
नशे का कोई सिद्धांत या उसूल नहीं होता, नशा तो सिर्फ गुलामी की भाषा समझता है। अपने आस-पास फटकने वाले कर शख्स को वह अपना गुलाम बना लेना चाहता है और फिर उसके चेहरे पर धीरे-धीरे बर्बादी की तस्वीर खींचता है। नशा देश के लगभग सभी हिस्सों में अपना फन फैला रहा है। लेकिन हाल में पंजाब की जो तस्वीर सामने आई है उससे भारत के भविष्य पर ग्रहण लगता दिख रहा है। नशे के दलदल में फंसे बच्चों की जो तस्वीर दैनिक भास्कर, चंडीगढ़ के ब्यूरो चीफ ब्रज मोहन सिंह ने खींची है उसे साभार प्रस्तुत कर रहा हूं।
पंजाब के लोगों ने आतंकवाद का डटकर मुकाबला किया और उसे शिकस्त भी दी, लेकिन यही सूबा अब नशे के खिलाफ जंग हारता दिख रहा है। पंजाब के वयस्कों में नशे की लत खतरनाक स्तर को पार कर चुकी है। इससे भी ज्यादा चिंता की बात है, वह ट्रेंड जिसके चलते पंजाब के ज्यादातर जिलों में बच्चे 10-11 साल की उम्र से किसी न किसी तरह का नशा करने लगते हैं। इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन ने पंजाब में नशे की बढ़ती प्रवृत्ति की स्टडी करने के लिए राज्य के 4 सरहदी जिले गुरदासपुर, अमृतसर, तरनतारन के 80 गांवों में सर्वे किया। इसमें अलग-अलग उम्र के 1527 लोगों से बातचीत की गई। ये सभी ऐसे थे, जो किसी न किसी तरह के नशे का इस्तेमाल करते थे। सर्वे के नतीजे चौंकाते हैं। सर्वे में शामिल 77 फीसदी नशा करने वालों की उम्र 11 से 18 साल के बीच है। पंजाब के फिरोजपुर जिले में 10 फीसदी ऐसे बच्चे मिले, जिन्होंने 10 साल से कम उम्र में ही ड्रग्स लेनी शुरू कर दी। उन्हें इस दलदल में धकेलने वाला कोई और नहीं बल्कि परिवार के लोग और उनके नजदीकी दोस्त हैं। फिरोजपुर में रामकोट गांव के 8 से 10 साल के बच्चों ने बताया कि उन्होंने घरवालों को देखकर ही नशा करना सीखा है। पंजाब एंटी-ड्रग कंट्रोल सेल के आर।पी. मीणा कहते हैं, नशे की समस्या इस हद तक गंभीर है कि पुलिस अधिकारियों को बच्चों को ड्रग्स के नुकसान के बारे में स्कूल जाकर बताना पड़ रहा है। नशे की आदत पर लगाम लगाने के लिए हम स्कूलों में जाकर पर्चियां बांट रहे हैं।
सरकारी निगहबानी में चल रहा धंधा
शहरी इलाकों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में नशे की समस्या ज्यादा जटिल है। पंजाब सरकार सालों से कह रही है कि वो सबस्टांस ड्रग्स के ऊपर कड़ी निगरानी रख रही है, लेकिन सब कुछ यहां पेन किलर की आड़ में हो रहा है। मार्फिन वाली नशीली दवाइयां भी खुलेआम बिक रही हैं। पंजाब हेल्थ एंड ड्रग कंट्रोलर विंग के भाग सिंह कहते हैं कि सरकार की तरफ से कड़े निर्देश हैं कि बिना डॉक्टर के पर्चे के कोई भी नशीली दवा न दी जाए।अगर कोई ऐसा करता है तो उनके लाइसेंस रद्द करने का प्रावधान है। अधिकारियों के दावे अपनी जगह हैं, लेकिन सर्वे में शामिल 31 फीसदी लोगों ने ये बात कबूल की कि वो सिंथेटिक ड्रग्स की खरीद अपने गांव के मेडिकल स्टोर से ही करते हैं। स्पष्ट है कि सब कुछ सरकार की नाक के नीचे चल रहा है। नशे के बढिय़ा बाजार के चलते पंजाब के ग्रामीण और शहरी इलाकों में सिंथेटिक ड्रग्स सप्लाई करने वालों की एक चेन बन गई है। इन्हें राजनीतिक संरक्षण मिला होता है और पुलिस भी इनके खिलाफ कार्रवाई से हिचकती है। इस धंधे में ड्रग्स की बाकायदा होम डिलीवरी भी होती है। पंजाब में 11 फीसदी लोगों ने माना कि भुक्की की खेती पंजाब के गांवों में हो रही है, सरकार भले ही कुछ कह ले।