Wednesday, February 25, 2009

एक खत प्रकृति को

कभी कहीं से वो हवा आए/कोई बूंद तो मुस्कराए/ कोई किरण तो झिलमिलाए।कहीं तो जरूर छिपा है शक्तिपूंज। प्रकृति तुम्हारे पास तो हर विकल्प है। मेरे खाते में और उनके खाते में भी जो मेरे जैसे हैं, खुशियों का दो-चार कतरा डाल दो। नन्हें पंखों को अपनी उंगली थामकर ले चलो सूरज, इनके हिस्से की चांदनी लौटा दो चांद। इन बेजुबानों को शब्ïदों का सहारा दो प्रभु।हमारे हारे हुए मन पर थकान के जो धूल हैं, उन्हें उड़ा ले जाए हवा, बहा ले जाए झरने। कुछ लोग और विज्ञान जो हमारे विश् वास को हमारा भ्रम करार देते हैं, उसे झुठला दो सर्वशक्तिमान। हवा तेज है और उतनी ही तेज है बेचैनियों की आंधी। मन क्या चाहता है, कई बार समझ नहीं पाता। कुछ ऐसे सवाल होते हैं जिनका जबाब सिर्फ और सिर्फ वक्त के पास होता है। हमारे सिराहने चुपचाप जो खाब बैठते हैं, उन्हें सुबह का पता नहीं होता, वह बंद पलकों में भी जागते रहते हैं। हमें उनके सच होने का इंतजार होता है। मै और मुझ जैसे हालात के साझीदार सभी एक भ्रम को सच करने में तुले हैं। दुनिया और मेडिकल साइंस इसे भ्रम कहते हैंऔर हम जैसे कहते हैं सच तो कहीं है, हल जरूर है, इसी पृथ्वी पर। जब इतनी बीमारियां ठीक हो रही हैं तो सीपी पर साइंस क्यूं पंगू बना बैठा है। ऋषि-मुनियों के इस देश में कोई अद्वितीय शक्ति का बाबा क्यों नहीं सामने आता। जब सारी औषधियां, सारे मेडिसिन धरती पर व्याप्त स्रोतों से ही बने हैं तो सेरिब्रल पाल्सी का हल भी धरती पर मौजूद जड़ी-बूटियों और रसायनों में छिपा होगा। इस दिशा में और शोध किए जाने चाहिए ताकि मझदार में फंसे नन्हें पंख अपना आकाश पा सकें।मेरे हौसलों पर थकान की धूल दिख सकती है पर हारा नहीं हूं मै और ना ही हारे हैं वो सभी मां-बाप। कुशाग्र को अभी सेराजेम की ओर से स्पाइन पर एक कोरियन थेरेपी दी जा रही है।
एक खत प्रकृति कोकभी कहीं से वो हवा आए/कोई बूंद तो मुस्कराए/ कोई किरण तो झिलमिलाए।कहीं तो जरूर छिपा है शक्तिपूंज। प्रकृति तुम्हारे पास तो हर विकल्प है। मेरे खाते में और उनके खाते में भी जो मेरे जैसे हैं, खुशियों का दो-चार कतरा डाल दो। नन्हें पंखों को अपनी उंगली थामकर ले चलो सूरज, इनके हिस्से की चांदनी लौटा दो चांद। इन बेजुबानों को शब्ïदों का सहारा दो प्रभु।हमारे हारे हुए मन पर थकान के जो धूल हैं, उन्हें उड़ा ले जाए हवा, बहा ले जाए झरने। कुछ लोग और विज्ञान जो हमारे विश् वास को हमारा भ्रम करार देते हैं, उसे झुठला दो सर्वशक्तिमान। हवा तेज है और उतनी ही तेज है बेचैनियों की आंधी। मन क्या चाहता है, कई बार समझ नहीं पाता। कुछ ऐसे सवाल होते हैं जिनका जबाब सिर्फ और सिर्फ वक्त के पास होता है। हमारे सिराहने चुपचाप जो खाब बैठते हैं, उन्हें सुबह का पता नहीं होता, वह बंद पलकों में भी जागते रहते हैं। हमें उनके सच होने का इंतजार होता है। मै और मुझ जैसे हालात के साझीदार सभी एक भ्रम को सच करने में तुले हैं। दुनिया और मेडिकल साइंस इसे भ्रम कहते हैंऔर हम जैसे कहते हैं सच तो कहीं है, हल जरूर है, इसी पृथ्वी पर। जब इतनी बीमारियां ठीक हो रही हैं तो सीपी पर साइंस क्यूं पंगू बना बैठा है। ऋषि-मुनियों के इस देश में कोई अद्वितीय शक्ति का बाबा क्यों नहीं सामने आता। जब सारी औषधियां, सारे मेडिसिन धरती पर व्याप्त स्रोतों से ही बने हैं तो सेरिब्रल पाल्सी का हल भी धरती पर मौजूद जड़ी-बूटियों और रसायनों में छिपा होगा। इस दिशा में और शोध किए जाने चाहिए ताकि मझदार में फंसे नन्हें पंख अपना आकाश पा सकें।मेरे हौसलों पर थकान की धूल दिख सकती है पर हारा नहीं हूं मै और ना ही हारे हैं वो सभी मां-बाप। कुशाग्र को अभी सेराजेम की ओर से स्पाइन पर एक कोरियन थेरेपी दी जा रही है।

2 comments:

आशीष कुमार 'अंशु' said...

अमलेंदु जी अच्छा लिखा आपने .. इसे जारी राखिय

संगीता पुरी said...

बहुत सही लिखा .... प्रकृति ही सर्वशक्तिमान है ...अन्‍य कोई नहीं ।