट्टी में भी यही करुण कथा
इजरायल द्वारा नवंबर 2008 में गाजा पïट्टी के फलस्तीनी इलाकों पर की गई कार्रवाई के बाद वहां भी बच्चों में जन्मजात विकृतियों के मामले बढ़े हैं। एक मानवाधिकार संगठन कांशस आर्गनाइजेशन फॉर ह्यïूमन राइट्स के मुताबिक इजरायली हमले के तीन माह पहले इलाके में जन्मजात खामियों वाले सिर्फ 27 बच्चे पैदा हुए थे। 2009 में यह संख्या अचानक बढ़कर 59 हो गई। इजरायल ने जाबालिया, बेइत, हनाउन व बेइत लाहिया जिलों पर व्हाइट फास्फोरस जबर्दस्त बमबारी की थी और जन्मजात खामियों के मामले भी यहीं अधिक पाए गए हैं।

2 comments:

Jandunia said...

दिल को झकझोरने वाली जानकारी दी है आपने। हम तो यही कहेंगे कि युद्ध के नाम पर मानव अपनी विनाशलीला खुद ही लिख रहा है। भई जब बबूल बोएंगे तो गुलाब का फूल कहां से हासिल करेंगे। अगर ऐसा ही चलता रहा तो आनेवाली पीढ़ियां हमें माफ नहीं करेंगी।

शरद कोकास said...

इसीलिये युद्ध किसी भी स्थिति मे ठीक नही होता ।