Sunday, October 5, 2008

तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हूँ मै

तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हूँ मैं, तेरे मासूम सवालों से परेशान हूँ मैं। तुम चुपचाप मुस्कुराकर जो सवाल कर देते हो मुझसे, अपनी माँ से तो हमें खामोश केर देते हो और दुनिया के तमाम ज्ञानिओं को निरुत्तर। तुम्हरी आखों से जो प्यार छलकता है उसके आगे रोमीयो जूलियट लैला मजनू और सोनी महिवाल का प्यार फीका है । मै तुम्हरे मासूम निश्चछल प्यार पर नतमस्तक हूँ। तुम्हारे और तुम जैसे नन्हें पंखों के अंदर कल्पना का जो सैलाब है, मुझे उससे रूबरू होने दो। तुम्हारी भावनाओं को बाँटने का हक़ तुम मुझे दो। मै उन लोगों को प्रणाम करता हूँ जो लहरों के बीच फँसी तुम्हरी कश्ती को पर लगाने में तुम्हेरे संघर्षों में साझेदार हैं, और समाज के उस तपके से सवाल करता हूँ जो तुम्हारे हिस्से का कोना दबाये बैठे हैं। ये कोना नजरिया मात्र है जिसे बदलने की अपील मै करता हूँ । ये मासूम नन्हें पंखों मै तुम्हारे जज्बे को सलाम करता हूँ। तुम्हारे अंदर के आकाश में जो सूरज छिपा है उसे उगना ही होगा
तुम्हारा संघर्ष रंग लायेगा, तुम रौशन होगे तुम चमकोगे तुम खिलोगे , तुम्हारे हौसलो की उडान जरूर होगी मेरा विश्वास है ।

1 comment:

Anonymous said...

अच्छा प्रयास है। आपको बता दूं कि हिंदी के महान कवि मलिक मोहम्मद जायसी भी विकलांग थे। उनकी एक आंख चेचक ने ले ली थी। चेहरे पर भी चेचक के दाग थे। रंग बेहद सांवला था। एक बार उन्हें देखकर एक व्यक्ति हंस पड़ा। इस पर जायसी बोले- मोहंका हंसेस कि कोहंरहिं( अर्थात मुझे हंसे या बनाने वाले कुम्हार को)। कहने का आशय यह है कि हमें विकलांग बच्चों की हरसंभव मदद करनी चाहिए। उन्हें प्रोत्साहन देना चाहिए। प्रकृति की क्रूरता के शिकार इन बच्चों की उपेक्षा कर हम कम से कम अपनी तरफ से तो क्रूरता के समानान्तर व्यवहार न करें।